Jansuraj hoarding in Patna

प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’: गांधी के नाम पर एक और संयोग या संघ का अगला प्रयोग?

बारह साल पहले गांधी का नाम लेकर आम आदमी के नाम पर दिल्‍ली में एक राजनीतिक पार्टी बनी थी। अबकी गांधी जयंती पर पटना में जन के नाम पर एक और पार्टी बनी है। आम आदमी पार्टी और जन सुराज दोनों के मुखिया देश में नरेंद्र मोदी के राजनीतिक उदय की न सिर्फ समानांतर पैदाइश दिखते हैं, बल्कि दोनों की विचारधारा से लेकर कार्यशैली तक में काफी समानताएं हैं। बिहार असेंबली चुनाव के ठीक पहले जन सुराज के बनने को वहां के लोग कैसे देख रहे हैं? क्‍या यह नई पार्टी कथित राजनीतिक वैक्‍युम में कोई विकल्‍प दे पाएगी? दो अक्‍टूबर को पटना में जन सुराज के अधिवेशन से लौटकर विष्‍णु नारायण की विस्‍तृत रिपोर्ट

छत्तीसगढ़: एक कानून बना कर उसे जमीन पर उतारने में पांच साल क्यों कम पड़ गए?

हिंदी पट्टी में सबसे पहले पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक कानून बनाने की मांग छत्‍तीसगढ़ से ही उठी। यह मुद्दा पिछले विधानसभा चुनाव में इतना गरमाया हुआ था कि कांग्रेस पार्टी को अपने घोषणापत्र में पत्रकार सुरक्षा कानून लाने का वादा करना पड़ा। भूपेश बघेल की सरकार आने के बाद ऐसा कानून बनाने में राज्‍य सरकार को पूरे साढ़े चार साल लग गए। बीते मार्च में यह कानून बनकर पारित हुआ, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। रायपुर से विष्णु नारायण की रिपोर्ट