न्याय के रास्ते धर्मतंत्र की कवायद: जस्टिस श्रीशानंद, विहिप की बैठक और काशी-मथुरा की बारी
byकर्नाटक उच्च न्यायालय के एक जज की अनर्गल टिप्पणियों पर संज्ञान लेने के पांच दिन बाद उन्हें आखिरकार हलके में बरी कर के और साथ ही जजों के लिए किसी दिशानिर्देश का शिगूफा छोड़कर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से पानी में लाठी भांजने का काम किया है। देश की राजधानी में जब केंद्रीय कानून मंत्री और दो दर्जन से ज्यादा पूर्व जजों की मौजूदगी में खुलेआम काशी-मथुरा के मंदिरों की योजना बन रही हो, ऐसे में संवैधानिक नैतिकता के सवाल को कौन संबोधित करेगा? अदालती रास्ते से हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिशों पर सुभाष गाताडे