बात 12 मार्च की है जब होली को केवल बारह दिन रह गए थे। हरियाणा के राजभवन में मनोहरलाल खट्टर को मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने शागिर्द नायब सिंह सैनी को सुपुर्द करनी पड़ी। उस हल्की सर्द शाम सूबे के लोग शाल-दोशालों को ओढ़ने को लेकर जितना असंमजस में थे, उतना ही असमंजस में हरियाणा भाजपा के बड़े-बड़े नेता भी थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ठीक एक दिन पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधे घंटे तक मनोहरलाल की तारीफ की, तो उन्हें एकदम से सीएम की कुर्सी से क्यों हटा दिया।
उस दिन हरियाणा भवन में नायब सैनी की ताजपोशी में पत्रकारों की गैलरी में एक चर्चा दबे मुंह चल रही थी 20 फरवरी को भाजपा के करवाए उस सर्वे की, जिसमें हरियाणा की दस सीटों में से छह पर पार्टी को खतरा बताया गया था। अभी राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा को महीना भी पूरा नहीं हुआ था और हरियाणा में भाजपा को इतने बड़े नुकसान की बात सामने आ गई थी।
इसी संभावित नुकसान को थामने के लिए शायद पार्टी ने नायब सैनी को सबसे पहले “किसान का बेटा” कह के प्रचारित किया, लेकिन सूबे की सरहदों पर चल रहे किसान आंदोलन के आगे मुख्यमंत्री को ‘’किसान के बेटे’’ का तमगा मिल नहीं पाया। आंदोलन बड़ा होता गया और हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोटी होती चली गई।
आज पंजाब हरियाणा बॉर्डरों पर चल रहे किसान आंदोलन को पूरे 100 दिन हो गये हैं. जब 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई तो सारा विपक्ष और उनके समर्थक हार मानकर बैठ गये थे. पर 13 फ़रवरी से चले किसान आंदोलन ने इस सत्ता से भिड़कर यह दिखा दिया कि मुद्दों पर लड़कर इस ताकतवर सत्ता को चुनौती दी जा सकती है. इस आंदोलन के बाद देश की राजनीति में बहुत तेज हलचल हुई और देश के अन्नदाता के सामने “धर्म आधारित बहुसंख्यकवाद” बौना होता चला गया. जिस विपक्ष ने पिछले दस सालों में सड़क पर रहकर ढंग से लड़ाई लड़ने की बजाय सिर्फ़ प्रेस कॉन्फ़ेन्स और मीडिया में बयानबाज़ी की थी, उसे सीएए एनआरसी आंदोलन, किसान आंदोलन, मज़दूर आंदोलन, छात्र आंदोलन, अग्निवीर आंदोलन और महिला पहलवान आंदोलन से निकली नयी ऊर्जा ने लड़ने की हिम्मत दी और यह सिखाया कि कैसे बीजेपी को मुद्दों पर लड़कर परेशान किया जा सकता है. मुझे पता है कि बॉर्डरों पर चल रहे आंदोलन में बैठे किसानों को उनके हिस्से का क्रेडिट कभी नहीं मिलेगा. चुनाव के दौरान और बाद में भी अला नेता फला नेता का गुणगान होगा और फिर एक महीने बाद ही चुनावी सभाएँ बर्खास्त होंगी. पंडित भी अपने विश्लेषणों और नैरेटिव की दुकानें समेट लेंगे! नेता हारे हुए भी और जीते हुए भी चुनावी गर्मी से निकलकर शीतल जगहों पर छुटियाँ मनाने चले जाएँगे. लेकिन किसान और मज़दूर आपको अपने खेतों, अपने कार्यस्थलों और इस देश की सड़कों पर अपने हक़ हक़ुकों के लिये ऐसे ही लड़ते मिलेंगे. क्योंकि इस निरंकुश व्यवस्था के ख़िलाफ़ वे लड़कर ही ज़िंदा रह पाएँगे. लड़ते लोग ज़िंदाबाद! शासक वर्ग की गोद में बैठे लोग अपनी ऐसी तैसी करवाएँ.
