बिहार: परंपरा और लोकलाज के दबाव में गर्व और कर्ज का मर्ज बनता पितरों का श्राद्धभोज

पितृपक्ष बीत गया। हर साल की तरह इस बार भी अंधविश्‍वास और कुरीतियों के खिलाफ तथा परंपराओं के पक्ष में खूब कागजी बहसें चलीं, लेकिन देश भर में अर्पण-तर्पण से लेकर भोज-भात चलता रहा। राजस्‍थान में मृत्‍युभोज के खिलाफ बने कानून का वहां कोई असर नहीं दिखता। बिहार का मिथिलांचल इस मामले में हमेशा की तरह सबसे आगे रहा। कर्ज लेकर, जमीन बेचकर भी लोग अपनी प्रतिष्‍ठा बचाते रहे। इसके बावजूद कई जगह इस परंपरा का विरोध हो रहा है, बेड़ियां टूट रही हैं। राहुल कुमार गौरव ने अपनी रिपोर्ट में जमीन पर हो रहे बदलाव का आकलन किया है

Nitish and Modi together on a hoarding

बिहार : संघ-भाजपा की दाल यहां अकेले क्यों नहीं गल पाती है?

पिछले आम चुनाव में बिहार में एक को छोड़कर सारी सीटें जीतने वाले एनडीए के पास इस बार बहुत कुछ पाने को नहीं है, लेकिन गिरने की गुंजाइश बरकरार है। नरेंद्र मोदी की 12 मई को पटना में होने वाली भव्‍य रैली संभव है इस गिरावट को थाम ले, लेकिन सवाल है कि मोदी लहर और हिंदुत्‍व के चरम उभार के दौर में भी बिहार में भाजपा को गठबंधन का सहारा क्‍यों लेना पड़ रहा है? क्‍या चीज भाजपा के लिए बिहार को हिंदी पट्टी में अपवाद बनाए हुए है? और क्‍या अगले साल अपने दम पर बिहार में भाजपा सरकार बना सकेगी? राहुल कुमार गौरव की पड़ताल