चीन में कुछ महत्वपूर्ण घट रहा है और देश के राजनीतिक नेतृत्व को उसकी फिक्र होनी चाहिए। चीन के युवा अब कामधाम को लेकर ज्यादा से ज्यादा उदासीन होते जा रहे हैं। वे काम छोड़कर बैठने या जीवन चलाने भर कुछ छिटपुट करने की प्रवृत्ति को दर्शा रहे हैं। उनके बीच एक नया मंत्र आजकल चल रहा है बाइ लान (यानी, जो सड़ रहा है उसे सड़ने दो)।
आर्थिक मोहभंग और दमघोंटू सांस्कृतिक मानकों के बीच व्यापक हताशा से उपजा बाइ लान व्यवस्था में चल रही अंधाधुंध भागदौड़ को खारिज करता है और कहता है कि जितना संभव हो उतना कम काम करो। यहां करियर की तरक्की के ऊपर व्यक्तिगत सुख-चैन को तरजीह दी जाती है। ऐसा ही एक और मंत्र चल पड़ा है तांग पिंग, जो इसी प्रवृत्ति का एक और नाम है। इसका अर्थ है ‘’बस पड़े रहो’’। गलाकाट सामाजिक और पेशेवर प्रतिस्पर्धा वाले माहौल में यह शब्द निवृत्ति के भाव को दर्शाता है। दोनों ही शब्द ज्यादा से ज्यादा हासिल करने के सामाजिक दबावों को खारिज करने का आशय लिए हुए हैं। यहां सामाजिक उद्यम को किसी मूर्ख का खेल मानते हैं जिसमें समय के साथ आदमी के पास रहा-सहा भी घटता चला जाता है।
सीएनएन ने पिछली जुलाई में एक खबर की थी कि चीन में तमाम लोग ज्यादा दबाव वाली दफ्तरी नौकरियां छोड़कर लचीले कार्य अवधि वाले मजदूरी के काम कर रहे हैं। उस रिपोर्ट में वुहान का एक 27 वर्षीय युवा कह रहा था: ‘’मुझे सफाई करना पसंद है। देश भर में जिस तरह से जीवनस्तर ऊंचा उठता जा रहा है, हाउसकीपिंग सेवाओं की मांग में भी उछाल आ रहा है… अपना पेशा बदलने के बाद बदलाव यह आया है कि अब मेरा सिर भारी नहीं रहता। मैं कम मानसिक दबाव महसूस करता हूं। और दिन भर मेरे भीतर ऊर्जा कायम रहती है।‘’
ऐसी प्रवृत्तियों को आम तौर से अराजनीतिक करार दिया जाता है क्योंकि यहां सत्ता के खिलाफ हिंसक प्रतिरोध खारिज होता है, साथ ही सत्तासीनों से संवाद की भी गुंजाइश नहीं होती। सवाल है कि अलग-थलग पड़ी पीढ़ी के लिए क्या यही एक विकल्प है?
