Poverty

Poverty in India

गरीबी खत्म होने के झूठे दावे और हजार करोड़ का एक जश्‍न

by

आम चुनाव से ठीक पहले सरकार द्वारा जारी किए गए उपभोग-व्‍यय के आंशिक आंकड़ों के आधार पर सुरजीत भल्‍ला करन भसीन ने जल्‍दबाजी में ब्रूकिंग्‍स इंस्टिट्यूशन की ओर से भारत में अत्‍यधिक गरीबी खत्‍म होने की मुनादी कर दी। नोटबंदी, जीएसटी और अंत में महामारी की मारी अधिकांश आबादी के बीच जहां एक शख्‍स अपने बेटे की प्री-वेडिंग पर हजार करोड़ खर्च करता है, वहां ये सरकारी आंकड़े दुर्गंध फैलाने से ज्‍यादा किसी काम के नहीं। अर्थशास्‍त्री अशोक मोदी की टिप्‍पणी

अच्छा और बुरा अर्थशास्त्र

by

सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में जब अभिजीत एक अर्थशास्त्री बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहे थे उस वक्त सोवियत रूस के प्रति थोड़ा सम्मान बचा हुआ था जबकि भारत उसके जैसा बनने की पूरी कोशिश कर रहा था। वामपंथी अतिवादी चीन को मानते थे, चीनी लोग माओ की पूजा करते थे, रीगन और थैचर ने आधुनिक कल्याणकारी राज्य पर अपने हमले अभी शुरू ही किए थे और दुनिया के करीब 40 फ़ीसदी आबादी भयंकर गरीबी में जी रही थी। तब से लेकर अब तक कितना कुछ बदल चुका है और शायद इसमें काफी कुछ बेहतरी के लिए है।