बीता आम चुनाव क्या हिंदुत्व के बुलडोजर की राह में महज एक ठोकर था?
आम चुनाव के नतीजों के बाद राजनीतिक पंडितों ने दावा किया था कि ‘कमजोर’ हो चुके मोदी को अब भाजपा की वर्चस्ववादी राजनीति में नरमी लाने को बाध्य होना पड़ेगा। तात्कालिक विश्लेषण की शक्ल में जाहिर यह सदिच्छापूर्ण सोच आज बुलडोजर के पैदा किए राष्ट्रीय मलबे में कहीं दबी पड़ी है। भारत में कुछ भी नहीं बदला है। हां, तीसरी बार सत्ता में आए मोदी को ऐसे विश्लेषणों ने एक प्रच्छन्न वैधता जरूर दे दी, कि यहां लोकतंत्र अभी बच रहा है। प्रोजेक्ट सिंडिकेट के सौजन्य से देबासीश रॉय चौधरी का लेख