कैसरगंज का सांसद भाजपा की मजबूरी क्यों बना हुआ है?

क्‍या दिल्‍ली में बृजभूषण सिंह के इस्‍तीफे की मांग पर चल रहे आंदोलन का कैसरगंज में कोई असर है? भाजपा सांसद के क्षेत्र से जमीनी जायजा लेकर लौटे इम्तियाज़ अहमद की रिपोर्ट

गोण्डा से लौटकर


पहलवान लंगोट का पक्का होता है– पहलवानों के धरने के बारे में पूछे जाने पर भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के करीबी राजरत्‍न सिंह उनके ईमान को उनकी पहलवानी के साथ जोड़ते हुए साफ कहते हैं कि दिल्‍ली में जो कुछ भी चल रहा है वह सब एक राजनीतिक साजिश का हिस्‍सा है। बात सिर्फ बिरादरी, निकटता या क्षेत्र की होती तो समझी जा सकती थी लेकिन उत्‍तर प्रदेश के कैसरगंज में आम तौर से अपने संसद प्रतिनिधि के बारे में लोगों की यही धारणा है।

तो क्‍या वे पहलवान कच्‍चे हैं जो धरना दे रहे हैं? इस सवाल पर गोण्डा में कुछ लोग मानते हैं कि देश के इतने नामी-गिरामी पहलवान बिना वजह तो खुद की बेइज्जती नहीं कराएंगे। कुछ न कुछ तो ऐसा जरूर हुआ होगा, जिसकी वजह से इनको सामने आना पड़ा। धुआं है, तो आग कहीं न कहीं जरूर सुलग रही होगी।

यह कुछ न कुछ क्‍या है, 6 मई के द इंडियन एक्‍सप्रेस में छपकर सामने आ चुका है। सात में से दो महिला पहलवानों ने आरोप लगाया है कि कुश्‍ती संघ के अध्‍यक्ष सांसद बृजभूषण ने मौके-बेमौके अलग-अलग जगहों पर उन्‍हें अनुपयुक्‍त ढंग से अवांछित जगहों पर छुआ है। ऐसी हरकतें कुश्‍ती संघ के दिल्‍ली स्थित दफ्तर में भी की गई हैं। अखबार के मुताबिक एक महिला पहलवान ने ऐसे पांच मौके गिनवाए हैं जब भाजपा सांसद ने अनुपयुक्‍त ढंग से स्‍पर्श के माध्‍यम से उनकी यौन प्रताड़ना की।



इस खबर के छपने के बाद पश्चिमी यूपी, राजस्‍थान और हरियाणा की खाप पंचायतों ने बैठक कर के इतवार 7 मई को दिल्‍ली कूच का नारा दे दिया। इतवार की सुबह से दिल्‍ली का जंतर-मंतर छावनी में तब्‍दील किया जा चुका था। हरियाणा से लगने वाले सिंघु बॉर्डर और यूपी से लगने वाले गाजीपुर बॉर्डर पर जबरदस्‍त पुलिसबल की तैनाती थी। उधर, दिल्‍ली से साढ़े छह सौ किलोमीटर दूर कैसरगंज 4 मई को हुए निकाय चुनाव में मतदान करने के बाद परिणामों के इंतजार में ऊंघ रहा था।

कस्बा कैसरगंज


निकाय चुनाव प्रचार से तीन दिन पहले ही फारिग बृजभूषण शरण सिंह की बेचैनी का आलम दिल्ली के जंतर-मंतर पर खाप पंचायतों की बैठक होने तक इतना बढ़ चुका था कि उन्होंने बयान दे डाला, कि अगर उनके ऊपर लगाया गया एक भी आरोप सही निकलता है तो वे फांसी लगा लेंगे! इस बयान में जो आत्मविश्वास छुपा है, वह निराधार नहीं है। उसके पीछे जनाधार की ताकत काम कर रही है, ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली में धरने पर बैठे पहलवानों के पीछे एक समुदाय की ताकत लगी हुई है।

