Saumya Raj

NDLS, 15/02 : खबर मिटाने पर आमादा रेलवे पुलिस के सामने अडिग रही एक रिपोर्टर की डायरी

आधी रात हुई दर्जनों मौतों की गवाहियां सुन-सुन के, दर्ज कर-कर के, थक चुके एक रिपोर्टर को अगर तकरीबन बंधक बनाकर कहा जाय कि उसे अपना सारा काम उड़ाना होगा वरना थाने जाना होगा, तो उसके सामने क्‍या विकल्‍प बचता है? सौम्‍या राज के साथ पंद्रह फरवरी को नई दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन पर यही हुआ, लेकिन उन्‍होंने पुलिस के सामने हथियार नहीं डाले। सत्‍ता के प्रतिकूल खबरों को खुलेआम दबाए जाने के दौर में पेशेवर साहस की एक छोटी-सी पर अहम मिसाल, कुछ जरूरी सवालों के साथ। खुद रिपोर्टर की कलम से

जाएं तो जाएं कहां?

दिल्ली दर-ब-दर: G20 के नाम पर हुई तबाही के शिकार लोग इन सर्दियों में कैसे जिंदा हैं?

पहली सर्दी के जख्‍म भरे भी नहीं थे कि दूसरी सर्दियां शबाब पर हैं। जिनसे बसाये जाने का वादा किया गया था, उनके सौ साल पुराने रिहाइश के कागज भी अदालतों में काम नहीं आए। दिल्‍ली के बाहरी इलाकों से सुंदरीकरण के नाम पर उजाड़े गए लाखों लोग पटरी, फुटपाथ और यमुना के खादर में तिरपाल लगाकर सो रहे हैं और चोरों के हाथों लुट रहे हैं, शीतलहर में जान गंवा रहे हैं। पिछले जाड़े में जी-20 की तैयारियों के नाम पर शुरू हुए बेदखली के तांडव के शिकार लोगों का हाल बता रही हैं सौम्‍या राज