Posted by Mandeep Punia on Wednesday, May 22, 2024
कुछ दिन बाद आम चुनाव की घोषणा हुई और आचार संहिता लागू हुई, तो किसानों ने मौका देखते ही ऐलान कर दिया कि वोट मांगने आए भाजपा के हर नेता से सवाल पूछो। उसका असर उत्तर-पश्चिमी और मध्य हरियाणा में एकदम से देखने को मिला। सिरसा, हिसार, अम्बाला और जींद जिले से किसानों की ऐसी वीडियो बाहर आनी शुरू हुईं जिनमें वे भाजपा के नेताओं को गांव में घुसने से रोकते, सवाल पूछते और काले झंडे लहराते दिखे। कई जगह तो नेताओं को पीटने के लिए दौड़ने तक बात पहुंच गई।
ये तस्वीरें आने वाले दिनों का संकेत दे रही थीं। प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा में अपना चुनाव प्रचार 18 मई को अंबाला की एक जनसभा से शुरू किया, तो शायद ये संकेत सामने लिखी इबारत बन कर उभर आए जब उनके भाषण के अंतिम पलों में उनके ठीक सामने लगा कमल का फूल मुरझा कर गिर पड़ा।
इसीलिए हमने जब हरियाणा की चुनावी यात्रा शुरू की, तो आंदोलित किसानों की सरहद से दूर और उलटी दिशा में पड़ने वाले दक्षिणी हरियाणा के जिले फरीदाबाद में सबसे पहले पहुंचे ताकि आंदोलन से अछूते इलाकों के माहौल को पहले भांप लिया जाए।
फरीदाबाद
फरीदाबाद से भाजपा ने कृष्णपाल गुर्जर को टिकट दिया है। जब तक कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था, तब तक इस सीट को भाजपा के लिए सुरक्षित माना जा रहा था लेकिन आज के समय इस सीट पर कांटे की टक्कर है। यहां कांग्रेस ने अपने पुराने नेता महेन्द्र प्रताप को टिकट दिया है।
हम फरीदाबाद के एनआइटी क्षेत्र में पड़ने वाले गांव मुज्जेसर पहुंचे, जो अब गांव नहीं रह गया है, बल्कि मजदूरों की एक तंग रिहायशी कॉलोनी में तब्दील हो चुका है। यहां रहने वाले प्रेम कुमार चौधरी बताते हैं, “यह शहर ठेठ कामकाजियों का शहर है, जिसमें पिछले कुछ साल से कोई ढंग का काम नहीं हुआ है। सीवरों की हालत खराब है। जब बारिश होती है तो हमारी जैसी कालोनियों के लोगों के लिए यहां रहना दूभर हो जाता है। हम गंदे पानी में सड़ रहे होते हैं। पिछली दो बार से एनआइटी की कालोनियों से भाजपा को दबाकर वोट मिले थे, लेकिन इस बार सीवेज के मुद्दे के कारण लोग नाराज हैं। इसने चुनाव को राष्ट्रीय से स्थानीय बना दिया है। ऐसा लग रहा है जैसे नगरपालिका का चुनाव हो रहा हो।”
इसकी पुष्टि करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अनूप चौधरी ने बताया, “फरीदाबाद में यह पहला मौका है जब लोकसभा चुनाव चुनाव में हार-जीत का फैसला नहरपार की हाउसिंग सोसायटी और अधिकृत व अनाधिकृत कॉलोनियों के मतदाता कर रहे हैं। यहां प्रवासी मतदाताओं में अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता है। प्रवासियों पर भय और लालच का धमकी भरा हाथ मखमली आवाज में प्यार से रखा जा रहा है। खास बात यह है कि शहरी, शिक्षित और प्रवासी मतदाताओं में संसदीय क्षेत्र के विकास को लेकर न तो चिंता है न ही नाराजगी। इन्हें स्थानीय और प्रदेश स्तर के मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन खराब सीवेज से शहरी मतदाता भी परेशान तो है ही।‘’
वे बताते हैं कि इसके ठीक विपरीत देहाती इलाकों में मतदाताओं के बीच महंगाई, रोजगार, शिक्षा, अग्निवीर के साथ-साथ विकास बड़े मुद्दे हैं। किसानों में एमएसपी और पानी का बड़ा मुद्दा है। ऐसे में भाजपा उम्मीदवार कृष्णपाल गुर्जर मोदी के नाम के सहारे हैं। उनके खिलाफ आम मतदाताओं में नाराजगी चरम पर है। कांग्रेस उम्मीदवार महेन्द्र प्रताप भी गुज्जर बिरादरी से आते हैं लेकिन उनकी यहां के देहात में अच्छी साख है।
वे कहते हैं, ‘’कांग्रेस देहाती इलाकों में जबरदस्त बढ़त लिए हुए है। शहरी क्षेत्र में भी कांग्रेसी उम्मीदवार से मतदाताओं की नाराजगी नहीं है, पर हाउसिंग सोसायटियों में वह भाजपा से पीछे है। अगर संविधान बदलने और सीवेज का मुद्दा शहरी क्षेत्रों में जोर पकड़ा तो भाजपा को चुनाव बचाना मुश्किल हो जाएगा।”