मतदान से दो दिन पहले और मतदान के दिन, कम से कम दो बार यह संवाददाता कैसरगंज गया, यह अंदाजा लगाने के लिए कि क्‍या दिल्‍ली में कैसरगंज के सांसद के इस्‍तीफे की मांग पर चल रहे आंदोलन का वहां कोई असर है या नहीं। मतदान से पहले तक स्थिति यह थी कि सांसद बृजभूषण अपने क्षेत्र में लगातार चुनाव प्रचार करते घूम रहे थे जबकि उनके सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उनके ऊपर दिल्ली पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज कर लिया है, लेकिन गिरफ्तारी अब तक नहीं हुई। वे लगातार खुद को निर्दोष बता रहे हैं।

लोकसभा क्षेत्र कैसरगंज के लोगों से बृजभूषण शरण सिंह के बारे में बात करने पर उनके राजनीतिक जीवन से जुड़े तमाम पहलू और किस्‍से निकलकर सामने आए, हालांकि पहलवानों के आंदोलन को लेकर एक किस्‍म की उदासीनता ही दिखी।

कैसरगंज कभी समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे बेनी प्रसाद वर्मा का गढ़ हुआ करता था। वे लगातार चार बार यहां से सांसद रहे। इसके बाद 2009 में बृजभूषण शरण सिंह ने इस सीट पर समाजवादी पार्टी के टिकट पर जो कब्‍जा जमाया, तो वे पार्टी बदलने के बावजूद लगातार तीन बार यहां से जीतते आ रहे हैं। याद हो कि भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील के समय कांग्रेस सरकार के समर्थन में कुछ सांसदों को वोट करने के लिए राजी करने के कारण भाजपा ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बदले में दिवंगत मुलायम सिंह यादव ने उन्हें कैसरगंज से टिकट दिया था।

क्षेत्र के लोग बताते हैं कि बृजभूषण की जीत का आधार कभी भी कोई पार्टी नहीं रही, चाहे सपा हो या भाजपा। लोग मानते हैं कि कोई भी सीट हो या कोई भी सरकार, बृजभूषण का दबदबा हर बार कैसरगंज में कायम रहा। यही वजह है कि 2009 में जब सपा ने इन्हें कैसरगंज से प्रत्याशी बनाया तो इन्होंने 63 हजार वोट के भारी अंतर से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को मात दे दी। फिर पांच साल बाद 2014 में चुनाव से ठी‍क छह महीने पहले उन्होंने जब भाजपा में वापसी की, तब से लेकर अब तक इस सीट पर उनका ही कब्जा बना हुआ है।

जनाधार की ताकत

बृजभूषण शरण सिंह भले ही देशभर में राजनेता और पहलवान के तौर पर पहचाने जाते हैं, लेकिन क्षेत्र के  लोग उन्हें कुछ और ही बताते हैं। कस्बे में एक दुकान चलाने वाले संतोष सिंह बताते हैं कि वह नेता कम, व्यवसायी ज्यादा हैं। इसी में उनके बाहुबल का राज भी छिपा है।

संतोष बताते हैं कि उनके स्कूल-कॉलेजों की संख्या 60 के आसपास है। इनमें हजारों की संख्या में स्टाफ और छात्र हैं। ये कर्मचारी और छात्र चुनाव के समय क्षेत्र में उतरकर बृजभूषण के लिए समर्थन जुटाने का काम करते हैं। उनको जीत दिलाने के लिए हर तरह के प्रयास किए जाते हैं।

कैसे प्रयास? थोड़ा दबाव डालने पर वे खुलकर न बोलते हुए इशारों में कहते हैं कि ‘’एक तो वे दबंग हैं, ऊपर से पैसे की कमी नहीं है। तो चुनाव जीतने के लिए जहां जिसकी जरूरत होती है, वहां उनके लोग वैसा ही काम करते हैं।‘’

