Maharashtra

Women fetching water in Barmer, Rajasthan

पानी केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, अब वह न्याय का प्रश्न बन चुका है! पी. साईनाथ का व्याख्यान

by

गुरुत्‍वाकर्षण के हिसाब से पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है, लेकिन हजारों साल से जाति, वर्ग और लैंगिक भेदों के मारे भारतीय समाज में यह नियम उलट जाता है। यहां पानी नीचे से ऊपर प्रवाहित होता है। यानी, निचले तबके पानी के लिए श्रम करते हैं और ऊंचे तबके उनका पानी हड़प लेते हैं। यह उलटा प्रवाह जब पानी के निजीकरण के साथ मिलता है तो भयावह असमानता का बायस बन जाता है। फिर पानी महज कुदरती संसाधन नहीं, न्‍याय का सवाल बन जाता है। वरिष्‍ठ पत्रकार पी. साईनाथ का व्‍याख्‍यान ‘पानी का रंग: खत्‍म होता एक प्राकृतिक संसाधन और बढ़ती असमानता’

Rajendra Shinde of Jalgaon district of Maharashtra and his wife Sonali, are landless labourers. With their kids and other families, they had come to Delhi due to the drought back home, Courtesy PARI

पलायन का मौसम फिर आ गया, खेतिहर मजदूरों का सवाल किसान आंदोलन में कब आएगा?

by

जनवरी खत्‍म होते ही उत्‍तरी महाराष्‍ट्र के गांवों के बस स्‍टैंड दोबारा गुलजार होने लगते हैं। एक ओर दिल्‍ली की सरहद पर किसान एमएसपी की मांग के लिए आमरण अनशन कर रहे हैं तो दूसरी ओर खेतिहर मजदूर अगले पांच महीनों की बेरोजगारी, पलायन और दिहाड़ी के लिए कमर कस रहे हैं। कृषि संकट के समाधानों में एमएसपी केवल एक मसला है, लेकिन सारा आंदोलन इसी के इर्द-गिर्द क्‍यों? जनवरी से जून तक खाली रहने वाले खेतिहर मजदूरों को राजनीति और किसान आंदोलन के विमर्श में कब लाया जाएगा? जलगांव से लौटकर हरेराम मिश्र की रिपोर्ट

संयुक्त विपक्ष के ‘चाणक्य’ के यहां भाजपा की सेंधमारी, महाराष्ट्र के बाद अब किसकी बारी?

by

विपक्षी एकता के लिए गैर-भाजपा दलों को एकजुट करने की मुहिम में लगे शरद पवार के घर में ही सेंध लग गई है। उनके भतीजे 40 से ज्‍यादा विधायकों के समर्थन से अचानक महाराष्‍ट्र के उपमुख्‍यमंत्री बन गए हैं। इस तरह शिव सेना के बाद अब एनसीपी भी बीच में से दो फाड़ हो गई है। कुछ और राज्‍यों में विपक्षी दलों के तमाम छोटे-बड़े नेता भाजपा के साथ संपर्क में हैं और सही मुहूर्त की बाट जोह रहे हैं। बंगलुरु में होने वाली संयुक्‍त विपक्ष की दूसरी बैठक खटाई में पड़ गई है।

‘नबाम रेबिया’ का मुकदमा और भुला दी गई एक मौत

by

सात साल बाद जिस फैसले की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट की उच्‍च पीठ से अभी होनी बाकी है, उसने नबाम रेबिया का नाम तो न्‍यायिक इतिहास में दर्ज कर दिया लेकिन कलिखो पुल को हमेशा के लिए मिटा दिया