देहात में अगर पोलिंग प्रतिशत बढ़ा और शहर में पोलिंग कम हुई, तो फरीदाबाद में बदलाव देखने को मिल सकता है।
गुड़गांव
फरीदाबाद की तरह ही गुरुग्राम की गिनती भी हरियाणा में भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट के तौर पर हो रही थी, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आए यहां पर भी मुकाबले वाली स्थिति बनती चली गई। कांग्रेस ने इस सीट पर सबसे बाद में अपना उम्मीदवार घोषित किया।
पहले कांग्रेस के प्रत्याशी यहां कैप्टन अजय सिंह यादव थे लेकिन भूपेंद्र हुड्डा अपने दोस्त और गैर-यादव ओबीसी (सुनार जाति) से आने वाले पुराने अभिनेता राज बब्बर को टिकट दिलवाने में सफल रहे। राज बब्बर की उम्मीदवारी को कांग्रेसी गैर-यादव ओबीसी, पंजाबी, जाट और मुस्लिम समीकरण के गठजोड़ के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं, लेकिन यहां कांग्रेस के एक धड़े में इस बात से नाराजगी भी है कि एक बाहरी उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया गया।
कैप्टन अजय यादव शुरुआत में तो सार्वजनिक तौर पर राज बब्बर की दावेदारी की मुखालफत कर रहे थे, लेकिन राज बब्बर को टिकट मिलने के लगभग चार दिन बाद वह मीडिया के सामने आए और साथ देने की बात कही। यहां कांग्रेस में दबे मुंह चर्चा यह है कि कैप्टन अजय सिंह यादव नहीं चाहेंगे कि राज बब्बर को उनसे अधिक वोट मिलें जिससे भविष्य में इस सीट पर उनकी दावेदारी ही खत्म हो जाए।
इलाके के स्थानीय पत्रकार राहुल राव ने बताया, “जाति का समीकरण ठीक-ठाक साधने के बाद भी बाहरी उम्मीदवार के फैक्टर और स्थानीय कांग्रेस की अंतर्कलह के चलते राज बब्बर का चुनाव उतनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है जिसकी उम्मीद की जा रही थी। राज बब्बर यहां के मतदाता, सामाजिक ताने-बाने और स्थानीय स्तर पर पार्टी की कार्यशैली से वाकिफ नहीं हैं।‘’
राहुल बताते हैं कि बब्बर यहां पार्टी और अपने दोस्त हुड्डा के भरोसे यहां चुनाव लड़ने तो आ गए, मगर बाकी जगहों की तरह गुरुग्राम कांग्रेस में भी अलग-अलग धड़े हैं और अब वे एक खास धड़े के नेताओं के बीच ही खेल रहे हैं जिसके कारण उन्हें वोटों की गिनती बढ़ाने में दिक्कत होगी।
भाजपा प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह के लिए इस बार का चुनाव हर बार के मुकाबले थोड़ा मुश्किल दिखाई पड़ता है। बीस साल की एंटी-इनकंबेंसी, स्थानीय भाजपा नेताओं से भितरघात का खतरा और लोगों से कनेक्टिविटी का अभाव उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। राहुल ने बताया, ‘’राव नरबीर, डॉक्टर सुधा यादव, रणधीर कापड़ीवास और डॉक्टर अरविंद यादव सरीखे स्थानीय नेताओं ने राव इंद्रजीत के चुनाव प्रचार से दूरी बनाई हुई है।”
राव इंद्रजीत इस बार मेवात में वोट बैंक बढ़ने का दावा कर रहे हैं, लेकिन नूह दंगों और भाजपा की ध्रुवीकरण वाली राजनीति के आगे उनका दावा टिकता नहीं दिख रहा। इस ध्रुवीकरण का लाभ राव इंद्रजीत को मिलेगा क्योंकि गुरुग्राम लोकसभा में हिंदू-मुस्लिम फैक्टर हमेशा से काम करता आया है। अहीरवाल की जमीन पिछले कुछ साल से हिंदुत्व की राजनीति की प्रयोगशाला बनकर उभरी है। राव इंद्रजीत के पास अपने दस साल के कार्यकाल में गिनवाने को कोई बड़ी क्षेत्रीय उपलब्धि नहीं है। लिहाजा वह भी मोदी की गारंटी और राष्ट्रीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ रहे हैं।
भाजपा और कांग्रेस के अलावा यहां दूसरी कोई पार्टी मुकाबले में नहीं है। जेजेपी ने सिंगर राहुल यादव फाजिलपुरिया को टिकट दिया है, तो वहीं इनेलो से हाजी शोराब मैदान में हैं, जो ज्यादा वोटें नहीं पाने वाले।
