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A demonstrator holds a placard during a protest against the release of the convicts in Bilkis Bano case

नए भारत में बलात्कारियों का संरक्षण : कैसे अच्छे दिन? किसके अच्छे दिन?

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बीते कुछ बरसों के दौरान भारत में यौन अपराधों और इनके केस में सजा होने के बीच बहुत गहरी खाई पनपी है। पीड़ितों की खुदकशी से लेकर उन्‍हीं पर पलट कर मुकदमा किया जाना, अपराधियों का माल्‍यार्पण, सरवाइवर के बयान पर संदेह खड़ा किया जाना, और आखिरकार सजा मिलने पर भी बलात्कारियों का जमानत पर बाहर निकल आना दंडमुक्ति की फैलती संस्कृति का पता देता है। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार आने से पहले राज्यसत्ता और पितृसत्ता ने इसकी जमीन बना दी थी। नारीवादी लेखिका-कार्यकर्ता रंजना पाढ़ी की विस्तृत पड़ताल

Mother of a victim of Hamirpur Double Rape 2024 in her home

यूपी : बेहतर कानून व्यवस्था के छद्म को भेद रहा है आधी आबादी पर फैलता हुआ अंधेरा

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उत्‍तर प्रदेश में भाजपा को वोट देने का इकलौता कारण बेहतर लॉ ऐंड ऑर्डर का दावा है। इस दावे के पीछे दर्जनों आत्‍महत्‍याएं और हजारों बलात्‍कार छुपा लिए गए हैं। कानून वाकई इतना चाक-चौबंद है कि बलात्‍कार के बाद लड़कियां रहस्‍यमय ढंग से मर जा रही हैं, उनके बाप इंसाफ न मिलने पर खुदकशी कर ले रहे हैं और पुलिस दोनों को आत्‍महत्‍या बताकर केस बंद कर दे रही है। बीती फरवरी में हुआ हमीरपुर डबल रेप कांड ऐसी ही तीन मौतें लेकर आया था। चार दशक बाद कोई प्रधानमंत्री हमीरपुर गया, लेकिन केवल नदी जोड़ने की बात कर के चला आया। बलात्‍कृत-मृत दलित लड़कियों के टूटे हुए परिजन ताकते ही रह गए। नीतू सिंह की फॉलो-अप रिपोर्ट