दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी रासायनिक कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी)-डॉव केमिकल्स, भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 304, 324, 326, 429, 35 के तहत एक अभियुक्त है। 1984 में हुई दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदा की जांच मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों जस्टिस एन. के. सिंह और जस्टिस शांति लाल कोचर ने की थी। इस जांच के कागजात और रिपोर्ट को सार्वजनिक किए बिना ही यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन की भोपाल फैक्ट्री के जहरीले कचरे को इंदौर के पास पीथमपुर, मध्य प्रदेश (एमपी) में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया है।
यूसीसी फैक्ट्री से 40 वर्षों के दौरान संग्रहित 12 लाख मीट्रिक टन से अधिक में से 337 टन जहरीला कचरा लेकर 12 ट्रक भारी सुरक्षा के बीच इंदौर के पास पीथमपुर के लिए रवाना हुए और बीती 2 जनवरी को कड़े विरोध के बीच वहां पहुंचे थे। उसके विरोध में भोपाल आपदा की पुनरावृत्ति के डर से आत्मदाह का प्रयास किया गया।
यूसीसी प्लांट के पूर्व कर्मचारियों ने फैक्ट्री परिसर में जहरीले पदार्थों की सूची साझा की है। इनमें शामिल हैं: ऑर्थो डाइक्लोरोबेंजीन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, क्लोरोफॉर्म, मिथाइल क्लोराइड, मेथनॉल, मरकरी, सेविन, अल्फा नेफ्थोल, आदि। यूसीसी का रासायनिक संयंत्र कीटनाशक कार्बेरिल (सेविन) के निर्माण के लिए कई कार्बनिक यौगिकों से निपटता है। फॉस्जीन और मोनोमिथाइल एमाइन (एमएमए) मिथाइल आइसो-साइनेट (एमआइसी) के निर्माण की प्रक्रिया में शामिल मुख्य कच्चे माल थे, जिसका उपयोग सेविन के उत्पादन के लिए अतिरिक्त अल्फा-नेफ्थॉल के साथ संयोजन में किया गया था। क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड, एमएमए, अमोनियम क्लोराइड, डाइमिथाइल यूरिया जैसे उप-उत्पाद सभी एकत्र किए गए और प्रक्रिया में वापस पुनर्नवीनीकरण किए गए। यूसीसी के संयंत्र स्थल के अंदर अनुपयुक्त तरीके से संग्रहीत विषाक्त पदार्थ मिट्टी और भूजल जलभृत में प्रवेश कर गए।
भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद के 1996 के अध्ययन में कारखाने के भीतर डंप किए गए कचरे में भारी धातुओं (कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, सीसा, मैंगनीज निकल और जस्ता) की उपस्थिति दिखाई गई थी। उसी कचरे में नेफ़थॉल और अन्य वाष्पशील कार्बनिक पदार्थ भी पाए गए थे।
पीथमपुर की रामकी कंपनी यूसीसी के खतरनाक कचरे को जलाने के लिए जिस भस्मीकरण तकनीक का उपयोग कर रही है उसका इतिहास आत्मविश्वास को प्रेरित नहीं करता है। इसने बिहार के भोजपुर के कोइलवर में सोन नदी के तल में एक खतरनाक अपशिष्ट भस्मीकरण संयंत्र का प्रस्ताव दिया था, जिसे ग्रामीणों के विरोध के कारण रोक दिया गया है। विशेष रूप से, सोन नदी मध्य प्रदेश में अमरकंटक पठार के पास से निकलती है और बिहार के पटना के पास गंगा नदी में मिल जाती है।
जिंदल अर्बन वेस्ट मैनेजमेंट (बवाना) लिमिटेड की ‘प्रस्तावित 3,000 टन अनुपचारित कचरे से ऊर्जा परियोजना (30 मेगावाट)’ को जलाए जाने की तकनीक पर 27 दिसंबर, 2024 को सार्वजनिक सुनवाई के दौरान दिल्ली के बवाना में कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। गौरतलब है कि न्यूयॉर्क टाइम्स की एक जांच से पता चला है कि दिल्ली के ओखला में जिंदल के अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र में भारी धातु की सांद्रता अमेरिका के दिशानिर्देशों से 19 गुना अधिक थी। पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) ने चीनी भस्मीकरण/बॉयलर प्रौद्योगिकी आधारित कारखाने की साइट से हवा और मिट्टी के नमूनों का परीक्षण किया था, जिसमें पार्किंसंस रोग, भ्रूण संबंधी समस्याएं, मस्तिष्क विकास संबंधी विकार और हड्डी, गुर्दे और हृदय रोग जैसी बीमारियों का पता चला था।
विशेष रूप से, आंतरिक सरकारी रिपोर्टों में यह दर्ज किया गया था कि संयंत्र में कानूनी रूप से स्वीकार्य मात्रा से 10 गुना अधिक डाइऑक्सिन था, जिसका इस्तेमाल वियतनाम के खिलाफ अमेरिकी सेना द्वारा एक रासायनिक हथियार के रूप में किया गया था। इसका अमेरिका और वियतनाम दोनों संयुक्त अध्ययन कर रहे हैं क्योंकि वियतनाम के लोगों पर इसे डालते समय अमेरिकी सैनिक भी डाइऑक्सिन के संपर्क में आए थे। न्यू यॉर्क टाइम्स ने 2019 से 2023 तक पांच साल की अवधि में लगभग 150 हवा और मिट्टी के नमूने एकत्र किए थे और जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ काम किया था, जिन्होंने नमूनों का विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकाला।