राज बब्बर इस चुनाव को राजा बना राज की संज्ञा दे रहे हैं। वे लगातार राव इंद्रजीत को उनके रॉयल बैकग्राउंड को लेकर टारगेट कर रहे हैं और जनता से कह रहे हैं कि राजा के बजाय उन्होंने राज को चुना तो वह गुरुग्राम में रोज लोगों से मिलेंगे और यहां की मूलभूत सुविधाओं पर काम करेंगे।
भिवानी-महेन्द्रगढ़
भिवानी-महेंद्रगढ़ को देश की राजनीति में बड़ा नाम रहे चौधरी बंसीलाल की विरासत माना जाता है, पर उनकी पोती श्रुति चौधरी को लगातार दो बार से लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए इस बार कांग्रेस ने उनका टिकट काटकर हुड्डा कैम्प के राव दान सिंह को दिया है। इसके कारण इस बार मुकाबला बहुत रोचक हो गया है। भाजपा से दो बार के सांसद चौधरी धर्मवीर सिंह तिबारा मैदान में हैं।
इस लोकसभा की पांच विधानसभा सीटों पर जाट मतदाता असरदार हैं, तो चार सीटों पर अहीर। अहीरवाल बेल्ट में मोदी का जलवा बरकरार है। कांग्रेस ने अबकी बार परम्परागत जाति समीकरणों को ठेस पहुंचाते हुए भाजपा के जाट प्रत्याशी के सामने अहीर को उतारकर एक अलग किस्म का दबाव बना दिया है।
Posted by Mandeep Punia on Saturday, May 18, 2024
इस सीट की टोह लेने के लिए महेन्द्रगढ़ के सरकारी पार्क में हमने लोगों से बात की। वहां अधिकतर लोगों ने कांग्रेस पार्टी की बढ़त की बात कही। स्थानीय डॉक्टर बीपी यादव ने बताया, “इस सीट पर भाजपा शुरू में तो जाट और नॉन-जाट करना चाह रही थी, लेकिन कांग्रेस ने नॉन-जाट कैंडिडेट देकर भाजपा का जाति का तम्बू समेट दिया।‘’
जाट बेल्ट में किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के मुद्दों पर भाजपा के उम्मीदवारों को गांवों में घुसने नहीं दिया जा रहा। महेन्द्रगढ़ की अहीर बहुल विधानसभा सीटों पर अग्निवीर का मुद्दा बहुत बड़ा है, इसलिए यहां भाजपा का जमकर विरोध हो रहा है। यादव बताते हैं कि धर्मवीर सिंह का विरोध इसलिए भी हो रहा है क्योंकि दस साल तक वे क्षेत्र में दिखाई नहीं दिए।
वे कहते हैं, ‘’इस बार मोदी फैक्टर के ऊपर अग्निवीर, किसान आंदोलन, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे हावी हैं। यह चुनाव भाजपा बनाम जनता का है। मेरे अनुमान के अनुसार कांग्रेस पार्टी यह सीट आराम से जीत रही है। सबसे बडी बात यह है कि इस बार कांग्रेस का कोर वोटबैंक वापस आता दिखाई दे रहा है। अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों में एक-दो जातियों को छोड़ कर बाकी का वोटर यहां कांग्रेस की तरफ दिख रहा है।”
रोहतक
हरियाणा के लोकसभा चुनाव में रोहतक एक ऐसी लोकसभा सीट है जिस पर सभी की नजर टिकी हुई है। यहां से कांग्रेस ने फिर से दीपेन्द्र सिंह हुड्डा को चुनावी मैदान में उतारा है। भाजपा ने सांसद अरविंद शर्मा को ही टिकट दिया है।
दीपेन्द्र हुड्डा 2019 में लगभग 7500 वोटों से चुनाव हारे थे। उनकी इस हार में सबसे बड़ी वजह कोसली विधानसभा थी। यही एक सीट थी जो उनके विपक्षी भाजपा प्रत्याशी अरविंद शर्मा को लीड दे गई। हम कवरेज के लिए इस संसदीय क्षेत्र की कोसली विधानसभा सीट पर ही गए। कोसली के स्टेडियम में कई युवाओं से हमारी बात हुई। वे अग्निवीर योजना से बहुत नाराज थे और उसका असर मतदान पर होने की बात कह रहे थे।
वहां हमारी मुलाकात सेना भर्ती की अकेडमी चलाने वाले अमित कुमार से हुई। उन्होंने बताया, “पहले मेरे पास करीब 150 बच्चे थे, अब सिर्फ 36 बच्चे बचे हुए हैं। अग्निवीर योजना ने सब चौपट कर दिया है। यह इलाका खालिस फौजी इलाका था। हर घर में फौजी मिलेंगे। हर गांव में शहीदों की मूर्तियां मिलेंगी। इसीलिए अग्निवीर योजना पर यहां सबसे अधिक गुस्सा है और वह वोटों में भी रिफ्लेक्ट होगा।”
रोहतक के पत्रकार सतसिंह ने बताया, “हरियाणा में अगर कोई सीट कांग्रेस की सबसे सेफ है तो रोहतक लोकसभा है। दीपेंद्र के कार्यक्रमों में जुटने वालों की भीड़ सब बयां कर देगी। रात तक गांव के कार्यक्रमों में भीड़ देखने वाली होती है।‘’
