भुला दी गईं माँओं और सवालिया नागरिकताओं के देश में शांति मजुमदार की कहानी का जी उठना…
byपांच साल पहले नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन हुआ था। आज जब सैकड़ों की संख्या में पिछले चार माह से मुस्लिम बांग्लाभाषियों को चुन-चुन कर बांग्लादेश भेजा रहा है, नागरिकता के दावे रद्द किए जा रहे हैं और सरकारी कागजों का अदालतों में कोई अर्थ नहीं रह गया, सड़कें सूनी हैं। ऐसे में अचानक एक कहानी जिंदा हुई है- बंगाल की उस मां की कहानी, जिसने अपने नौ बच्चे धरती पर न्योछावर कर दिए फिर भी उसे अंत में यहां शरणार्थी ही माना गया। बीते 26 अगस्त को दिल्ली में मंचित हुए एक नाटक के बहाने नागरिकता के संकट पर अभिषेक श्रीवास्तव की कहानी