Environment

Flood scene from Malana, Himachal Pradesh

हिमाचल: फिर से बाढ़, फिर वही तबाही! सरकारों ने हिमालय के संकट पर कोई सबक नहीं लिया?

by

हिमाचल प्रदेश में पिछले साल आई तबाही के जख्‍म अभी सूखे नहीं थे कि जुलाई के अंत में एक बार फिर बारिश उन्‍हीं इलाकों में सब कुछ बहा ले गई जो आपदा के मारे थे। कुछ जगहें तो बीते वर्षों में लगातार तीसरी बार साफ हो गई। जलवायु परिवर्तन के गहराते असर और राज्‍य की विकास नीतियों के अंधेपन के कारण बार-बार हिमालय का जीवन संकट में पड़ रहा है। हिमालय नीति अभियान ने पिछले साल से लेकर अब तक लगातार सरकारों को विकास-संबंधी सिफारिशें की हैं लेकिन राज्‍य की नीति में कोई बदलाव नहीं आ रहा। अभियान की फैक्‍ट-फाइंडिंग की रोशनी में इस बार की तबाही का एक फॉलो-अप

छतरपुर के पलटा गांव में खनन के दौरान मारे गए टिंकू रेकवार का शोकाकुल परिवार

बुंदेलखंड: अवैध खनन, गुमनाम मौतें और एक अदद तहरीर का इंतजार

by

पुलिस नहीं चाहती कि उसके पास मरे हुए लोगों की एफआइआर हो। ठेकेदार और खदान मालिकान भी नहीं चाहते कि कानूनी पचड़े में उनका व्‍यापार फंसे। इसलिए इनके बीच एक अघोषित समझौता है कि उनकी लापरवाही से कोई मजदूर मर जाए तो उसके परिवार का मुंह पैसे से बंद करा दो। कोई बोले तो उसे गायब करवा दो, मरवा दो। मध्‍य प्रदेश के बुंदेलखंड की खदानों में लगातार अनाम मौत मर रहे मजदूरों पर सतीश मालवीय की जमीनी पड़ताल

वेदांता के खिलाफ अब कालाहांडी में खुल रहा है मोर्चा, लेकिन अबकी सामने अदाणी भी है…

by

नियमगिरि आंदोलन की कामयाबी के बाद माना गया था कि पूर्वी तट के आदिवासियों के पहाड़ खनन से बच जाएंगे। आज दस साल बाद ठीक उलटा हो रहा है। वेदांता को तो बॉक्‍साइट खदान मिली ही है, अदाणी भी दो खदानों के साथ मैदान में है। संघर्ष का नया मोर्चा खुल रहा है कालाहांडी जिले के सिजिमाली और खंडुआलमाली में, जो देश का सबसे गरीब इलाका है। पिछले हफ्ते हुई दो जनसुनवाइयों में आदिवासियों ने कंपनी का जैसा प्रतिरोध किया है वह प्रेरक है, लेकिन यह लड़ाई तिहरी है और चुनाव पास हैं। अभिषेक श्रीवास्‍तव की लंबी रिपोर्ट

मौसम की मार, बेपरवाह सरकार और महुए के फूलने का अंतहीन इंतजार…

by

सूखे के मामले में बीते अगस्त ने पिछले सौ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। मानसून में बारिश कम होने से सात राज्य संकट में हैं, लेकिन झारखंड के आदिवासियों की तो कमर ही टूट गई है जिनकी जिंदगी जंगल और उसके फल-फूल के भरोसे चलती है। एक तो बिचौलियों के खेल, उस पर से जलवायु के बदलाव और सरकारी योजनाओं का जमीन पर टोटा, तीनों के जाल में वन आश्रित समुदाय पलायन को मजबूर हैं। पुलिट्ज़र सेंटर के सौजन्य से लातेहार और पलामू से लौटकर सुष्मिता की रिपोर्ट

देहरादून से चला सरकारी आदमी जोशीमठ कितने महीने में पहुंच सकता है?

by

चार महीने पहले जोशीमठ से खबरें आना बंद हो गई थीं। उत्‍तराखण्‍ड के मुख्‍यमंत्री ने आश्‍वासनों का पुलिंदा स्‍थानीय लोगों के आंदोलन पर देकर मारा था। धरना उम्‍मीद में उठ गया था। अब लोगों का सरकार से भरोसा ही उठ गया है क्‍योंकि एक अदद पुनर्वास कार्यालय खोलने के लिए राजधानी से चली इमदाद अब तक जोशीमठ नहीं पहुंची है। इस बीच लोग अपने टूटे मकानों में मजबूरन लौट कर पाताल में धंसने की बाट जोह रहे हैं। जोशीमठ से लौटे शिवम भारद्वाज की फॉलो-अप रिपोर्ट

खंड-खंड उत्तराखंड: ‘विकास’ की राजनीति बनाम विज्ञान के सवाल पर कब बात होगी?

by

इस साल की शुरुआत में उत्‍तराखंड के जोशीमठ में जिस बड़े पैमाने पर अचानक भूधंसान देखा गया और मकानों में दरारें आईं, उससे किसी ने कुछ नहीं सीखा। पानी बरसा तो ऑल वेदर सड़कें धंसीं, पहाड़ दरके, बाढ़ आई, लोगों को फिर पलायन करना पड़ा। चारधाम की यात्रा कितनी बार बाधित हुई, इसका हिसाब नहीं है। क्‍या पहाड़ों के विकास मॉडल पर अब भी बात नहीं होगी?

कोरोना की आड़ में फिर से जागा रद्द कचरा संयंत्र, इंसानी त्रासदी के मुहाने पर भोजपुर

by

दस साल पहले बिहार में शुरू हुआ एक कचरा संयंत्र जनता के आंदोलन और प्रदूषण बोर्ड की नामंजूरी के कारण बंद हो चुका था। लोगों ने चैन की सांस ली ही थी कि कोविड में चुपके से इस पर दोबारा काम शुरू हो गया। आज जनता फिर से आक्रोशित है। कोईलवर प्रखंड के जमालपुर गांव से होकर आई पीयूसीएल की जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट 23 जुलाई को जारी की है। इस रिपोर्ट के प्रमुख अंश

नरसिंहपुर का चुनावी बांध: यहां विरोध मना है क्योंकि परियोजना का बनना तय है

by

एक बांध परियोजना, जिसे सात साल पहले कई कारणों से बंद कर दिया गया था, कोरोनाकाल में दोबारा शुरू की गई। मध्य प्रदेश के तीन जिलों के सौ से ज्यादा गांव आज डूब की जद में हैं, लेकिन प्रशासन मौन है। नरसिंहपुर से ब्रजेश शर्मा सुना रहे हैं विकास की एक नई कहानी