इस बार दीपेंद्र हुडा, पिता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, माता आशा हुड्डा, पत्नी श्वेता हुड्डा, सब चुनावी मैदान में पसीना बहा रहे हैं। रोहतक शहर, कोसली में भाजपा लीड बना सकती है जबकि दीपेंद्र हुड्डा बाकी की सभी विधानसभाओं में लीड लेते दिखाई दे रहे हैं। किलोई, महम और बेरी में वह कोसली की लीड को तोड़ देंगे। दस साल की एंटी-इनकंबेंसी, खट्टर राज में किसानों पर अत्याचार, अग्निवीर योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में कड़ी नाराजगी भी रोहतक लोकसभा में देखी जा सकती है, जिसका फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है।
कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र किसान आंदोलन का केंद्र रहा है। किसानों पर पहला लाठीचार्ज कुरुक्षेत्र के पीपली में ही हुआ था। इस लोकसभा में कुरुक्षेत्र और कैथल जिलों की विधानसभा सीटों के अलावा यमुनानगर जिले की एक विधानसभा सीट रादौर आती है। यहां भाजपा से नवीन जिंदल अबकी बार भाजपा के उम्मीदवार हैं जो कुछ दिन पहले कांग्रेस के नेता हुआ करते थे। यह लोकसभा सीट इंडिया गठबंधन में आम आदमी पार्टी को मिली हुई है जिसने राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता को अपना उम्मीदवार बनाया है।
इनके अलावा लोकदल से अभय चौटाला हैं और जजपा से पालाराम सैनी उम्मीदवार हैं। लिहाजा मुकाबला चौतरफा हो गया है। इनेलो के लिए यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अगर इस चुनाव में अभय चौटाला हार जाते हैं तो उन्हें विधानसभा चुनाव में बहुत मुश्किल आएगी।
कैथल के किसान पलविन्द्र खैरा ने बताया, “मुख्य मुकाबला आप पार्टी के सुशील गुप्ता और भाजपा के नवीन जिंदल के बीच है, इनेलो के अभय चौटाला कुछ वोट तो ले रहे हैं मगर मुकाबले में नहीं आ पा रहे हैं।‘’
यह इलाका किसान आंदोलन में बहुत सक्रिय था, यही कारण है कि यहां भाजपा का काफी विरोध है। वैसे भाजपा यहां पहले भी कमजोर थी, मगर पूर्व कांग्रेसी नवीन जिंदल को उम्मीदवार बनाकर उसने चुनाव में वापसी की है। दोनों की जीत-हार इस बात पर निर्भर करती है कि अभय चौटाला यहां से कितने वोट ले आते हैं।
खैरा के अनुसार अगर चौटाला का वोट बढ़ता है तो इंडिया गठबंधन के गुप्ता को दिक्कत होगी। अगर वोट कम होता है तो जिंदल को दिक्कत होगी।
सिरसा
कुरूक्षेत्र की तरह ही सिरसा संसदीय क्षेत्र की पूरी अर्थव्यवस्था खेती-किसानी के इर्द-गिर्द घूमती है। रोजगार की दृष्टि से यहां के ज्यादातर लोगों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध खेतीबाड़ी से है। किसान यहां अपने मुद्दों को लेकर लगातार बेचैन रहे हैं। उनकी बेचैनी इस बार सत्तारूढ़ भाजपा के लिए परेशानी पैदा कर सकती है।
रोहतक के बाद कांग्रेस के लिए दूसरी कोई सेफ सीट है तो वह सिरसा ही है। यहां से कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा ने कांग्रेस के ही पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक तंवर को यहां से टिकट दिया है। तंवर भी पुराने कांग्रेसी रहे हैं। परम्परागत रूप से यह सीट देवीलाल परिवार की मानी जाती है, पर पिछले 50 साल में पहली बार देवीलाल परिवार इस सीट पर किसी गणित में नहीं दिखाई दे रहा है। न तो जेजेपी की कोई बात हो रही है और न ही इनेलो की कोई बात कर रहा है।
इस सीट पर 2020-21 के किसान आंदोलन से लेकर कपास की फसल में लगने वाली गुलाबी सुंडी के आंदोलन, फसल बीमा की लड़ाई तक हर आंदोलन की धमक रही है। सिरसा सीट की नरवाना विधानसभा के गांव दनौदा के किसान अशोक कुमार ने बताया, “अबकी बार भाजपा यहां मुकाबले में नहीं है। यह पूरा लोकसभा क्षेत्र पंजाब से लगता हुआ है, इस बात का भी फर्क पड़ता है। अगर सही कहूं तो इस सीट पर लोग कांग्रेस को वोट नहीं दे रहे बल्कि भाजपा को हरा रहे हैं। चुनाव जनता लड़ रही है। आप देख रहे होंगे सबसे ज्यादा विरोध भाजपा उम्मीदवार का इस सीट के गांवों में ही हो रहा है। दूसरी बात यह भी है कि अशोक तंवर पर लोग विश्वास नहीं कर पा रहे क्योंकि वह लगातार पार्टी बदलते रहते हैं। उन्होंने कोई पार्टी नहीं छोड़ी। सब जगह घूम आए।”
