Agriculture

Rajendra Shinde of Jalgaon district of Maharashtra and his wife Sonali, are landless labourers. With their kids and other families, they had come to Delhi due to the drought back home, Courtesy PARI

पलायन का मौसम फिर आ गया, खेतिहर मजदूरों का सवाल किसान आंदोलन में कब आएगा?

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जनवरी खत्‍म होते ही उत्‍तरी महाराष्‍ट्र के गांवों के बस स्‍टैंड दोबारा गुलजार होने लगते हैं। एक ओर दिल्‍ली की सरहद पर किसान एमएसपी की मांग के लिए आमरण अनशन कर रहे हैं तो दूसरी ओर खेतिहर मजदूर अगले पांच महीनों की बेरोजगारी, पलायन और दिहाड़ी के लिए कमर कस रहे हैं। कृषि संकट के समाधानों में एमएसपी केवल एक मसला है, लेकिन सारा आंदोलन इसी के इर्द-गिर्द क्‍यों? जनवरी से जून तक खाली रहने वाले खेतिहर मजदूरों को राजनीति और किसान आंदोलन के विमर्श में कब लाया जाएगा? जलगांव से लौटकर हरेराम मिश्र की रिपोर्ट

एक अदद सिंचाई बांध की राह देखते कनकपुरी के किसान चौधरी रघुवीर सिंह और उनके भाई

रूहेलखण्ड: पहले किसानों के सब्र का बांध टूटेगा या सरकार पक्का बांध बना कर देगी?

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यह उत्तर प्रदेश में बरेली के किसानों का जज्बा है कि वे अपने हाथों और जेब के बल पर सात साल से कच्चा बांध बनाकर खेती को बचाए हुए हैं वरना इस साल दस महीने में सात किसान यहां खुदकुशी कर चुके हैं जबकि सरकारी कागजात में बरेली मंडल कृषि निवेश और विकास की रैंकिंग में अव्वल है। सिंचाई के लिए सौ साल से एक बांध का इंतजार कर रहे यूपी के डेढ़ सौ गांवों की कहानी सुना रहे हैं शिवम भारद्वाज

कृषि मंडियों पर कर्नाटक का फैसला और विपक्षी एकता के संयोजक के लिए एक सबक

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एपीएमसी कानून को रद्द करने वाला बिहार अकेला राज्‍य है। इसके मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता के संयोजक हैं जो बैठक के लिए बेंगलुरू जा रहे हैं। कर्नाटक ने कृषि मंडियों की बहाली का विधेयक पिछले ही हफ्ते पेश किया है, जिसे भाजपा सरकार ने खत्‍म कर दिया था। एकता महज चुनावी रहेगी या उत्‍तर के एक राज्‍य का मुख्‍यमंत्री दक्षिण के दूसरे राज्‍य के फैसलों से कुछ सबक भी लेगा? बिहार में कृषि मंडियों के विनाश पर डॉ. गोपाल कृष्‍ण