एस्बेस्टस के संपर्क में आने से हुई सैकड़ों लोगों की मौत से जुड़े संगीन हत्या के आरोप में स्विस अरबपति स्तेफन श्मीथाइनी को इटली की एक अदालत ने बीते 7 जून को 12 साल की जेल की सजा सुनाई है। यह भारत के लिए भी एक अहम सबक है। इसी तरह का एक फैसला भारत में एस्बेस्टस आधारित उत्पादों के निर्माताओं के लिए आना बाकी है, जो भारतीयों की वर्तमान और भावी पीढ़ियों के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं। यह फैसला भारत के लिए इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि स्तेफन श्मीथाइनी की कंपनी इटर्निट के संयंत्र भारत में भी थे। नई संसद भवन सहित भारत में ऐसा कोई भी सार्वजनिक या निजी भवन नहीं है, जो एस्बेस्टस से मुक्त हो।
स्तेफन श्मीथाइनी एक 73 वर्षीय स्विस उद्योगपति हैं। वे सीमेंट कंपनी इटर्निट इटालिया के मालिक रह चुके हैं। उन्हें नोवारा की एक अदालत ने पीडमोंट प्रांत के शहर कसाल मोनफेरातो में 392 लोगों की मौत का दोषी पाए जाने के बाद सजा सुनाई थी। पीडमोंट में 1986 तक इटर्निट इटालिया के छह सबसे बड़े कारखाने हुआ करते थे। श्मीथाइनी ने ही 1976 से लेकर इन कारखानों को बंद किए जाने तक इनका प्रबंधन किया था। श्मीथाइनी की कंपनी इटर्निट एसईजी, इटर्निट इटालिया में प्रमुख शेयरधारक थी। 1986 में इटर्निट इटालिया दिवालिया हो गई। न्यायाधीशों ने श्मीथाइनी को आदेश दिया है कि वे कसाल मोनफेरातो को अनंतिम नुकसानों की भरपाई के एवज में उसके स्थानीय प्राधिकरण को 50 मिलियन यूरो अदा करें। इसके साथ ही इटली के संबंधित राज्य को 30 मिलियन यूरो और एस्बेस्टस से हुई बीमारियों के शिकार लोगों के एक स्थानीय परिजन संघ को 500 मिलियन यूरो का भुगतान करें।
इस मामले में श्मीथाइनी की कंपनी के बजाय निजी तौर पर उनके खिलाफ मुकदमा इसलिए दायर किया गया क्योंकि इटली के कानून के तहत कार्यस्थल पर हुई दुर्घटनाओं या मौतों का जिम्मेदार फर्म के मालिक को माना जाता है। इटर्निट के कारखाने से जो एस्बेस्टस का कचरा निकलता था, उसका निपटारा कारखाने के बाहर ही कर दिया जाता था, जिससे पूरे शहर में एस्बेस्टस की धूल उड़ती रहती थी। कैंसर पैदा करने वाले एस्बेस्टस के रेशों को पूरे शहर में फैलाने और उससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष जोखिम पैदा करने का जिम्मेदार श्मीथाइनी के कारखाने को माना गया था।
सत्तर के दशक के आखिरी वर्षों में पाया गया था कि एस्बेस्टस से होने वाले कैंसर के एक दुर्लभ रूप प्लूरल मेसोथेलियोमा (फेफड़े से सम्बंधित) के रोगियों की संख्या में खतरनाक ढंग से वृद्धि हुई थी। ऐसा इसके बावजूद था कि एस्बेस्टस के संपर्क में आने से होने वाली बीमारियों के लक्षण प्रकट होने में काफी समय लगता है, वे तुरंत सामने नहीं आती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, “सभी प्रकार के एस्बेस्टस फेफड़ों के कैंसर, मेसोथेलियोमा, स्वरयंत्र और अंडाशय के कैंसर और एस्बेस्टोसिस (फेफड़ों के फाइब्रोसिस) का कारण बनते हैं। एस्बेस्टस का संपर्क हवा में मौजूद फाइबर की सांस लेने के माध्यम से होता है जो एस्बेस्टस का इस्तेमाल करने वाली फैक्ट्रियों के कार्यस्थल और आसपास होता है। इसके अलावा भुरभुरी एस्बेस्टस सामग्री वाली इमारतों के अंदर की वह हवा में मौजूद होता है।” इससे पता चलता है है कि एस्बेस्टस से संबंधित अन्य बीमारियां और साथ ही एस्बेस्टस के कार्यस्थल से इतर मौजूद जोखिमों के कारण भी हजारों मौतें होती हैं।
भारत सरकार के लिए सबक क्यों है यह सजा?