करनाल
मार्च में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने मनोहर लाल खट्टर की सीएम हाउस से छुट्टी कर के उन्हें चंडीगढ़ से करनाल जाने वाली बस में बैठा दिया था। अब उनको आस है कि करनाल से दिल्ली की ट्रेन में बैठकर वे संसद तक पहुंच जाएंगे।
करनाल लोकसभा सीट पूर्व सीएम मनोहर लाल को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से ही चर्चा के केंद्र में है। कांग्रेस ने 31 वर्षीय युवा नेता दिव्यांशु बुद्धिराजा पर दांव खेला है। इंडिया गठबंधन से टिकट न मिलने पर एनसीपी के मराठा विरेंद्र वर्मा भी चुनावी मैदान में हैं। भाजपा पिछले दो बार के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर के यहां अपनी जड़ें जमा चुकी है। 2019 के चुनाव में भाजपा के संजय भाटिया ने साढ़े छह लाख के मार्जिन से देश की दूसरी सबसे बड़ी जीत यहीं से दर्ज की थी। इसके उलट पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवार तीन लाख वोट भी नहीं मिल सके हैं।
इस बार हालांकि कांग्रेस ने भाजपा के पंजाबी उम्मीदवार के खिलाफ एक पंजाबी उम्मीदवार को उतारकर मनोहर लाल के वोटबैंक में सेंध लगाने की रणनीति अपनाई है। अगर बुद्धिराजा अपने समाज का 30 फीसदी से ज्यादा वोट ले पाने में कामयाब रहते हैं तो मनोहर लाल को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। करनाल लोकसभा सीट की असंध, नीलोखेड़ी, घरौंडा और पानीपत जिले की पानीपत ग्रामीण और इसराना विधानसभा में किसान आंदोलन का बड़ा असर रहा है जिसके चलते इन सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा कमजोर दिख रही है। जाट और सिख जट्ट वोटर भाजपा को हराने के लिए वोट करने जा रहा है।
विरेंद्र मराठा के चुनाव लड़ने से भाजपा को सीधा नुकसान हो रहा है। कांग्रेस को इसका फायदा मिल रहा है। दरअसल, मराठा वीरेंद्र वर्मा रोड़ बिरादरी से आते हैं। रोड़ बिरादरी का अधिकतर वोटर भाजपा के साथ रहा है। ऐसे में इस बार इस बिरादरी का बहुत कम वोट भाजपा को मिलेगा।
इस इलाके को कवर करने वाले पत्रकार गौरव कुमार ने बताया, “गांव-देहात में सीएम मनोहर लाल के खिलाफ काफी रोष है। इस सीट पर भाजपा का सबसे बड़ा वोटर ब्राह्मण और ओबीसी समाज है। ओबीसी की छोटी-छोटी जातियों को साधने के लिए भाजपा ने इसके महापुरुषों की जयंती मनाने, धर्मशाला बनाने, संगठन में छोटे पदों पर ओबीसी को जगह देने से लेकर और चुनाव से ठीक पहले नायब सैनी के रूप में ओबीसी सीएम देकर अपने इस वोट बैंक को और मजबूत किया है।‘’
वे बताते हैं कि यहां दलित वोटर का मूड भाजपा के खिलाफ बनता दिख रहा है। एक दौर में कांग्रेस का परंपरागत वोट रहा वाल्मीकि वोटर इस बार कांग्रेस की ओर जाता दिख रहा है। वहीं बसपा का पक्का वोटबैंक भी इस बार कांग्रेस की ओर खिसक रहा है। विपक्ष का संविधान, आरक्षण और लोकतंत्र बचाओ वाला प्रचार दलित युवाओं तक पहुंच रहा है जिसका असर भाजपा को झेलना पड़ सकता है। उनके मुताबिक, ‘’पिछले दस साल में दलितों को 100 गज के प्लॉट नहीं मिलना भी भाजपा के लिए बड़े नुकसान का कारण बनता दिख रहा है।”
चुनाव प्रचार की शुरुआत में कांग्रेस प्रत्याशी दिव्यांशु बुद्धिराजा से हुड्डा गुट के कार्यकर्ताओं के अलावा अन्य स्थानीय कार्यकर्ता भी प्रचार में दूरी बनाए हुए थे। इनमें मुख्य रूप से कांग्रेस के ब्राह्मण नेता कुलदीप शर्मा और राजपूत समाज से आने वाले वीरेंद्र राठौर के कार्यकर्ता शामिल रहे। अब कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया के पत्र के बाद ये नेता प्रचार में दिखाई देने लगे हैं।
कुल मिलाकर करनाल लोकसभा सीट पर भाजपा के लिए पहले की तरह एकतरफा मुकाबला नहीं है और कांग्रेस के युवा नेता एक पूर्व सीएम के पसीने छुड़ाते नजर आ रहे हैं।
