Economy

Women fetching water in Barmer, Rajasthan

पानी केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, अब वह न्याय का प्रश्न बन चुका है! पी. साईनाथ का व्याख्यान

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गुरुत्‍वाकर्षण के हिसाब से पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है, लेकिन हजारों साल से जाति, वर्ग और लैंगिक भेदों के मारे भारतीय समाज में यह नियम उलट जाता है। यहां पानी नीचे से ऊपर प्रवाहित होता है। यानी, निचले तबके पानी के लिए श्रम करते हैं और ऊंचे तबके उनका पानी हड़प लेते हैं। यह उलटा प्रवाह जब पानी के निजीकरण के साथ मिलता है तो भयावह असमानता का बायस बन जाता है। फिर पानी महज कुदरती संसाधन नहीं, न्‍याय का सवाल बन जाता है। वरिष्‍ठ पत्रकार पी. साईनाथ का व्‍याख्‍यान ‘पानी का रंग: खत्‍म होता एक प्राकृतिक संसाधन और बढ़ती असमानता’

Manmohan Singh

मनमोहन सिंह, भारतीय अर्थव्यवस्था के विरोधाभास और उदारीकरण की सीमाएं

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डॉ. मनमोहन सिंह ने पहले वित्‍त मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री रहते हुए भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को संकटों से उबारने के लिए जो कुछ भी किया वह उस वक्‍त की मजबूरियों के चलते आज बेशक अपरिहार्य जान पड़ता हो, लेकिन हकीकत यह है कि उदारीकरण की मियाद अब खत्‍म हो चुकी है। उसके नुकसान उससे हुए फायदों पर भारी पड़ चुके हैं, तीन दशक का अनुभव यही बताता है। मनमोहन सिंह अपना काम कर के चले गए, भारत को अब आर्थिक सुधारों के नए समाजवादी अध्‍याय की जरूरत है