IPTA

Shanti Majumdar

भुला दी गईं माँओं और सवालिया नागरिकताओं के देश में शांति मजुमदार की कहानी का जी उठना…

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पांच साल पहले नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ देशव्‍यापी आंदोलन हुआ था। आज जब सैकड़ों की संख्‍या में पिछले चार माह से मुस्लिम बांग्‍लाभाषियों को चुन-चुन कर बांग्‍लादेश भेजा रहा है, नागरिकता के दावे रद्द किए जा रहे हैं और सरकारी कागजों का अदालतों में कोई अर्थ नहीं रह गया, सड़कें सूनी हैं। ऐसे में अचानक एक कहानी जिंदा हुई है- बंगाल की उस मां की कहानी, जिसने अपने नौ बच्‍चे धरती पर न्‍योछावर कर दिए फिर भी उसे अंत में यहां शरणार्थी ही माना गया। बीते 26 अगस्‍त को दिल्‍ली में मंचित हुए एक नाटक के बहाने नागरिकता के संकट पर अभिषेक श्रीवास्‍तव की कहानी

Cultural performance in Daman, Gujarat

वहां भी दिल धड़कते हैं मोहब्बत सांस लेती है: गुजरात में IPTA का गठन

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आम लोग सीधे-सरल और सच्चे होते हैं और उन्हें गीत संगीत कलाएं भाती हैं, न कि झूठ, धोखा, नफ़रत और हिंसा। आम लोग बहकाये जाते हैं निजी स्वार्थों की खातिर, लेकिन भीतर से उन्हें भी सुकून और इंसानियत की ही तलाश होती है। चाहे वो गुजरात हो या धरती पर मौजूद कोई और जगह। साल भर पहले ‘ढाई आखर प्रेम के’ नामक सांस्‍कृतिक यात्रा से उपजे इस अनुभव को अबकी उत्‍तरायण ने और गाढ़ा किया, जब गुजरात के वलसाड़ में इप्टा की तदर्थ समिति का गठन हो गया। साल भर में गुजरात की दूसरी सांस्‍कृतिक यात्रा पर विनीत तिवारी का रिपोर्ताज

Dhai Akhar team reaches Kim

ये वो गुजरात नहीं है जिसे कभी हिन्दू राष्ट्र की प्रयोगशाला कहा गया था…

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मध्‍य प्रदेश में अपना खास मुकाम हासिल करने के बाद ‘ढाई आखर प्रेम के’ नामक सांस्‍कृतिक यात्रा जब गुजरात पहुंची तो यात्रियों के मन में संदेह, भय और उत्‍तेजना मिश्रित भाव था। साबरमती से शुरू होकर जत्‍था जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, मन में एक नया सवाल घुमड़ता रहा कि ये तो 2002 वाला गुजरात नहीं है और शायद वैसा बनाया भी नहीं जा सकता, जैसी इसकी छवि है। समूची यात्रा में आयोजक, भागीदार और दस्‍तावेजकार के रूप में निरंतर शामिल रहे विनीत तिवारी का संस्‍मरणात्‍मक रिपोर्ताज

पहली बार खादी बुनने वाली श्रमिक महिलाओं का फैशन शो

मध्य प्रदेश: एक यात्रा के बहाने श्रम, प्रेम और ज्ञान की साझा संस्कृति के जिंदा होने की शिनाख्त

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एक धार्मिक राजतंत्र की शक्‍ल लेते इस राष्‍ट्र में साझा संस्‍कृति को बचाने की चिंताएं तो सर्वत्र हैं, लेकिन प्रयास उतने ही कम हैं। इस जटिल परिदृश्‍य में श्रम की महत्‍ता, ज्ञान की आवश्‍यकता और प्रेम की अनिवार्यता को आपस में कैसे पिरोया जाए, इस पर एक प्रयोग आजकल ‘ढाई आखर प्रेम के’ नाम के सांस्‍कृतिक जत्‍थे के माध्‍यम से चल रहा है। यह जत्‍था मध्‍य प्रदेश पहुंचकर कुछ कारणों से खास बन गया, आगे के लिए नजीर बन गया। समूची यात्रा में आयोजक, भागीदार और दस्‍तावेजकार के रूप में निरंतर शामिल रहे विनीत तिवारी का संस्‍मरणात्‍मक रिपोर्ताज