हिसार
सिरसा के साथ लगती हुई हिसार हरियाणा की ठेठ देहाती सीट है। यहां भी किसान आंदोलन बहुत मजबूत था। इसका असर चुनाव पर साफ दिखाई देगा। इस सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी रणजीत चौटाला का बहुतेरे गांवों में विरोध हो चुका है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस का पलड़ा मजबूत रह सकता है। शहरी वोटरों में भाजपा का रुझान अधिक नजर आता है।
इस सीट पर कांग्रेस ने जयप्रकाश जेपी को टिकट दिया है, जबकि यहां के जाट किसानों की मांग थी कि टिकट नॉन-जाट कैंडिडेट को दिया जाए ताकि इस भाजपा 35-1 का खेल यहां न कर सके।
हिसार के बेरोजगार नौजवान विश्वेन्द्र ने बताया, “कांग्रेस गांव में मजबूत है, लेकिन भाजपा 2019 के मुकाबले शहरों में कम मजबूत है। पूरे हरियाणा में बेरोजगारी, पुरानी पेंशन और अग्निवीर के मुद्दे अहम बने हुए हैं। इनेलो और जजपा के प्रत्याशियों को लोग वोटर वोटकटवा के रूप में देख रहे हैं। इसलिए इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला है।‘’
हिसार शहर में एक खास बात देखने को मिल रही है कि जो लोग भाजपा से परेशान थे वे इस उम्मीद में थे कि अगर कांग्रेस से चंद्रमोहन बिश्नोई उतरते हैं तो वे उन्हें वोट देंगे। जयप्रकाश जेपी की उम्मीदवारी के बाद ऐसे लोग कांग्रेस से छिटके हैं। इसका कारण जेपी की छवि बताई जाती है। विश्वेंन्द्र के अनुसार ऐसा वोटर या तो मोदी के नाम पर भाजपा के साथ जाएगा या फिर वोट ही नहीं देगा।
हरियाणा के हिसार ज़िले के गाँव सीसर खरबला में किसानों ने आरोप लगाया है कि पुलिस उनको डराने कि कोशिश कर रही है. आज इस गाँव में बीजेपी प्रत्याशी रणजीत सिंह चौटाला की चुनावी सभा होने वाली है.
Posted by Mandeep Punia on Sunday, May 5, 2024
हिसार हरियाणा के कोचिंग संस्थानों का गढ़ भी है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कोचिंग के धंधे में गिरावट आई है। सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे जसमेर बेरवाल ने बताया, “पिछले कुछ वर्षों से एचएसएससी की भर्तियों को लेकर हम युवाओं को मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा है। बेरोजगारी से परेशान होकर विदेश पलायन, शिक्षा की खस्ता हालत हमारे मुद्दे हैं लेकिन कोई भी कैंडिडेट इन मुद्दों पर नहीं बोल रहा। मैं छोटी किसानी से आता हूं। ग्रामीण गरीब और छोटी किसानी को लेकर उनके पास कोई दृष्टि नहीं है, लेकिन इस बार मैं भाजपा को हराने के लिए वोट करूंगा।”
हिसार लोकसभा इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि यहां तीन अलग-अलग पार्टियों ने एक ही परिवार के सदस्यों को टिकट दिया है। यह सीट भी देवीलाल परिवार और भजनलाल परिवार की राजनीति का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन इस बार भजनलाल परिवार से किसी को टिकट नहीं मिला है। देवीलाल परिवार की मजबूत शाखा रही जेजेपी का हिसार-जींद वाला किसान वोटबैंक किसान आंदोलन, महिला पहलवान आंदोलन और भाजपा के साथ मिलकर सरकार चलाने के कारण उसके बिल्कुल खिलाफ हो गया है। इनेलो से सुनैना चौटाला अपने पक्ष में माहौल नहीं बना पाई हैं। लग रहा है कि दोनों चौटाला परिवार की बहुएं अपनी जमानत नहीं बचा पाएंगी।
अम्बाला
अंबाला लोकसभा से कांग्रेस ने वरुण चौधरी को टिकट दिया है। भाजपा ने स्वर्गीय रतनलाल कटारिया की पत्नी बंतो कटारिया को टिकट दिया है। इस लोकसभा सीट में हरियाणा के तीन जिले पड़ते हैं, अम्बाला, यमुनानगर और पंचकूला। ये तीनों ही जिले किसान आंदोलन में बहुत सक्रिय थे।
