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Women fetching water in Barmer, Rajasthan

पानी केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, अब वह न्याय का प्रश्न बन चुका है! पी. साईनाथ का व्याख्यान

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गुरुत्‍वाकर्षण के हिसाब से पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है, लेकिन हजारों साल से जाति, वर्ग और लैंगिक भेदों के मारे भारतीय समाज में यह नियम उलट जाता है। यहां पानी नीचे से ऊपर प्रवाहित होता है। यानी, निचले तबके पानी के लिए श्रम करते हैं और ऊंचे तबके उनका पानी हड़प लेते हैं। यह उलटा प्रवाह जब पानी के निजीकरण के साथ मिलता है तो भयावह असमानता का बायस बन जाता है। फिर पानी महज कुदरती संसाधन नहीं, न्‍याय का सवाल बन जाता है। वरिष्‍ठ पत्रकार पी. साईनाथ का व्‍याख्‍यान ‘पानी का रंग: खत्‍म होता एक प्राकृतिक संसाधन और बढ़ती असमानता’

Bharat Mata imagery of RSS

हिन्दुत्व के कल्पना-लोक में स्त्री और RSS के लिए उसके अतीत से कुछ सवाल

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मध्ययुग में पश्चिमी जगत में आधुनिकता के आगमन ने धर्म के वर्चस्व को जो चुनौती दी थी, भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद पैदा हुई परिस्थितियों और राजनीतिक आजादी ने यहां धर्म के प्रभाव को और अधिक सीमित कर दिया। रूढ़िवादी, प्रतिक्रियावादी ताकतों ने समय-समय पर इस बदलाव को बाधित करने की कोशिश की। संविधान निर्माण से लेकर स्त्रियों को अधिकार-संपन्न करने के लिए ‘हिन्‍दू कोड बिल’ को सूत्रबद्ध एवं लागू किए जाने का हिन्दुत्ववादी ताकतों ने जिस तरह से विरोध किया, ऐसी ही बाधाओं का ही परिणाम रहा कि डॉ. आंबेडकर को नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। सुभाष गाताड़े का यह आलेख संविधान-निर्माण के दौरान स्पष्ट तौर पर उजागर हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्त्री-विरोधी विचारों एवं सक्रियताओं की पड़ताल करता है