‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ के द्वेषी कैसे अंग्रेजों के वैचारिक वारिस हुए?

नई संसद में संविधान की जिस प्रति को लेकर सांसद गए, उसकी प्रस्‍तावना से ‘समाजवाद’ और ‘सेकुलर’ नदारद था। जवाब मांगा गया, तो कानून मंत्री ने सपाट कह दिया कि मूल प्रस्‍तावना तो ऐसी ही थी। अगले ही दिन एक सत्‍ताधारी सांसद ने अपने संसदीय आचार से ‘सेकुलरिज्‍म’ की मूल भावना को ही अपमानित कर डाला। भाजपा के बाकी सांसद उसकी गालियों पर हंसते रहे। इन दोनों संवैधानिक मूल्‍यों से घृणा की वैचारिक जड़ें आखिर कहां हैं? इतिहास के पन्‍नों से मुशर्रफ अली की पड़ताल

भारत का ‘लेफ्ट’ और एजाज़ अहमद की तकलीफ

बीते 89 वर्ष में आरएसएस ने आखिर ऐसी कौन सी रणनीति अपनाई कि उसके राजनीतिक मोर्चे भाजपा ने 2014 में भारत की केन्द्रीय सत्ता पर कब्‍जा कर लिया? जबकि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी जिसकी विधिवत स्थापना आरएसएस के साथ ही 1925 में हुई थी और आजादी के बाद जो दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, अपने दो प्रदेश भी गंवा बैठी? ऐसा कैसे मुमकिन हुआ? इतिहासकार एजाज़ अहमद और एंतोनियो ग्राम्‍शी से सबक लेते हुए इस प्रासंगिक सवाल पर रोशनी डाल रहे हैं मुशर्रफ़ अली