A female farmer in Bihar

बिहार: दो दशक की विफल कृषि नीति और मंडी कानून को दोबारा जिंदा करने की तैयार जमीन

बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान सिर पर है। विपक्षी महागठबंधन ने इस बीच अपना मैनिफेस्‍टो जारी किया और आश्‍चर्यजनक रूप से किसानों के लिए मंडी सिस्‍टम यानी एपीएमसी कानून को वापस लाने का वादा किया है, जिसे कोई बीस साल पहले खत्‍म कर दिया गया था। मूलत: कृषि-प्रधान एक सूबे के लिए चुनावी घोषणा के स्‍तर पर ही सही, यह कदम स्‍वागतयोग्‍य है जो अनियंत्रित बाजार में सरकारी हस्‍तक्षेप और भूमिका की दोबारा जगह बनाता है। एपीएमसी कानून को निरस्‍त किए जाने के बाद बिहार की विफल कृषि नीतियों और बदहाल किसानों पर डॉ. गोपाल कृष्‍ण का विश्‍लेषण

Pithampur Ramki Factory where Bhopal waste is scheduled to be burnt

पीथमपुर पहुंचे जहरीले कचरे के बीच एक सवाल- कहां है जस्टिस सिंह-कोचर कमेटी की जांच रिपोर्ट?

मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने मंगलवार को यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले कचरे के निपटान के लिए राज्य सरकार को तीन ट्रायल रन संचालित करने की अनुमति दे दी है। यह ट्रायल रन धार जिले के पीथमपुर स्थित औद्योगिक कचरा प्रबंधन केंद्र में 27 फरवरी से शुरू हो रहा है, जहां स्‍थानीय लोग इसके खिलाफ महीनों से आंदोलन पर आमादा हैं। सवाल है कि भोपाल गैस कांड की जांच के लिए बैठाई गई जस्टिस एनके सिंह और शांतिलाल कोचर की कमेटी की रिपोर्ट को छुपाकर राज्‍य सरकार पीथमपुर में कचरा जलाने पर क्‍यों आमादा है?

INDIA candidates from Bihar's Karakat, Ujiyarpur and Begusarai Loksabha

चुनाव में Fake News : बिहार से विपक्ष के प्रत्याशियों की जुबानी फर्जी खबरों की कहानी

आम चुनाव के अंतिम चरण का प्रचार अब थम चुका है। चार जून को नतीजे आएंगे। क्‍या इस चुनाव पर Fake News का कोई फर्क पड़ा है? क्‍या प्रत्‍याशियों के प्रचार अभियान पर दुष्‍प्रचार का असर पड़ा है? संसदीय चुनाव में खड़े उम्मीदवारों से बातचीत इस समस्या के अनकहे पहलुओं और जमीनी हकीकत को पेश करती है। फेक न्‍यूज पर प्रकाश डालने के साथ बिहार से इंडिया गठबंधन के तीन प्रत्‍याशियों से बातचीत कर रहे हैं डॉ. गोपाल कृष्‍ण

चंदे का धंधा: स्टेट बैंक ‘एक दिन के काम’ के लिए सुप्रीम कोर्ट से महीनों क्यों मांग रहा है?

स्‍टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड का डेटा सार्वजनिक करने के लिए महीनों का समय मांग कर न सिर्फ अपनी मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि डिजिटल इंडिया के नारे पर भी बट्टा लगा दिया है। चूंकि बैंक की मांगी तारीख तक लोकसभा चुनाव संपन्‍न हो चुके होंगे और नई सरकार भी बन चुकी होगी, तो यह मामला उतना सीधा नहीं है। एसबीआइ के लाभकारी मालिकों से लेकर केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी तक सबकी जान सुप्रीम कोर्ट के आदेश में अटकी हुई है। डॉ. गोपाल कृष्‍ण का विश्‍लेषण

Fali S. Nariman

न्याय की अंतहीन प्रतीक्षा और एक न्यायविद का अधूरा प्रायश्चित

अदालती फैसले मुकदमों का अंत नहीं होते। फैसलों के बरसों बाद तक लोग जजों और वकीलों के बारे में अपने-अपने फैसले सुनाते रहते हैं। जज और वकील तो अपनी पेशेवर भूमिका निभाकर और अपने हिस्‍से के सारे तमगे बंटोरकर एक दिन गुजर जाते हैं, लेकिन फिजाओं में उन हादसों के शिकार लोगों का आर्तनाद गूंजता रहता है जिन्‍हें नैतिकता को ताक पर रखकर इन्‍होंने दबाने का काम किया था। दिवंगत न्‍यायविद् फली एस. नरीमन पर डॉ. गोपाल कृष्‍ण का स्‍मृतिलेख

कर्पूरी ठाकुर : न्याय की आस और हक के संघर्ष में बिसर गया एक नैतिक जीवन

जिस शख्‍स को उसकी जन्‍मशती पर जाकर भारत रत्‍न का सम्‍मान मिला है, उसकी मौत आज तक रहस्‍य बनी हुई है। न सिर्फ मौत, बल्कि जिंदगी भर कर्पूरी ठाकुर ने अपने और अपने न्‍यायपूर्ण सरोकारों के हक में जो लड़ाइयां लड़ीं, उनमें से कई अंजाम तक नहीं पहुंचने दी गईं और पहुंची भी हों तो नतीजा कोई नहीं जानता। बिहार में बतौर मुख्‍यमंत्री और विपक्ष के नेता रहते हुए कर्पूरी ठाकुर के लिए फैसले, दायर मुकदमों और छेड़े गए संघर्षों पर डॉ. गोपाल कृष्‍ण की विस्‍तृत नजर

सुप्रीम कोर्ट में मेटाडेटा: एक मुकदमा, जो बदल सकता है भारत के लोगों की सामूहिक नियति

लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संविधान पीठ के सामने एक ऐसा मुकदमा आ रहा है जिस पर फैसले के निहितार्थ बहुत व्‍यापक हो सकते हैं। भाजपा सरकार द्वारा मनी बिल की शक्‍ल में वित्‍त विधेयकों को पारित करवाने के खिलाफ करीब दो दर्जन याचिकाओं पर यह फैसला अगले महीने आना है, जो आधार कानून, इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड और हवाला कानून आदि का भविष्‍य तय करेगा। इनके बीच सबसे बड़ा और अहम मामला आधार संख्‍या का है, जिसके नाम पर भारत के लोगों का मेटाडेटा विदेशी ताकतों को ट्रांसफर किया जा रहा है।

आंकड़ों का राष्ट्रवाद: डेटा सुरक्षा और निजता की चिंताओं के बीच गांधी के सबक

संसद का मानसून सत्र शुरू होने से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संक्षिप्‍त संबोधन में कैबिनेट से पारित हो चुके डेटा प्रोटेक्‍शन बिल 2023 का नाम लिया, जिसे इस सत्र में सदन के पटल पर रखा जाना है। ऐसा लगता है कि सरकार नागरिकों के डेटा और निजता को लेकर काफी संवेदनशील है, लेकिन कहानी ठीक उलटी है। ऐसे ही एक बिल डीएनए प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक, 2019 को इस सत्र में वापस लेने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। डेटा, राष्‍ट्रवाद, नागरिकों की जासूसी और निजता के रिश्‍तों को विस्तार से समझा रहे हैं डॉ. गोपाल कृष्‍ण