…जिनके दामन पर ऑस्कर से आसक्ति एक धब्बे की तरह चिपक गई!
भारत के कुछ फिल्मकारों और सिनेमा-दर्शकों के एक वर्ग को अगर किसी एक व्यक्ति ने ऑस्कर पुरस्कारों के बारे में भ्रमित किया कि इस पुरस्कार को पाना पुनर्जन्म होने के जैसा है, तो वह सत्यजित राय थे। ऑस्कर से उनकी आसक्ति ऐसी रही कि अपने देश में मिले ढेर सारे प्यार, सराहना और सम्मानों के बारे में कहने को उनके पास कभी खास शब्द नहीं थे। विद्यार्थी चटर्जी की टिप्पणी