पुस्तक अंश: हिन्दी-उर्दू शुरू में एक ही थीं, उन्हें बांटना भारत के विभाजन की छल भरी शुरुआत थी!
byहिंदी को लेकर आम हिंदीभाषियों में बहुत सी गलत धारणाएं और भ्रम हैं। जाहिर है, यह इतिहासबोध के अभाव और गौरवबोध के संकट के चलते हुआ है। एक ओर अंग्रेजी और दूसरी ओर उर्दू के प्रति दोहरा विद्वेष जो संस्कृतनिष्ठ हिंदी और संस्कृत के प्रति मोह को जन्म देता है, ऐतिहासिक रूप से गलत जमीन पर खड़ा है। भाषाविद् डॉ. पेगी मोहन ने अपनी किताब “Wanderers, Kings, Merchants: The Story of India through Its Languages” में हिंदी और उर्दू के कभी एक होने और फिर जुदा हो जाने के इतिहास पर बाकायदे एक अध्याय लिखा है! हिंदी दिवस पर वहीं से कुछ अहम अंश