Indira Gandhi

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‘इमरजेंसी’ आधी सदी बाद भी दबंग शासकों के लिए आईना क्‍यों है? एक निस्‍संग किताब से कुछ सबक

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इस साल प्रकाशित श्रीनाथ राघवन की इंदिरा गांधी पर लिखी किताब एक ओर सत्ता के काम करने के तरीके उजागर करती है, तो दूसरी तरफ आज के शासकों को चेतावनी भी देती है। पचास साल पहले इस देश में इमरजेंसी लगाने वाली युद्धोत्‍तर काल की पहली दबंग शासक इंदिरा गांधी पर आज की तारीख में कहानी कहना लोकतंत्र की उस नजाकत को उभारने जैसा काम है, जिसका मूल सबक यह है कि लोकतांत्रिक परिवर्तन और पतन दोनों एक ही राह के हमजोली होते हैं। ‘’इंदिरा गांधी ऐंड द ईयर्स दैट ट्रांसफॉर्म्‍ड इंडिया’’ पर अंतरा हालदर की समीक्षा

मैनपुरी का दलित नरसंहार: चार दशक बाद आया फैसला और मुखौटे बदलती जाति की राजनीति

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जुर्म जैसा दिख रहा था दरअसल वैसा था नहीं और इंसाफ जिस रूप में हुआ है उसकी भी जुर्म से संगति बैठा पाना मुश्किल है। इसके बावजूद, सब कुछ सरकार और उसे चलाने वाली जाति के पक्ष में ही रहा, और आज भी है। बयालीस साल पहले हुए साढ़ूपुर नरसंहार में बुधवार को आया फैसला कांग्रेस के पतन और भाजपा के उभार को समझने का एक कारगर मौका है