यमुनानगर के सामाजिक कार्यकर्ता संजीव वालिया ने बताया, “कांग्रेस की जीत की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ गई है। यहां जनता अपने तौर पर लड़ रही है, हालांकि कांग्रेस नेता आपस में खींचतान कर रहे हैं लेकिन यहां गांव के गांव भाजपा को हराने के लिए जुटे हुए हैं। पंचकूला से लेकर यमुनानगर जिले की पूरी शिवालिक पट्टी दलित बेल्ट है। यहां अम्बेडकर और संविधान को लेकर लोगों के मन में एक आस्था है। दलितों को लग रहा है कि संविधान खत्म हो जाएगा, इसलिए यह वोट अबकी बार कांग्रेस को शिफ्ट हो रहा है।”
यमुनानगर जिले में काफी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती है। सीएए-एनआरसी आंदोलन के दौरान यहां बहुत बड़ी बड़ी सभाएं भी हुई थीं। इसलिए दलित, सीएए और किसान आंदोलन में शामिल लोगों को वोट बैंक कांग्रेस को यहां पर बढ़त दिलवा रहा है। वालिया के अनुसार भाजपा ने यहां सांप्रदायिक लड़ाई करवाने की हरसंभव कोशिश की है, लेकिन यहां मुस्लिम बहुत सावधानी से काम कर रहे हैं और भाजपा की हर चाल पर पानी फेर दे रहे हैं। यहां के मुस्लिमों ने अपनी जातिगत पहचान (गुज्जर) को आगे कर दिया है इसलिए भाजपा को चुनाव सांप्रदायिक बनाने में दिक्कत हो रही है।
अम्बाला में सिख समुदाय के भी अच्छे-खासे वोट हैं। सिख समुदाय के दो नौजवान किसानों की गिरफ्तारी को लेकर भी बहुत रोष है। पिछले आंदोलन में वाटर कैनन का मुंह मोड़ने वाले नवदीप सिंह और गुरकीरत सिंह को पुलिस ने शम्भू बॉर्डर से गिरफ्तार कर के जेल में डाल रखा है, जिसको लेकर सिखों और किसानों में भयंकर नाराजगी है। यहां पर भी भाजपा नेताओं को लगातार किसान घेर रहे हैं और काले झंडे दिखा रहे हैं।
सोनीपत
मार्च में जब मनोहरलाल खट्टर को सीएम की कुर्सी से हटाया गया, ठीक उसी समय सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से सांसद रमेश कौशिक का टिकट कटवाने की पटकथा रची जा रही थी। उसी समय सोनीपत भाजपा के एक नेता का मेरे पास फोन आया और उन्होंने मुझसे कहा, “सांसद की एक आपत्तिजनक वीडियो मेरे पास है, उसे वायरल कर दो। पांच लाख रुपये दूंगा।” बड़ी सहजता से मैंने मना कर दिया।
करीब एक सप्ताह बाद ही वह वीडियो लोगों के पास घूमने लगा। यह राष्ट्रीय खबर तो नहीं बनी, मगर भाजपा को रमेश कौशिक का टिकट काटना पड़ गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा के प्रत्याशी रहे कौशिक ने पूर्व मुख्यमंत्री भुपेन्द्र सिंह हुड्डा को 1,64,864 वोटों से हराया था। टिकट कटने के बाद कौशिक अपने साले को टिकट दिलवाना चाहते थे, मगर बात नहीं बनी और भाजपा ने विधायक मोहनलाल बड़ोली को टिकट दे दिया।
सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में कुल नौ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें गन्नौर, राई, खरखौदा, सोनीपत, गोहाना और बरौदा की छह सीटें सोनीपत जिले की हैं और जींद जिले की जुलाना, सफीदों और जींद हैं। पिछले 25 साल में यहां से चार बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के सांसद रहे हैं। अबकी बार कांग्रेस ने सतपाल ब्रह्मचारी पर दांव आजमाया है। वह जींद जिले के गांगोली गांव से आते हैं जो सफीदों विधानसभा में पड़ता है। जींद जिले की तीनों सीटों के वोट अपनी तरफ खींचने के लिए यह कांग्रेस का दांव है। इसका प्रभाव में चुनाव में देखने को मिलेगा।
सोनीपत के युवा कुलदीप कुमार ने बताया, “दस साल की भाजपा सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। गांवों में अबकी बार लोग खुलकर अग्निपथ योजना और बेरोजगारी को लेकर बात रख रहे हैं। अबकी बार मुद्दों पर चुनाव होता नजर आ रहा है, लेकिन शहरी आबादी में अनुच्छेद 370, राम मन्दिर और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे ही हावी हैं। इन मुद्दों को लेकर भी लोग वोट करेंगे। जींद, सफीदों, जुलाना, बरौदा, गोहाना और खरखौदा- ये छह सीटें ऐसी हैं जहां से कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है। गन्नौर, सोनीपत और राई से भाजपा को बढ़त मिल सकती है। मेरे हिसाब से कांग्रेस इस सीट को निकाल लेगी।”