Climate Change

Green Capitalism, Painting by Kartik Tripathi

धरती को बचाने के नाम पर सियासत और पूंजी का हरा-भरा गठजोड़

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पूंजीवाद के इस दौर में सार्वजनिक समस्‍याओं के समाधानों की विडम्‍बना यह है कि जिसने बीमारी पैदा की है दवा भी वही दे रहा है। वह बीमारी से भी पैसा कमा रहा है और दवा से भी। पूंजीवाद के फैलाये प्रदूषण से नष्‍ट हो रही धरती के लिए पूंजीपतियों द्वारा पैदा किया गया हरित पूंजीवाद का नुस्‍खा ऐसा ही टोटका है, जो जलवायु परिवर्तन के अपराधबोध से नागरिकों को भर के उन्‍हीं की जेब लूटता है। सरल शब्‍दों में आलोक राजपूत का विश्‍लेषण

मौसम की मार, बेपरवाह सरकार और महुए के फूलने का अंतहीन इंतजार…

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सूखे के मामले में बीते अगस्त ने पिछले सौ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। मानसून में बारिश कम होने से सात राज्य संकट में हैं, लेकिन झारखंड के आदिवासियों की तो कमर ही टूट गई है जिनकी जिंदगी जंगल और उसके फल-फूल के भरोसे चलती है। एक तो बिचौलियों के खेल, उस पर से जलवायु के बदलाव और सरकारी योजनाओं का जमीन पर टोटा, तीनों के जाल में वन आश्रित समुदाय पलायन को मजबूर हैं। पुलिट्ज़र सेंटर के सौजन्य से लातेहार और पलामू से लौटकर सुष्मिता की रिपोर्ट