Ken Saro-Viva

Ken Saro-Viva

तानाशाही सत्ताओं से कैसे न पेश आएं? केन सारो-वीवा की शहादत के तीसवें साल में एक जिंदा सबक

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एक लेखक अपने लोगों और अपने जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए फांसी पर झूल गया था, यह बात आभासी दुनिया के बाशिंदों को शायद मिथकीय जान पड़े। महज तीन दशक पहले दस नवंबर, 1995 को केन सारो-वीवा एक तानाशाह के हाथों शहीद हुए थे। बिलकुल उसी दिन, जब दशकों बाद जेल से आजाद हुए नेल्‍सन मंडेला बतौर राष्‍ट्रपति अपने पहले अंतरराष्‍ट्रीय सम्‍मेलन में भाग ले रहे थे। मुक्तिकामी संघर्षों की धरती अफ्रीका के इतिहास का यह अहम प्रसंग हमारी आज की दुनिया के लिए क्‍यों प्रासंगिक है? केन सारो-वीवा की हत्‍या के एक दशक बाद उनके गांव-शहर होकर आए वरिष्‍ठ पत्रकार आनंद स्‍वरूप वर्मा ने इसे अपनी पुस्‍तक में दर्ज किया है। आज केन सारो-वीवा को याद करते हुए उन्‍हीं की कलम से यह कहानी