Hathras Rape 2020

A demonstrator holds a placard during a protest against the release of the convicts in Bilkis Bano case

नए भारत में बलात्कारियों का संरक्षण : कैसे अच्छे दिन? किसके अच्छे दिन?

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बीते कुछ बरसों के दौरान भारत में यौन अपराधों और इनके केस में सजा होने के बीच बहुत गहरी खाई पनपी है। पीड़ितों की खुदकशी से लेकर उन्‍हीं पर पलट कर मुकदमा किया जाना, अपराधियों का माल्‍यार्पण, सरवाइवर के बयान पर संदेह खड़ा किया जाना, और आखिरकार सजा मिलने पर भी बलात्कारियों का जमानत पर बाहर निकल आना दंडमुक्ति की फैलती संस्कृति का पता देता है। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार आने से पहले राज्यसत्ता और पितृसत्ता ने इसकी जमीन बना दी थी। नारीवादी लेखिका-कार्यकर्ता रंजना पाढ़ी की विस्तृत पड़ताल

तीन साल बाद भूलगढ़ी: हाथरस की वह घटना, जिसने लोकतंत्र को नाकाम कर दिया

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आज हाथरस गैंगरेप कांड को तीन साल हो गए। तकनीकी रूप से साबित किया जा चुका है कि यह रेप कांड नहीं था। हत्‍या की मंशा भी नहीं थी। केवल एक आदमी जेल में है, तीन बाहर। परिवार कहीं ज्‍यादा सघन कैद में, जिसका घर सीआरपीएफ की छावनी बन चुका है। गांव से बाहर निकलने की छटपटाहट अदालतों में नाकाम हो चुकी है, हाथरस से शुरू हुई बंटवारे की राजनीति कामयाब। एक जीता-जागता गांव कैसे तीन साल में मरघट बन गया, बता रही हैं गौरव गुलमोहर के साथ भूलगढ़ी से लौटकर नीतू सिंह इस फॉलो-अप स्‍टोरी में