Mohan Bhagwat

RSS 100 years celebration in Nagpur

RSS@100 : संविधान की छाया में चक्रव्यूह… संघ अब राजकीय नीति है, नारा नहीं!

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राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ सौ साल का हो गया। ठीक उसी दिन, जब महात्‍मा गांधी की जयन्‍ती थी और दशहरा भी था। बीते लोकसभा चुनाव के बाद वाले एकाध महीने छोड़ दें, तो सौवें साल में संघ-शीर्ष तकरीबन शांत मुद्रा में ही रहा। यह मुद्रा विजयादशमी के एक दिन पहले वाकई राजकीय मुद्रा में तब्‍दील हो गई। गांधी-हत्‍या के बाद जिसे खोटा माना गया था, संघ का वह सिक्‍का 77 साल बाद चल निकला। भारतीय राष्‍ट्र-राज्‍य, लोकतंत्र, संविधान और सत्ताधारी दल के लिए इसके क्‍या निहितार्थ हो सकते हैं? पहले भी संघ पर यहां लिखने वाले व्‍यालोक ताजा संदर्भ में एक बार फिर रोशनी डाल रहे हैं

RSS-BJP

संघ-भाजपा समन्वय सूत्र : सत्ता सर्वोपरि, हिन्दुत्व बोले तो वक्त की नजाकत और पब्लिक का मूड!

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आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत चार-छह महीने के अंतराल पर बौद्धिक कसरत के लिए कोई न कोई बयान दे देते हैं। आम चुनाव के दौरान संघ पर भाजपा की निर्भरता खत्‍म होने संबंधी जेपी नड्डा के औचक बयान के बाद बयानबाजियों और अटकलबाजियों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें संघ-भाजपा के परस्‍पर शक्ति संतुलन को लेकर अजीबोगरीब निष्‍कर्ष निकाले गए। बावजूद इसके, भाजपा चुनाव जीतती गई। केवल उत्‍तर प्रदेश अपवाद रहा, जहां के संभल के संदर्भ में भागवत का एक बयान लंबे समय बाद आया है और संघ-भाजपा के रिश्‍तों पर फिर से पहेलियां बुझायी जा रही हैं। ‘आत्‍मनिर्भर भाजपा’ शीर्षक से 27 मई को लिखे अपने लेख का ‍सिरा पकड़ कर व्‍यालोक ने एक बार फिर इस मसले को नई रोशनी में देखने की कोशिश की है

Narendra Modi and Mohan Bhagwat

आत्मनिर्भर भाजपा : क्या नाक से बड़ी हो चुकी है नथ?

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भाजपा अब अपने बूते काम करने में समर्थ है और आरएसएस पर उसकी निर्भरता नहीं रही- सत्‍ताधारी पार्टी का अध्‍यक्ष अपनी मातृ संस्‍था पर ऐसा बयान देकर निकल जाए और देश में कहीं चूं तक न हो? ऐसा ही बयान यदि कांग्रेस अध्‍यक्ष ने गांधी परिवार के बारे में दिया होता तो विवाद की सहज कल्‍पना की जा सकती है। क्‍या हैं इस बयान के निहितार्थ? संघ-भाजपा के रहस्‍यमय रिश्‍तों पर व्‍यालोक की पड़ताल

Vijayadashmi celebrations of RSS in Nagpur, 2023

निन्यानबे का फेर : फीकी रामनवमी, कम मतदान और भागवत बयान की चुनावी गुत्‍थी

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आरएसएस का शताब्‍दी वर्ष समारोह न मनाने का सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान पहले चरण के मतदान से ठीक पहले आया। तब से दो चरण हिंदी पट्टी में ठंडे गुजर चुके हैं। रामनवमी के जुलूसों से भी चुनाव में गर्मी नहीं आ सकी क्‍योंकि राम मंदिर अब लोगों के आत्‍मसम्‍मान का सवाल नहीं रहा। भगवान अब टेंट में नहीं हैं। तो क्‍या संघ इस लोकसभा चुनाव में बैठ गया है? और क्‍या भाजपा को राम मंदिर का बन जाना पच नहीं पा रहा कि मोदी लौट-लौट कर अयोध्‍या जा रहे हैं? अमन गुप्‍ता की रिपोर्ट