एस्बेस्टस से हुई मौतों के लिए स्तेफन श्मीथाइनी की दोषसिद्धि येल विश्वविद्यालय के लिए भी एक सबक है जिसने स्तेफन को मानद उपाधि दी हुई है। यह फैसला इस उपाधि को रद्द करने का मार्ग प्रशस्त करता है। इससे पहले येल विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न के आरोपित कॉमेडियन बिल कॉस्बी की मानद उपाधि को रद्द कर चुका है।
स्तेफन श्मीथाइनी की गढ़ी गई साफ-सुथरी छवि का निर्माण इस तथ्य से समझा जा सकता है कि श्मीथाइनी परिवार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित उसके फ़ाउंडेशन की ओर से दिया जाने वाला मैक्स श्मीथाइनी फ़्रीडम प्राइज़ बड़ी शख्सियतों को मिल चुका है। इससे सम्मानित किए जाने वालों में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफी अन्नान, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर, यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर रोमानो प्रोदी, नोकिया के सीईओ जोर्मा ओलीला, द इकोनॉमिस्ट, द इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ द रेड क्रॉस और इन्फोसिस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के संस्थापक-अध्यक्ष एन. आर. नारायणमूर्ति हैं। श्मीथाइनी को सुनाई गई सजा के बाद उसके फाउंडेशन से सम्मानित व्यक्तियों और संस्थानों का यह नैतिक दायित्व बनता है कि वे दागी पुरस्कारों और दान को वापस कर दें।
अक्टूबर 2022 में एस्बेस्टसजनित रोगों के शिकार लोगों के परिजनों द्वारा येल यूनिवर्सिटी को लिखी गई चिट्ठी
2022-10-03-Afeva-Yale-Universityइटली की अदालत का यह फैसला भारत के लिए इस संदर्भ में प्रासंगिक है क्योंकि एक अनुमान के मुताबिक हर 170 टन एस्बेस्टस की खपत के हिसाब से एक आदमी की मौत मेसोथेलियोमा से हो जाती है। भारत एस्बेस्टस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसने 2019-20 में 3,61,164 टन एस्बेस्टस का आयात किया। एस्बेस्टस का आयात मुख्य रूप से रूस (85%), ब्राजील, कजाकिस्तान, हंगरी (3% प्रत्येक), और पोलैंड व दक्षिण अफ्रीका (2% प्रत्येक) से हुआ था। एस्बेस्टसजनित रोगों की ऊष्मायन अवधि (इंक्यूबेशन पीरियड) बहुत लंबी होती है। इसलिए, यदि आप आज एस्बेस्टस फाइबर के संपर्क में हैं, तो आपको अगले 10-50 वर्षों में यह बीमारी होने की पूरी संभावना है। एस्बेस्टस फेफड़ों के लिए टाइमबम की तरह है। इसका सबसे ज्यादा खमियाजा भारतीयों को भुगतना पड़ेगा। अगर आज इस पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों को परेशानी नहीं होगी। पिछले उपयोग के कारण लोग इन बीमारियों से पीड़ित ही रहेंगे।
एस्बेस्टस उद्योग पर सबसे आधिकारिक पुस्तक एस्बेस्टस: मेडिकल एंड लीगल एस्पेक्ट्स लिखने वाले डॉ. बैरी कैसलमैन इटली की अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, “अदालत लगभग तीन महीने में अपने फैसले का लिखित स्पष्टीकरण जारी करेगी, जिसे मोटिवेशन कहा जाता है। इटली में श्मीथाइनी तीन हत्याओं का दोषी है। अन्य केसों में 2019 में तुरिन (एक मौत, जिसमें अपील के बाद चार साल की सजा डेढ़ साल की कर दी गई) और 2022 में नेपल्स (एक मौत, साढ़े तीन साल की जेल) शामिल हैं। इस फैसले से जुड़ी कुल 392 मौतों में एक्सपोजर की तारीखों या अधूरे हिस्टोलॉजिकल टेस्ट डेटा के अपर्याप्त प्रमाण के चलते कुछ मौतों को बाहर रखा गया है। इसके अलावा, 300 से कुछ अधिक मौतों में, दोषसिद्धि आरोपपत्र तैयार करने की अवधि (statute of limitations) के समाप्त हो जाने के कारण नहीं हो सकी। बाकी की 30 मौतों में अदालत ने माना कि इनमें आरोपपत्र तैयार करने की अवधि दोषसिद्धि के आड़े नहीं आई थी। अन्य मुकदमों की तरह स्तेफन इस फैसले के खिलाफ भी अपील करेगा, जो आज तक कभी भी इटली की अदालत में पेश नहीं हुआ है, लेकिन अपनी पैरवी करने के लिए वकीलों पर उसने अब तक 100 मिलियन डॉलर से ज्यादा पैसा फूंक दिया है।”
ली डे (Leigh Day) एस्बेस्टस टीम, यूके के संयुक्त प्रमुख हरमिंदर बैंस कहते हैं “इटर्निट के पास भारत में एस्बेस्टस के कारख़ाने हैं जो एस्बेस्टस से संबंधित कई मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। मुझे उम्मीद है कि भारतीय कानूनी प्रणाली इतालवी कानूनी प्रणाली की तरह ही परिष्कृत है और वह इटली के कसाल मोनफेरातो के एस्बेस्टस पीडि़तों के समान ही भारत के पीड़ितों को न्याय देगी”। बैंस के पिता की मौत भी एस्बेस्टसजनित मेसोथेलियोमा रोग से ही हुई थी।