संतोष के कहे की पुष्टि करते हुए कैसरगंज में भाजपा के एक बूथ अध्यक्ष नाम न छापने की शर्त पर एक वाकया बताते हैं, ‘’एक बार चुनाव के समय मुझको बूथ की जिम्मेदारी मिली थी। उस बूथ पर अधिकतर वोट उस जाति का था जो मूलतः मायावती का वोटर माना जाता है। सभी को एक भगवा गमछा और 500 का नोट एक तरफ से बांटा गया।‘’ इसके बाद परिणाम उनके अनुकूल आए।

बाहुबली की छवि


निकाय चुनाव के दौरान बृजभूषण शरण सिंह का कैसरगंज स्थित कार्यालय, फोटो: इम्तियाज़ अहमद

लोगों की नजर में बृजभूषण भले सबसे पहले व्‍यवसायी हों लेकिन खुद के बारे में उन्‍हें कोई मुगालता नहीं है। मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में बृजभूषण शरण सिंह ने खुद को बाहुबली बताया था। बाहुबली की परिभाषा भी वो अपने ही स्टाइल में बताते हैं। उनका कहना है कि बाहुबली मतलब शारीरिक रूप से ताकतवर, जो कि वे हैं भी।

उनके बाहुबल के किस्‍से यहां आम हैं। उनकी दबंगई का आलम यह है कि कैसरगंज विधानसभा से बसपा के विधानसभा प्रत्याशी रहे एक नेता खुलेआम उनका गुणगान करते दिखाई देते हैं।

कैसरगंज निवासी मो. अहमद बताते हैं कि सिर्फ पंडित सिंह ही एक ऐसा नेता था जो बृजभूषण शरण सिंह को सीधे चुनौती दे सकता था। 2014 में जब बृजभूषण सिंह भाजपा के पाले में चले गए तब कैसरगंज से उनके सामने सपा ने पंडित सिंह को मैदान में उतारा, हालांकि पंडित सिंह भी बृजभूषण की रणनीति की काट नहीं निकाल सके। ये वही पंडित सिंह हैं जिनके भाई के साथ कभी बृजभूषण ने अपना धंधा शुरू किया था और बाद में उनके हत्‍यारे को मार दिया था।

एक स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कैसरगंज की सीट से उनके सामने सपा-बसपा गठबंधन के साझा प्रत्याशी पूर्व मंत्री चंद्रदेव राम यादव उर्फ करेली यादव खड़े थे। वोटिंग के समय अचानक से इन दोनों नेताओं का आमना-सामना हो गया। उन्‍हें देखते ही बृजभूषण सिंह ने अपने समर्थकों से कहा- ‘’एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा’’! उनके इतना कहते ही बृजभूषण के समर्थकों ने यादव को दौड़ा लिया। गठबंधन के प्रत्याशी बड़ी मुश्किल से वहां से निकल पाए।

बृजभूषण शरण सिंह की दबंगई के ऐसे तमाम किस्से कैसरगंज, गोंडा के इलाके में लोगों की जुबान पर हैं। 

आपराधिक इतिहास

छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले बृजभूषण सिंह ने एक पुलिस अधीक्षक के ऊपर पिस्‍तौल तानकर इलाके में अपनी दबंगई का पहला परिचय दिया था। इससे पहले वे इलाके के दूसरे दबंग नेता पंडित सिंह के भाई रविंदर सिंह के साथ खनन की ठेकेदारी करते थे। एक इंटरव्यू में बृजभूषण सिंह इन्हीं रविंदर सिंह की जान लेने वाले की हत्या की बात कबूलते हैं।

