सोमवार 8 मई की शाम को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए हंगामाखेज प्रचार समाप्त हो गया। इस प्रचार का इंद्रधनुषी चरम दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोडशो में दिखा जब बेंगलुरु में लगातार उनके काफिले पर फूलों की बारिश होती रही। ऐसी रिपोर्टें आईं कि भारतीय जनता पार्टी ने न सिर्फ कर्नाटक, बल्कि आसपास के राज्यों से भी अलग-अलग रंग के फूल भारी मात्रा में मंगवाए थे। इनकी कीमत करोड़ों में आंकी जा रही है। जाहिर है, ऐसा उस राज्य में बिलकुल संभव है जिसने पिछली बार देश का सबसे महंगा विधानसभा चुनाव होने का रिकॉर्ड बनाया हो। इस बार भी माना जा रहा है कि कर्नाटक अपने रिकॉर्ड को न केवल कायम रखेगा बल्कि अपना बनाया पिछला रिकॉर्ड तोड़ देगा।
अबकी कर्नाटक चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री 2018 में हुए पिछले चुनावों की तुलना में नौ गुना बढ़ गई है। भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी 29 अधिकृत शाखाओं में 3 अप्रैल से 12 अप्रैल तक राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए चुनावी बॉन्ड की बिक्री शुरू की थी। संयोग नहीं है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव 10 मई को हो रहे हैं और मतगणना 13 मई को होगी। पैसे का इंतजाम इसके ठीक महीने भर पहले किया गया। ऐसा पिछले पांच वर्षों में कई बार हुआ है जब राज्यों के चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री की तारीख तय की गई है। हर बार भाजपा ने ही सबसे ज्यादा कमाई इन बॉन्डों की खरीद और बिक्री से की है।
सेवानिवृत्त कमोडोर लोकेश बत्रा लंबे समय से चुनावी बॉन्डों की पोल खोल रहे हैं। इस बार भी उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया था। उसके जवाब की जानकारी पिछले दिनों कुछ अखबारों में छपी है। भारतीय स्टेट बैंक ने बत्रा को आरटीआइ के तहत दिए जवाब में कहा है कि पिछले महीने कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के दौरान कुल 970.50 करोड़ रुपये मूल्य के 1470 चुनावी बॉन्ड बेचे गए। यह अप्रैल 2018 में बिके 114.90 करोड़ रुपये के 256 चुनावी बॉन्डों की तुलना में नौ गुना है।
इस अंदाजे से देखें, तो 115 करोड़ रुपये के आसपास बिके बॉन्डों वाले चुनाव में अगर दस हजार करोड़ का प्रचार खर्च आया था जो रिकॉर्ड था, तो अबकी नौ गुना ज्यादा बॉन्डों की बिक्री के साथ कुल चुनावी खर्च कायदे से एक लाख करोड़ के आसपास पहुंच जाना चाहिए, हालांकि यह गणित इतना सीधा नहीं है।
सबसे महंगा विधानसभा चुनाव
पिछले चुनाव में 2018 में कर्नाटक में सभी राजनीतिक दलों ने साढ़े नौ हजार करोड़ से साढ़े दस हजार करोड़ रुपये के बीच पैसा खर्च किया था। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने एक अध्ययन करवाया था जिसमें यह बात सामने आई थी कि कर्नाटक के सभी दलों ने 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले दोगुना पैसा बहाया था। बहुत संभव है कि 2023 का चुनाव इस मामले में दोगुना या तिगुना नहीं बल्कि कई गुना ज्यादा निकले। इसकी इकलौती वजह 2018 में लाई गई चुनावी यानी इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था है।
चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था शुरू होने के बाद पहले दो पूर्ण वित्तीय वर्षों यानी 2018-19 और 2019-20 के दौरान 2.55 हजार करोड़ रुपये और 3.44 हजार करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए। प्रवृत्ति से उलट, 2020-21 में खरीदे गए चुनावी बॉन्ड के मूल्य में 472 करोड़ रुपये की भारी गिरावट आई थी, जो कोविड-19 महामारी के साथ सुसंगत भी था। आगामी वर्ष यानी 2021-22 में 2.67 हजार करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे गए। यह 2019-20 के बाद किसी वित्त वर्ष में दूसरा सबसे अधिक मूल्य है। इसे 2021-22 के दौरान कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के संदर्भ में समझा जा सकता है।
