Culture

Portrait of Satyajit Ray by Rishiraj Sahoo in 1997

…जिनके दामन पर ऑस्कर से आसक्ति एक धब्बे की तरह चिपक गई!

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भारत के कुछ फिल्‍मकारों और सिनेमा-दर्शकों के एक वर्ग को अगर किसी एक व्‍यक्ति ने ऑस्‍कर पुरस्‍कारों के बारे में भ्रमित किया कि इस पुरस्‍कार को पाना पुनर्जन्‍म होने के जैसा है, तो वह सत्‍यजित राय थे। ऑस्‍कर से उनकी आसक्ति ऐसी रही कि अपने देश में मिले ढेर सारे प्‍यार, सराहना और सम्‍मानों के बारे में कहने को उनके पास कभी खास शब्‍द नहीं थे। विद्यार्थी चटर्जी की टिप्‍पणी

Behmai police check post that was established post massacre in 1981

बेहमई : इंसाफ या 43 साल के शोक का हास्‍यास्‍पद अंत?

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पचहत्‍तर साल के लोकतंत्र में तैंतालीस साल पुराने एक मुकदमे में एक फैसला आया है। मुकदमे में दोनों पक्ष के ज्‍यादातर लोग सिधार चुके हैं। कानपुर के पास बेहमई गांव में बीस लोगों की सामूहिक हत्‍या के आरोप में जिस इकलौते शख्‍स को सजा हुई, वह अस्‍सी साल का है। तीन पीढ़ियां जब अपने पितरों का शोक मनाते गुजर चुकी हैं, तो न्‍याय ऐसा मिला है जिसके जोर से एक पतंग भी न उड़ पाए। कोर्ट ऑर्डर की प्रति भी यहां पहुंचेगी कि नहीं, शक है क्‍योंकि इस गांव में एक अदद सड़क नहीं है। बेहमई से लौटकर नीतू सिंह की फॉलो-अप रिपोर्ट

Dhai Akhar team reaches Kim

ये वो गुजरात नहीं है जिसे कभी हिन्दू राष्ट्र की प्रयोगशाला कहा गया था…

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मध्‍य प्रदेश में अपना खास मुकाम हासिल करने के बाद ‘ढाई आखर प्रेम के’ नामक सांस्‍कृतिक यात्रा जब गुजरात पहुंची तो यात्रियों के मन में संदेह, भय और उत्‍तेजना मिश्रित भाव था। साबरमती से शुरू होकर जत्‍था जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, मन में एक नया सवाल घुमड़ता रहा कि ये तो 2002 वाला गुजरात नहीं है और शायद वैसा बनाया भी नहीं जा सकता, जैसी इसकी छवि है। समूची यात्रा में आयोजक, भागीदार और दस्‍तावेजकार के रूप में निरंतर शामिल रहे विनीत तिवारी का संस्‍मरणात्‍मक रिपोर्ताज

पहली बार खादी बुनने वाली श्रमिक महिलाओं का फैशन शो

मध्य प्रदेश: एक यात्रा के बहाने श्रम, प्रेम और ज्ञान की साझा संस्कृति के जिंदा होने की शिनाख्त

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एक धार्मिक राजतंत्र की शक्‍ल लेते इस राष्‍ट्र में साझा संस्‍कृति को बचाने की चिंताएं तो सर्वत्र हैं, लेकिन प्रयास उतने ही कम हैं। इस जटिल परिदृश्‍य में श्रम की महत्‍ता, ज्ञान की आवश्‍यकता और प्रेम की अनिवार्यता को आपस में कैसे पिरोया जाए, इस पर एक प्रयोग आजकल ‘ढाई आखर प्रेम के’ नाम के सांस्‍कृतिक जत्‍थे के माध्‍यम से चल रहा है। यह जत्‍था मध्‍य प्रदेश पहुंचकर कुछ कारणों से खास बन गया, आगे के लिए नजीर बन गया। समूची यात्रा में आयोजक, भागीदार और दस्‍तावेजकार के रूप में निरंतर शामिल रहे विनीत तिवारी का संस्‍मरणात्‍मक रिपोर्ताज

राम घर आ रहे हैं, कौशल्या फुटपाथ पर हैं! पुरुषोत्तम और जगन्नाथ भी…

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यह सच है कि अठारह सौ करोड़ की लागत से बन रहा राम मंदिर, तीस हजार करोड़ की लागत से हो रहा अयोध्‍या का विकास और अपेक्षित तीन लाख श्रद्धालुओं के भारी-भरकम आंकड़े से यहां के रेहड़ी-पटरी वालों और दुकानदारों का काम-धंधा बढ़ेगा। यह भी सच है कि राम मंदिर के कारण अपनी रोजी-रोटी कमा पा रहे लोग मंदिर बनने से खुश हैं। इसके बाद तीसरा सच भी कुबूल कर ही लेना चाहिए- कि हजारों लोगों से उनकी दुकानें छिन गई हैं और जब धंधा बढ़ने का मौका आया है ठीक तभी वे फुटपाथ पर डाल दिए गए हैं। अयोध्‍या से नीतू सिंह की फॉलो-अप रिपोर्ट