रविंदर की मौत के बाद पंडित सिंह से लेन-देन के चलते इनके रिश्ते खराब होते चले गए। स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि एक बार एक बैठक के दौरान पंडित सिंह पर बृजभूषण सिंह की तरफ से जमकर गोलियां चलीं। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने हेलीकॉप्टर भेजकर पंडित सिंह का तुरन्त इलाज कराकर उनकी जान बचाई थी। इस केस में पंडित सिंह ने कभी भी बृजभूषण के खिलाफ गवाही नहीं दी, जिसकी वजह से मामला खत्म हो गया।

बृजभूषण शरण सिंह के ऊपर दायर मुकदमों की सूची

इसी तरह की घटनाओं में हालांकि बृजभूषण के ऊपर गोंडा, बहराइच और अयोध्या में दर्जनों केस दर्ज हैं। जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों ने उनके अपराधों की लंबी सूची भी जारी की थी। बृजभूषण पर शिक्षा माफिया, जमीन कब्जाने, धमकी देने के बहुत से आरोप लग चुके हैं। कहा जाता है कि वे सजातीय नेताओं को भी नहीं बख्शते। कैसरगंज में शायद इसी वजह से उन्हीं की जाति के लोग उनके लिए बड़बोला, घमंडी जैसे शब्दों का प्रयोग करते दिखाई दिए।

मुस्लिम समर्थक

कैसरगंज में मुसलमान मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है। जाहिर है, चुनाव में इनका वोट भाजपा प्रत्‍याशी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ ही जाता है। अतीत में हालांकि कई बार ऐसे भी मौके भी आए जब क्षेत्र के मुसलमान इनके समर्थन में उतर पड़े थे।

बात उस समय की है जब बृजभूषण सिंह ने महाराष्ट्र के चर्चित नेता राज ठाकरे के अयोध्या दौरे का विरोध किया था। बृजभूषण महाराष्ट्र में उनके द्वारा उत्तर भारतीयों के साथ व्यवहार को लेकर खफा थे। उन्होंने अपने बयान में कहा था कि राज ठाकरे जब तक उत्तर भारतीयों से माफी नहीं मांगेंगे तब तक उन्हें अयोध्या में घुसने नहीं दिया जाएगा।

सपा नेता सैय्यद सैफ बताते हैं कि इस बात को लेकर क्षेत्र के मुस्लिम उनके समर्थन में उतर आए थे। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा, ‘’यहां के बहुत से लोग मुंबई में व्यवसाय करने जाते हैं। ऐसे में जब उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया गया तो उन्हें भी तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसी वजह से भाजपा सांसद के बयान पर क्षेत्र के मुस्लिम उनके समर्थन में उतर आए थे।‘’

ऐसे ही पहलवानों वाले मामले में भी यहां के कुछ मुस्लिम उनके साथ खड़े दिखाई देते हैं। ये मुसलमान एनआरसी-सीएए और शाहीन बाग को लेकर पहलवान बबिता फोगाट के किए ट्वीट का हवाला देते हैं। यह बताने पर कि धरने पर बैठी पहलवान विनेश फोगाट और साक्षी मालिक ने कभी भी ऐसा कोई मुसलमान विरोधी बयान नहीं दिया, वे चुप्पी साध लेते हैं।

पहलवानी का शौक रखने वाले बृजभूषण सिंह पर बाहुबली और अपराधी होने का आरोप तो कई बार लगा। खुद उन्‍होंने ही एक हत्‍या के बारे में खुलकर मीडिया में स्‍वीकार किया था, लेकिन यौन शोषण का गंभीर आरोप जीवन में उनके ऊपर पहली बार लगा है और बाकायदा मुकदमा दर्ज हो चुका है। यह बात आम तौर से कैसरगंज के लोगों के गले नहीं उतर रही है।


भाजपा का चुनाव कार्यालय, कैसरगंज

उनको करीब से जानने वाले लोग यौन शोषण के आरोपों को सिरे से नकारते हैं। राजरत्न सिंह कहते हैं, ‘’दरअसल 11 साल से कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद पर इनका कब्जा है। इसीलिए जान-बूझ कर इनके खिलाफ षड्यंत्र किया जा रहा है।‘’

