Totalitarianism

1984 by George Orwell

युद्ध ही शांति है : पचहत्तर साल पहले छपे शब्दों के आईने में 2025 की निरंकुश सत्ताओं का अक्स

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सर्वसत्तावाद, अंधराष्‍ट्रवाद, स्‍वतंत्रता पर बंदिशों, निरंकुशता और एक पार्टी के एकाधिकारी राज का संदर्भ जब-जब आता है, 1949 में प्रकाशित जॉर्ज ऑरवेल के उपन्‍यास 1984 की सहज याद हो आती है। पचहत्तर वर्ष बाद यह उपन्‍यास अपने लेखनकाल के मुकाबले कहीं ज्‍यादा प्रासंगिक हो चुका है, इतना कि आए दिन कोई न कोई नेता, अदालत या असहमत इसको उद्धृत करता है। ऑरवेल ने 1984 में अपने काल्‍पनिक किरदार इमानुएल गोल्‍डस्‍टीन की एक काल्‍पनिक पुस्‍तक ‘द थ्‍योरी ऐंड प्रैक्टिस ऑफ ओलिगार्चल कलेक्टिविज्‍म’ के तीसरे अध्याय में युद्ध पर सर्वसत्तावादी पार्टी के नजरिये से विचार किया था। निरंकुश सत्ताओं को समझने के लिए प्रस्‍तुत युद्धविषयक तकरीर को वर्तमान संदर्भों में पढ़ा जाना चाहिए

निरंकुशता के विरुद्ध : तख्तापलट के पचास बरस और चिली का प्रतिरोधी सिनेमा

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चिली में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए की शह पर किए गए तख्‍तापलट को पचास साल पूरे हो गए। इतने ही बरस राष्‍ट्रपति सल्‍वादोर अलेन्‍दे की हत्‍या और उसके बारह दिन बाद महान कवि पाब्‍लो नेरूदा के निधन को भी हो रहे हैं। 11 सितंबर, 1973 से लेकर 1990 के बीच सत्रह साल की जिस तानाशाही और निरंकुशता ने देश में इनसानियत के सूरज को उगने से रोके रखा, उसकी भयावह स्‍मृतियों को दर्ज करने और संजोने का काम चिली के सिनेमाकारों ने किया। चिली के तख्‍तापलट पर केंद्रित सिनेमा की परंपरा पर सिने आलोचक विद्यार्थी चटर्जी की यह लंबी कहानी, अनुवाद अभिषेक श्रीवास्‍तव ने किया है

मिलान कुंदेरा के बहाने: प्राग और मॉस्को के दो विरोधी ध्रुव

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अपनी रचनाओं में कम्‍युनिस्‍ट सर्वसत्‍तावाद की आलोचना करने वाले चेक-फ्रेंच लेखक मिलान कुन्‍देरा 11 जुलाई को चल बसे। कभी वे कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के सदस्‍य हुआ करते थे। उन्‍हें पार्टी से निकाला गया था। वे 1975 में पेरिस चले आए और वहीं के नागरिक हो गए। उनके पीछे जो रह गए, जिन्‍होंने कम्‍युनिस्‍ट आतंक के साये तले देश नहीं छोड़ा बल्कि वे लड़े और सब सहे, उनकी कहानियां कम ज्ञात हैं