‘पॉप’ हिंदुत्‍व: तीन संस्‍कारी नायक और उनकी कुसांस्‍कृतिक छवियां

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भारतीय जनता पार्टी के जन्‍म से ही उसके चुनावी घोषणापत्रों का पहला वादा रहे अयोध्‍या के राम मंदिर में जब प्राण प्रतिष्‍ठा को कुछ दिन ही बच रहे हैं, तब धर्म और शास्‍त्रोक्‍त पद्धतियों पर बहस छिड़ी हुई है। सच्‍चाई यह है कि हिंदू धर्म के रूढ़ हो चुके संस्‍थागत स्‍वरूप को त्‍यागकर उसे लोकप्रिय व सर्वग्राह्य बनाने से भाजपा का यह प्रोजेक्‍ट पूरा हुआ है। नए मीडिया में विभिन्‍न लोकरंजक विधाओं के माध्‍यम से हिंदुत्‍व के प्रचार-प्रसार पर बहुत कम अध्‍ययन हुआ है। इसी विषय पर कुणाल पुरोहित की लिखी पुस्‍तक ‘एच-पॉप’ पर चर्चा कर रहे हैं अतुल उपाध्‍याय

जाएं तो जाएं कहां?

दिल्ली दर-ब-दर: G20 के नाम पर हुई तबाही के शिकार लोग इन सर्दियों में कैसे जिंदा हैं?

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पहली सर्दी के जख्‍म भरे भी नहीं थे कि दूसरी सर्दियां शबाब पर हैं। जिनसे बसाये जाने का वादा किया गया था, उनके सौ साल पुराने रिहाइश के कागज भी अदालतों में काम नहीं आए। दिल्‍ली के बाहरी इलाकों से सुंदरीकरण के नाम पर उजाड़े गए लाखों लोग पटरी, फुटपाथ और यमुना के खादर में तिरपाल लगाकर सो रहे हैं और चोरों के हाथों लुट रहे हैं, शीतलहर में जान गंवा रहे हैं। पिछले जाड़े में जी-20 की तैयारियों के नाम पर शुरू हुए बेदखली के तांडव के शिकार लोगों का हाल बता रही हैं सौम्‍या राज

यूपी में खबरनवीसी: सच लिखने का डर और प्रिय बोलने का दबाव 2023 में राजाज्ञा बन गया

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उत्‍तर प्रदेश में पत्रकारिता पहले से ही कठिन थी। अब लगभग असंभव सी हो गई है। बीते एक साल के दौरान ‘नकारात्‍मक’ खबरें न लिखने के सरकारी फरमान के बाद पत्रकारों के ऊपर जम कर मुकदमे हुए हैं। छोटे गांव-कस्‍बों में दबंगों और माफिया का आतंक अलग से है। विडम्‍बना यह है कि रामराज्‍य लाने की तैयारियों में व्‍यस्‍त मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने रामनाथ गोयनका के चरणों में फूल अर्पित कर के सच को पाबंद करने का काम किया है। लखनऊ से असद रिज़वी की रिपोर्ट

पंजाब: बदलती सरकारें, चढ़ता नशा, मरती जवानी

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पांच साल पहले जब मुख्‍यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ड्रग तस्‍करों को मृत्‍युदंड की सिफारिश की थी, तब लगा था कि उड़ते पंजाब पर लगाम लग जाएगी। फिर सरकार बदली। दस दिन के अंदर नए मुख्‍यमंत्री भगवंत मान ने सूबे को नशामुक्‍त करने की शपथ खाई, तो दिल्‍ली में उन्‍हीं की पार्टी के बड़े नेता शराब घोटाले में अंदर चले गए। अब चुनाव फिर सिर पर हैं तो भाजपा नशामुक्‍त पंजाब का नारा देकर रैलियां निकालने जा रही है। उधर लगातार जारी मौतों के धुंधलके में ड्रग्‍स जब्‍ती के सरकारी आंकड़े श्‍मशान की राख से भी हलके नजर आते हैं। पंजाब से मनदीप पुनिया की ग्राउंड रिपोर्ट

Manglesh Dabral (16 May 1948 – 9 December 2020)

मंगलेश डबराल के अभाव में बीते तीन साल और संस्कृति से जुड़े कुछ विलंबित लेकिन जरूरी सवाल

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वे ‘नुकीली चीजों’ की सांस्‍कृतिक काट जानते थे लेकिन उनका सारा संस्‍कृतिबोध धरा का धरा रह गया क्‍योंकि न तो उन्‍होंने पिता की टॉर्च जलायी न बाहर वालों ने आग मांगी। वे बस देखते रहे और रीत गए। शायद कभी कोई सुधी आलोचक मंगलेश जी के रचनाकर्म में छुपी उस चिड़िया को जिंदा तलाशने की कोशिश कर पाए, जिसका नाम संस्‍कृति है और जिसके बसने की जगह इस समाज की सामूहिक स्‍मृति है।