Indian Constitution

‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ के द्वेषी कैसे अंग्रेजों के वैचारिक वारिस हुए?

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नई संसद में संविधान की जिस प्रति को लेकर सांसद गए, उसकी प्रस्‍तावना से ‘समाजवाद’ और ‘सेकुलर’ नदारद था। जवाब मांगा गया, तो कानून मंत्री ने सपाट कह दिया कि मूल प्रस्‍तावना तो ऐसी ही थी। अगले ही दिन एक सत्‍ताधारी सांसद ने अपने संसदीय आचार से ‘सेकुलरिज्‍म’ की मूल भावना को ही अपमानित कर डाला। भाजपा के बाकी सांसद उसकी गालियों पर हंसते रहे। इन दोनों संवैधानिक मूल्‍यों से घृणा की वैचारिक जड़ें आखिर कहां हैं? इतिहास के पन्‍नों से मुशर्रफ अली की पड़ताल