सर्बिया में चल रहे व्यापक विरोध प्रदर्शन दूसरी संभावनाओं की ओर इशारा करते हैं। ये प्रदर्शनकारी न सिर्फ इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि सर्बिया की धरती पर सब कुछ सड़ चुका है, बल्कि वे इस पर भी जोर दे रहे हैं कि चीजों को अब और ज्यादा सड़ने नहीं दिया जाएगा।
ये प्रदर्शन पिछले नवंबर नोवी साद में चालू हुए थे जब हाल ही में नवीकृत एक रेलवे स्टेशन की छत के गिरने से 15 लोग मारे गए थे और दो लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। उसके बाद से ये विरोध प्रदर्शन सर्बिया के 200 शहरों-कस्बों में फैल चुके हैं। इसमें सैकड़ों हजारों लोग शामिल हो रहे हैं। छात्रों के नेतृत्व में शुरू किया गया यह प्रदर्शन 1968 में यूरोप में हुए प्रदर्शनों से भी बड़ा हो चुका है।
छत का गिरना महज एक घटना थी जो लंबे समय से जमा हो रहे असंतोष के बारूद में चिंगारी लगाने का बहाना बनी। प्रदर्शनकारियों का विरोध कई मसलों पर है- चौतरफा फैले भ्रष्टाचार से लेकर पर्यावरणीय विनाश (सरकार अब लीथियम का खनन करवाने जा रही है) और सर्बियाई राष्ट्रपति अलेक्सांद्र वुचिक तक के खिलाफ, जिन्होंने समूची आबादी के प्रति हमेशा से बेरुखी दिखाई है। सर्बिया की सरकार अपने कामों को वैश्विक बाजारों में सेंध लगाने की योजना के रूप में जनता के सामने पेश कर रही है, लेकिन सर्बिया के युवा इसे सरकारी भ्रष्टाचार पर चादर डालने, संदिग्ध शर्तों के तहत विदेशी निवेशकों को राष्ट्रीय संसाधन बेचने तथा विपक्षी मीडिया का धीरे-धीरे सफाया करने के बहाने के रूप में देख रहे हैं।
इन विरोध प्रदर्शनों को कौन सी बात मौलिक बनाती है? प्रदर्शनकारियों की स्थायी टेक यह है: ‘’हमारी कोई भी राजनीतिक मांग नहीं है और हम विपक्षी दलों से दूरी बनाए हुए हैं। हम तो बस इतनी सी मांग कर रहे हैं कि सार्बिया की संस्थाएं नागरिकों के हित में काम करें।‘’ उनकी स्पष्ट मांगें यह हैं कि नोवी साद ट्रेन स्टेशन के नवीकरण के बारे में पारदर्शिता बरती जाए, हादसे से जुड़े सारे कागजात तक उनकी पहुंच सुनिश्चित की जाए, नवंबर में हुए शुरुआती सरकारी-विरोधी प्रदर्शनों के दौरान गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ सारे आरोप खत्म किए जाएं तथा बेल्ग्रेड में प्रदर्शनकारी छात्रों के ऊपर हमला करने वालों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाकर उन्हें दंडित किया जाए।
यानी, ये प्रदर्शनकारी उस समूची प्रक्रिया को ही शॉर्ट सर्किट करना चाहते हैं जिसके सहारे सत्ताधारी पार्टी ने सभी संस्थाओं पर अपना नियंत्रण कायम रखते हुए राज्य को बंधक बनाया हुआ है। इन मांगों पर राष्ट्रपति वुचिक ने अब तक न सिर्फ हिंसक प्रतिक्रिया दी है, बल्कि प्रदर्शनकारियों को एक तरीके से आजाद होकर कार्रवाई करने से बांध भी दिया है।
वुचिक जितना ज्यादा बेचैन होते जाएंगे, उतना ही वे प्रदर्शनकारियों के साथ कोई न कोई समझौता करने की कोशिश भी करेंगे, लेकिन प्रदर्शनकारी किसी भी संवाद से इनकार कर रहे हैं। उन्होंने अपनी मांगें साफ-साफ रख दी हैं और इन पर बेशर्त अड़े हुए हैं।