एक स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि कैसरगंज लोकसभा सीट के अधिकतर मतदाता ग्रामीण इलाकों से आते हैं। ऐसे में इन लोगों को पहलवानों के मुद्दे से खास असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन यह मुद्दा अगर ऐसे ही बना रहा तो भाजपा को हरियाणा, पश्चिमी यूपी और राजस्थान जैसी जगहों पर भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

वे कहते हैं, ‘’ऐसे में जितनी मुश्किल बृजभूषण शरण सिंह के सामने है उससे कहीं ज्यादा समस्या भाजपा के सामने है।‘’

भाजपा की दिक्‍कत

भाजपा इस समस्‍या को समझती है। पार्टी में प्रदेश स्‍तर के एक नेता कहते हैं कि बृजभूषण तो कहीं से भी चुनाव जीत जाएंगे, उनके बगैर छह-सात सीटों पर भाजपा का नुकसान हो जाएगा। इसीलिए भाजपा उनके मामले पर चुप्‍पी साधे बैठी है। बृजभूषण ने यह कहकर भाजपा नेतृत्‍व को सांसत में डाल दिया था कि यदि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री उनसे कुश्‍ती संघ से इस्‍तीफा देने को कहते हैं तो वे सहर्ष तैयार होंगे। जाहिर है, बृजभूषण के पास इसकी पहले से कोई न कोई तैयारी होगी।

कुछ दिनों पहले ही उन्‍होंने पहलवानों के आंदोलन के मामले पर समाजवादी पार्टी के धैर्य की सराहना करते हुए अखिलेश यादव के बारे में कहा था, ‘’अखिलेश जी सच जानते हैं। मुझे राजनीति का शिकार बनाया जा रहा है। मेरे खिलाफ आंदोलन कर रहे पहलवानों का सामाजिक दायरा किसी से छिपा नहीं है।” इससे अटकलें लगना शुरू हो गई थीं कि भाजपा ने अगर दबाव में आकर कोई कार्रवाई की, तो बृजभूषण के लिए समाजवादी पार्टी के दरवाजे खुले हुए हैं।

बृजभूषण ने मुलायम सिंह के कहने पर यूपीए की सरकार बचाई थी

सपा के लिए भी बृजभूषण की घर वापसी फायदेमंद सौदा साबित होगी क्‍योंकि राजा भैया के साथ संबंध बिगड़ने के बाद अब सपा के पास कोई मजबूत राजपूत चेहरा नहीं बचा है। इसीलिए टीवी चैनलों पर आने वाले सपा के प्रवक्‍ताओं को फिलहाल स्‍पष्‍ट निर्देश है कि वे पहलवानों के मुद्दे पर कोई साफ पक्ष न रखें और बृजभूषण या कुश्‍ती संघ के खिलाफ न जाएं।

जाहिर है, दिल्‍ली में पहलवानों का उग्र होता आंदोलन निजी तौर पर बृजभूषण शरण सिंह के राजनीतिक करियर के लिए उतना नुकसानदेह नहीं है जितना भाजपा के लिए है। यह एक ऐसी हड्डी है जो न तो भाजपा से निगलती बन रही है न उगलती। इसीलिए उसने किसान आंदोलन की तरह इस मामले में भी प्रतिक्रिया न देने की सोची-समझी रणनीति अपनाई है। बहुत संभव है कि अगर बृजभूषण पर कोई कार्रवाई हो भी, तो कर्नाटक चुनाव के परिणाम यानी 13 मई से पहले इसकी सूरत नहीं दिखती।

वैसे, 7 मई को राकेश टिकैत की अगुवाई में हुई किसान नेताओं, खाप प्रमुखों और खिलाड़ियों की बैठक के बाद पहलवानों ने अपनी तरफ से 21 मई तक यानी दो हफ्ते का अल्टीमेटम सरकार को देकर फिलहाल राहत की स्थिति बना दी है।


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