यह घटनाक्रम किसिंजर केबल्स के विकीलीक्स खुलासे की पुष्टि है, जिसमें खुलासा हुआ था कि कैसे भारत सरकार भोपाल में यूसीसी और डॉव केमिकल कंपनी के हितों की पूर्ति के लिए अमेरिकी सरकार के दबाव के आगे झुक गई थी। शुरुआत में भारत सरकार ने यूसीसी से 3 अरब डॉलर के मुआवजे की मांग की थी लेकिन अचानक 470 मिलियन डॉलर के साथ समझौते पर राजी हो गई।
यूसीसी का कचरा लादे ट्रकों की आवाजाही 20 दिसंबर, 2024 को स्विट्जरलैंड के जिनेवा में अंतरराष्ट्रीय निगमों (टीएनसी) को उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेह ठहराने (बाध्यकारी संधि) के लिए संयुक्त राष्ट्र संधि के लिए ऐतिहासिक 10वें सत्र की बातचीत के बाद इसी तरह के दबाव से जुड़ी हुई प्रतीत होती है। “टीएनसी लॉबी” की ओर से नियोक्ताओं के अंतर्राष्ट्रीय संगठन के प्रतिनिधि ने वैश्विक दक्षिण सरकारों को विनिवेश की धमकी दी है। वार्ता प्रस्तावित बाध्यकारी संधि की टीएनसी को उनकी मूल्य श्रृंखलाओं में उत्तरदायी रखने और उन्हें लोगों की इच्छा के अधीन बनाने की क्षमता पर केंद्रित है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के 3 दिसंबर, 2024 के आदेश में कहा गया: “हमने इस न्यायालय द्वारा 30.03.2005, 13.05.2005 और 23.06.2005 को पारित विभिन्न आदेशों और उसके बाद हाल ही में पारित आदेश दिनांक 11.09.2024 का अवलोकन किया है। हालांकि कुछ कदम उठाए गए हैं लेकिन वे न्यूनतम हैं और उनकी सराहना नहीं की जा सकती क्योंकि वर्तमान याचिका वर्ष 2004 की है और लगभग 20 साल बीत चुके हैं लेकिन उत्तरदाता पहले चरण में हैं…।”
इसमें कहा गया है, ”यह वास्तव में एक खेदजनक स्थिति है क्योंकि संयंत्र स्थल से जहरीले कचरे को हटाना, एमआइसी (मिथाइल आइसोसाइनेट) और सेविन संयंत्रों को निष्क्रिय करना और आसपास की मिट्टी और भूजल में फैले दूषित पदार्थों को हटाना सर्वोपरि आवश्यकता है।” न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला: “उपरोक्त के मद्देनजर हम निर्देश देते हैं कि प्रमुख सचिव, भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग इस देश के पर्यावरण कानूनों के तहत अपने वैधानिक दायित्वों और कर्तव्यों का पालन करें। हम भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री स्थल की तत्काल सफाई करने और संबंधित क्षेत्र से संपूर्ण जहरीले कचरे/सामग्री को हटाने और सुरक्षित निपटान के लिए सभी उपचारात्मक उपाय करने का निर्देश देते हैं।”
उच्च न्यायालय के आदेश को 4 मई, 1989 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के साथ पढ़ा जाना चाहिए, जिसमें लिखा है: “हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि यदि इस अदालत के समक्ष कोई सामग्री रखी जाती है, जिससे उचित निष्कर्ष संभव हो कि यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने किसी भी समय पहले 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर के एकमुश्त डाउनपेमेंट से अधिक राशि का भुगतान करने की पेशकश की थी, तो यह अदालत सीधे स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई शुरू करेगी, जिसमें संबंधित पक्षों को कारण बताने की आवश्यकता होगी कि 14 फरवरी के आदेश का कारण क्या है।” 1989 को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए और पार्टियों को उनके संबंधित मूल पदों पर नहीं धकेला जाना चाहिए।
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समझौते के बाद 4 मई, 1989 को सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि यह सूचित किया गया था कि 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा 1,02,000 घायलों और 3,000 मृत व्यक्तियों के लिए था। गौरतलब है कि घायलों और मृतकों का यह आंकड़ा पहली बार रिकॉर्ड पर आया है। विशेष रूप से 2010 में भारत सरकार ने अनुमान लगाया था कि आपदा के पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजा राशि 7,800 करोड़ रुपये से अधिक होगा क्योंकि घायल और मृत पाए गए लोगों की संख्या 5,73,000 से अधिक है, जो उस अनुमानित संख्या से अधिक है जिस पर समझौता आधारित था।