पारंपरिक रूप से देखा गया है कि तमाम जन प्रदर्शन अघोषित रूप से हिंसा की धमकी पर भरोसा कर के चलते हैं लेकिन साथ ही साथ समझौते के लिए भी खुद को खुला रखते हैं। यहां मामला ठीक उलटा है। सर्बिया के प्रदर्शनकारी हिंसा की कोई धमकी नहीं दे रहे, लेकिन उन्होंने संवाद से भी इनकार कर दिया है। यह सपाट रणनीति ही भ्रम पैदा कर रही है। भ्रम की एक और वजह प्रदर्शनों में किसी नेता का न होना है। इस संकीर्ण अर्थ में देखें, तो इन प्रदर्शनों का बाइ लान के साथ कुछ साम्य दिखता है।
बेशक किसी एक बिंदु पर इस खेल में संगठित राजनीति का प्रवेश होगा ही होगा लेकिन प्रदर्शनकारियों का ‘’अराजनीतिक’’ पक्ष फिलहाल उसी घिसे-पिटे पुराने खेल के किसी नए संस्करण के बजाय एक नए किस्म की राजनीति के लिए परिस्थितियां पैदा कर रहा है। यानी, कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पिछली गंदगी को साफ करना ही होगा।
यही वजह है कि बाकी दुनिया को इन प्रदर्शनों का बेशर्त समर्थन करना चाहिए। ये पद्रर्शन यह साबित करते हैं कि कानून व्यवस्था के हक में एक सीधी सच्ची पुकार अराजक हिंसा के मुकाबले कहीं ज्यादा विध्वंसक हो सकती है। सर्बियाई युवा वास्तव में कानून का लिखित राज चाहते हैं और उन तमाम अलिखित नियम कायदों का अंत, जो भ्रष्टाचार और निरंकुशता के लिए खिड़की खोलने का काम करते हैं।
इस लिहाज से ये प्रदर्शनकारी उन पुराने अराजकतावादी वामपंथियों से कहीं अलहदा हैं जो 1968 में पेरिस और बाकी यूरोप में हुए प्रदर्शनों के केंद्र में था। मसलन, नोवी साद में डेन्यूब नदी के ऊपर बने एक पुल को इन प्रदर्शनकारियों ने चौबीस घंटे तक जाम रखा। फिर अपनी रैली को तीन घंटा और बढ़ा दिया ताकि वे उस इलाके की सफाई कर सकें। 1968 में पेरिस के पत्थरबाज युवाओं से ऐसा करने की क्या कोई कल्पना भी कर सकता है?
इन प्रदर्शनकारियों की राजनीति-प्रेरित अराजनीतिकता को कुछ लोग बेशक पाखंड मान सकते हैं, लेकिन बेहतर है कि इसे उनके उग्र-परिवर्तनवाद के संकेत के रूप में समझा जाए। ये लोग मौजूदा (प्राय: अलिखित) नियमों से राजनीति का खेल खेलने को अब तैयार नहीं हैं। लोकतांत्रिक संस्थाएं कैसे काम करती हैं, उसमें वे बुनियादी बदलाव की कोशिश कर रहे हैं।
इस कहानी में सबसे बड़ा पाखंडी यूरोपीय संघ है, जो इस डर से वुचिक के ऊपर कोई दबाव डालने से बच रहा है कि कहीं वे रूस की तरफ न मुझ़ जाएं। यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डर लियेन ने ‘’लोकतंत्र के लिए संघर्षरत’’ जॉर्जिया के लोगों के प्रति तो अपना समर्थन जाहिर किया है, लेकिन सर्बिया के जनउभार पर उन्होंने एकदम से चुप्पी साध रखी है। ध्यान रहे कि सर्बिया 2012 से ही यूरोपियन कमीशन की सदस्यता का आधिकारिक उम्मीदवार बना हुआ है। यूरोपीय संघ वुचिक को उनके मन की इसलिए करने दे रहा है क्योंकि उन्होंने स्थिरता और लीथियम निर्यात का वादा किया हुआ है। लीथियम इलेक्ट्रिक वाहनों का एक प्रमुख घटक होता है।
इससे पहले भी यूरोपीय संघ चुप ही रहा है, यहां तक कि चुनावी धांधली के आरोपों पर भी उसने सरकार की कोई आलोचना नहीं की थी। इस वजह से सर्बिया का नागरिक समाज एकदम ठंडा और अकेला पड़ गया था। फिर इसमें क्या आश्चर्य कि प्रदर्शनकारियों के हाथों में जो झंडे हैं उनमें यूरोपीय संघ के झंडे बहुत कम हैं? बीस साल पहले ‘’लोकतांत्रिक पश्चिम का हिस्सा बनने’’ के लिए युक्रेन में जो ‘’रंगीन क्रांति’’ का नुस्खा अपनाया गया था, ऐसा लगता है कि उसका अब कोई खरीददार नहीं बचा। यह यूरोपीय संघ के पतन की एक और सीढ़ी है।
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