इसके लाभार्थी तब तक अज्ञात थे जब तक कि राजनीतिक दलों ने अपने वार्षिक ऑडिट बहुत बाद में चुनाव आयोग में जमा नहीं करवा दिया। हाल ही में अधिकतर मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के राजनीतिक दलों ने 2021-22 के लिए अपनी ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत की है। रिपोर्टों के विश्लेषण के मुताबिक 2021-22 में खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का लगभग 39 प्रतिशत भाजपा द्वारा भुनाया गया जबकि 20 प्रतिशत तृणमूल कांग्रेस द्वारा भुनाया गया।
सबसे बड़ी लाभार्थी भाजपा
भारतीय स्टेट बैंक से प्राप्त आरटीआइ जानकारी के अनुसार 2021-22 के दौरान भुनाए गए बॉन्ड का कुल मूल्य 2.67 हजार करोड़ रुपये था। 2021-22 में खरीदे गए कुल चुनावी बॉन्ड में से भाजपा ने 1.03 हजार करोड़ रुपये के ईबी को भुनाया है, जो कुल भुनाए गए बॉन्ड का लगभग 39 प्रतिशत आता है। कांग्रेस ने 236.1 करोड़ रुपये के बॉन्ड भुनाए हैं और 2021-22 में इस मामले में वह राजनीतिक दलों के बीच पांचवें स्थान पर है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चुनावी बॉन्डों की स्थापना के बाद से कांग्रेस इसके लाभार्थी के रूप में भाजपा के बाद दूसरे स्थान पर रही है। 2021-22 में तृणमूल कांग्रेस ने 528.14 करोड़ रुपये के साथ बॉन्ड के दूसरे उच्चतम मूल्य को भुनाया है, यानी उसके कुल मूल्य का लगभग पांचवां हिस्सा। इसके बाद डीएमके का स्थान है, जिसने 306 करोड़ रुपये के बॉन्ड को भुनाया। संयोग नहीं है कि पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु की राज्य विधानसभाओं के चुनाव 2021-22 के दौरान ही हुए थे। उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड अन्य राज्य थे जहां 2021-22 के दौरान चुनाव हुए थे।
सबसे अहम बात यह है कि भाजपा 2021-22 तक भुनाए गए चुनावी बॉन्ड के 57 प्रतिशत की लाभार्थी रही है, हालांकि 2021-22 में भुनाए गए कुल चुनावी बॉन्ड में भाजपा की हिस्सेदारी 2020-21 से पहले के हिस्से से कम है, फिर भी यह चुनावी बॉन्ड की सबसे बड़ी लाभार्थी है। 2021-22 तक भाजपा द्वारा भुनाए गए ईबी का कुल मूल्य 5.27 हजार करोड़ रुपये है, यानी इस अवधि के दौरान भुनाए गए कुल बॉन्ड का लगभग 57 प्रतिशत। इस बीच कांग्रेस की हिस्सेदारी, जो दूसरी सबसे बड़ी लाभार्थी है, लगभग 10.4 प्रतिशत है।
चुनाव दर चुनाव अटकी सुनवाई
चुनावी बॉन्ड ऐसे मौद्रिक उपकरण हैं जिन्हें सामान्य लोग या कॉरपोरेट, बैंकों से खरीद सकते हैं और अपनी पसंद के किसी राजनीतिक दल को दे सकते हैं। इसके बदले राजनीतिक दल पैसे भुनाते हैं। केंद्र सरकार ने पहली बार जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था शुरू की थी। कर्नाटक चुनाव उसके ठीक बाद हुआ था। विडम्बना यह है कि एनडीए सरकार ने चुनावों में काले धन के उपयोग पर नजर रखने के नाम पर चुनावी बॉन्ड की प्रणाली शुरू की थी।
ये बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक की नामित शाखाओं से 1000 रुपये, 10000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में खरीदे जा सकते हैं। इसे राजनीतिक दलों को देने वाले की पहचान गोपनीय रखी जाती है और बॉन्ड जारी होने के 15 दिनों के भीतर राजनीतिक दल द्वारा इन्हें भुनाया जा सकता है। यानी जो बॉन्ड 3 अप्रैल से 12 अप्रैल के बीच बिका होगा, उसे राजनीतिक दलों ने अधिकतम 18 अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच भुना लिया होगा। जाहिर है, अप्रैल के आखिरी दिनों से शुरू हुआ धुआंधार चुनाव प्रचार इसी पैसे के बल पर हुआ है।
इस साल बेचे गए कुल 565.79 करोड़ रुपये के बॉन्ड का करीब 58 फीसदी हिस्सा दिल्ली में भुनाया गया। हैदराबाद में भारतीय स्टेट बैंक की शाखा ने 335.30 करोड़ रुपये, कोलकाता में 197.40 करोड़ रुपये, मुंबई में 169.37 करोड़ रुपये, चेन्नई में 122 करोड़ रुपये और दिल्ली में 55.65 करोड़ रुपये में चुनावी बॉन्ड की बिक्री दर्ज की। हैदराबाद शाखा में सबसे अधिक बिक्री हुई है। यह देश में बेचे जाने वाले कुल बॉन्ड का 34 प्रतिशत है। यह चुनावी बॉन्डों की बिक्री की 26वीं किस्त थी।
सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्डों की वैधता से जुड़ी कई याचिकाओं पर 2017 से ही सुनवाई कर रहा है। अदालत अब तक यह तय नहीं कर सकी है कि इन मामलों को संविधान पीठ के समक्ष भेजा जाना चाहिए या नहीं।
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