दोहरे मानक के एक क्लासिक मामले में, डॉव ने यूसीसी की एस्बेस्टस संबंधी देनदारी को स्वीकार कर लिया है और संयुक्त राज्य अमेरिका में 2.2 बिलियन डॉलर का मुआवजा कोष स्थापित किया है, लेकिन उसने भोपाल में आपदा, पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रदूषण, इसके खतरनाक कचरे के लिए अपनी देनदारी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जयनंदन सिंह ने एस्बेस्टस से “स्वास्थ्य के खतरों और भोपाल गैस त्रासदी की पुनरावृत्ति से सुरक्षा” के लिए समिति गठित की थी। यह उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु की रामको एस्बेटस कंपनी की एक के लिए अनुमति के साथ एस्बेस्टस कारखाने की दो इकाइयां बिहिया, भोजपुर में अभी भी चल रही हैं। राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस घोषणा के बावजूद कि बिहार सरकार 1 जुलाई, 2019 को राज्य में कैंसरकारक एस्बेस्टस कारखानों के निर्माण की अनुमति नहीं देगी।
रामको कंपनी के कारखाने पटना उच्च न्यायालय से प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के कारण राहत पाने में कामयाब रहे क्योंकि बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष (एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी) ने कारखानों की अनुमति को रद्द कर दिया था मगर अपने स्वयं के आदेश के खिलाफ अपीलीय प्राधिकारी बन अपील की सुनवाई कर बैठे थे। अब जब प्रक्रियात्मक त्रुटि को ठीक कर दिया गया है, तो भोपाल गैस कांड के सबक को याद करते हुए रामको एस्बेस्टस कंपनी की दो इकाइयों के संचालन को रोक दिया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय के आदेश से यह काफी स्पष्ट है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष को “पार्टियों को सुनने के बाद कानून के अनुसार ताजा आदेश” को फिर से जारी करना होगा और बिहार में एस्बेस्टस आधारित दोनों इकाइयों के खिलाफ अपने पहले के आदेश को दोहराना होगा।
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विदेशी रसायन और एस्बेस्टस कंपनियों के दोहरे मापदंड के अनेक उदाहरण हैं। अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया में यूसीसी के इंस्टीट्यूट प्लांट में सुरक्षा मानकों का एक सेट तैनात किया गया था, लेकिन यूसीसी के भोपाल प्लांट में सुरक्षा मानकों, मैनुअल और संचालन प्रक्रियाओं का एक अलग सेट लागू किया गया था, तब भी वही दोहरे मानक अपनाए गए थे।
9 अगस्त, 2012 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने फैसले के पैरा 35 के उप-पैरा (12) में दर्ज किया था कि “यह निर्विवाद है कि विशाल विषाक्त सामग्री/कचरा अभी भी और भोपाल में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (i) लिमिटेड के कारखाने में और उसके आसपास पड़ा हुआ है। इसका अस्तित्व स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है।” मगर 4 जनवरी, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने लिखा: “हम 9 अगस्त, 2012 को निर्णय में पैरा 35 के उप-पैरा (12) में दिए गए निर्देशों को हटा देते हैं।” ऐसा प्रतीत होता है कि देशी व विदेशी कंपनियों और उनके चंदे का असर अदालतों को भी बौना बना देता हैं।
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अब कोई नहीं जानता कि जस्टिस शांति लाल कोचर के नेतृत्व वाले यूनियन कार्बाइड जहरीली गैस रिसाव जांच आयोग की रिपोर्ट को मध्य प्रदेश सरकार क्यों छिपा रही है। कोई नहीं जानता कि यूसीसी ने 2 दिसंबर 1984 को लीक हुई गैस की संरचना का खुलासा क्यों नहीं किया।
जब तक आयोग की रिपोर्ट एक्शन टेकेन रिपोर्ट के साथ मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश नहीं की जाती, तब तक सरकारी अधिकारियों का कोई भी आश्वासन भरोसेमंद नहीं माना जा सकता। यह नहीं भुलाया जा सकता कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, आपदा पीड़ितों की दुर्दशा की परवाह किए बिना यूसीसी की फैक्ट्री के जहरीले उत्सर्जन से खुद को बचाने के लिए भोपाल से भाग गए थे। इस तथ्य को देखते हुए कि एमपी के मंत्री और अधिकारी जो भोपाल के निवासी हैं, खुद को खतरे में नहीं डालना चाहते थे, ऐसी ही स्थिति अब सामने आई है।
दुनिया के सबसे घातक रासायनिक कचरे के सम्बन्ध में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया कोई भी आदेश जो मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों- जस्टिस एन. के. सिंह और जस्टिस शांति लाल कोचर- की जांच के कागजात और रिपोर्ट का संज्ञान नहीं लेता है, वह न तर्कसंगत होगा न ही न्यायसंगत। ऐसे फैसले कानून के शासन के सिद्धांत के खिलाफ हैं और वे सदैव न्यायशास्त्र के कठघरे में और जनता की अदालत में नाजायज बने रहेंगे।