Tradition

Speckled Cobra in a field near an agricultural worker, WHO

MP : तांत्रिक हो या अफसर, यहां सबके लिए है सांप के जहर में अवसर सिवाय मरने वाले के…

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कभी सपेरों का देश कहे जाने वाले भारत में सांप के काटे से मरने वालों की संख्‍या पूरी दुनिया में सर्पदंश से होने वाली मौतों की आधी से ज्‍यादा है। अस्‍पतालों का टोटा, अंधविश्‍वास की व्‍याप्ति और विलुप्‍त होते देसी उपचारक समस्‍या को और गहरा कर रहे हैं। जहररोधी उपलब्‍ध करवाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, सरकार के निर्देश, और बीते सात साल से हर 19 सितंबर को मनाए जा रहे अंतरराष्‍ट्रीय सर्पदंश जागरूकता दिवस का कोई असर नहीं पड़ रहा है। उलटे, सांप भी अब भ्रष्‍टाचार की चपेट में आ गए हैं। अपनी तरह का मौलिक सांप घोटाला देखने वाले मध्‍य प्रदेश के सागर से सतीश भारतीय की रिपोर्ट

बिहार: परंपरा और लोकलाज के दबाव में गर्व और कर्ज का मर्ज बनता पितरों का श्राद्धभोज

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पितृपक्ष बीत गया। हर साल की तरह इस बार भी अंधविश्‍वास और कुरीतियों के खिलाफ तथा परंपराओं के पक्ष में खूब कागजी बहसें चलीं, लेकिन देश भर में अर्पण-तर्पण से लेकर भोज-भात चलता रहा। राजस्‍थान में मृत्‍युभोज के खिलाफ बने कानून का वहां कोई असर नहीं दिखता। बिहार का मिथिलांचल इस मामले में हमेशा की तरह सबसे आगे रहा। कर्ज लेकर, जमीन बेचकर भी लोग अपनी प्रतिष्‍ठा बचाते रहे। इसके बावजूद कई जगह इस परंपरा का विरोध हो रहा है, बेड़ियां टूट रही हैं। राहुल कुमार गौरव ने अपनी रिपोर्ट में जमीन पर हो रहे बदलाव का आकलन किया है