कटनी के किमोर में इटेक्स/इटर्निट का कारखाना
इस फैसले का संबंध सुप्रीम कोर्ट के 27 जनवरी 1995 के उपभोक्ता शिक्षा और अनुसंधान केंद्र (सीईआरसी) बनाम भारत सरकार वाले मुकदमे के साथ है। इस फैसले में कोर्ट ने सभी एस्बेस्टस कारखानों को निर्देश दिया था कि वे अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड को उनकी सेवानिवृत्ति के 40 साल और/या 15 साल बाद तक रखें। यह भारत के लिए उचित है क्योंकि मानव जीवविज्ञान हर जगह समान है। यदि विकसित देशों में एस्बेस्टस को खतरनाक और अनुपयोगी माना जाता है तो इसे भारत में भी ऐसा ही माना जाना चाहिए।
इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने एक अध्ययन को संज्ञान में लिया था जिसमें बताया गया था कि मध्य प्रदेश के कटनी में स्थित किमोर एस्बेस्टस का कारखाना जो पहले यूके की टर्नर एंड नेवॉल की सहायक कंपनी द्वारा संचालित किया जाता था, उसे 1992-1998 के बीच इटेक्स/इटर्निट की एक अनुषंगी कंपनी ने चलाया। इस कंपनी ने 600,000 वर्ग मीटर भूमि पर एस्बेस्टस का कचरा फेंका था। जहां कचरा फेंका गया उस जगह पर 3000 से अधिक लोग रहते हैं। अध्ययन में पाया गया कि यहां की मिट्टी में 70 प्रतिशत तक एस्बेस्टस मौजूद है और ऐसी दूषित मिट्टी की मात्रा एक मिलियन टन तक है। 1989 से 2001 के बीच भारत में पांच एस्बेस्टस कारखानों की शेयरधारक बेल्जियम की इटेक्स/इटर्निट कंपनी थी। एस्बेस्टस पर बेल्जियम में लगाए गए प्रतिबंध से पहले ही इस कंपनी ने अपनी भारतीय आनुषंगिक को बेच दिया था।
किमोर के कारखाने और इसके आसपास के क्षेत्र में श्रमिकों, उनके परिवारों, उपभोक्ताओं और नागरिकों को एस्बेस्टस फाइबर के जोखिम का सामना करना पड़ता है। एस्बेस्टस अपने पूरे जीवन-चक्र में मानव जीवन के लिए खतरा है। कंपनी के कुछ पूर्व कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों ने एस्बेस्टस संबंधी बीमारियों के उभरने की सूचना दी है। माना जाता है कि कारखाने के श्रमिकों में एस्बेस्टॉसिस का प्रसार 3 से 9 प्रतिशत तक है। ऐसी पृष्ठभूमि में, यह विडंबना है कि एस्बेस्टस कम्पनी एवरेस्ट तंबाकू नियंत्रण के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के अंतर्गत काम कर रही है! अब यही इंतजार बच रहा है कि कब एस्बेस्टस नियंत्रण के लिए सीएसआर के तहत काम करने के लिए तंबाकू उद्योग वाले आएं। यह स्थिति तब है जबकि दुनिया के करीब 70 देश इस बात को जान चुके हैं कि कैंसर पैदा करने वाले एस्बेस्टस के फाइबर का सुरक्षित और नियंत्रित उपयोग नामुमकिन है।
एस्बेस्टस से पैदा होने वाले लाइलाज रोगों की उपेक्षा करते हुए किमोर स्थित भारत के पहले एस्बेस्टस फाइबर आधारित संयंत्र को मध्य प्रदेश सरकार सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित भी कर चुकी है। इस तरह सरकार ने एस्बेस्टस संबंधित बीमारियों को खत्म करने की विश्व स्वास्यि संगठन की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया है, जिसके अंतर्गत एस्बेस्टस पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। संयोग से डब्ल्यूएचओ वही संस्था है जिसकी कोविड-19 पर सिफारिशें आज पूरी दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों की वैश्विक प्रतिक्रियाओं को नए सिरे से गढ़ने का काम कर रही हैं।
इस संबंध में यह अहम बात है कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने इस एस्बेस्टस फाइबर सीमेंट कारखाने से जुड़े मानव अधिकारों के उल्लंघन की ओर ध्यान दिया है। यह कंपनी आंशिक रूप से बेल्जियम स्थित इटेक्स/इटर्निट के स्वामित्व में ही हुआ करती थी जिसने मध्य प्रदेश के किमोर गांव को एस्बेस्टस के कचरे का डम्पिंग ग्राउंड बना डाला था। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने भारत सरकार को इस बारे में लिखा है, लेकिन हमारी सरकार अब भी एस्बेस्टसजनित बीमारियों के पीड़ितों की दुर्दशा के प्रति उदासीन बनी हुई है और चुप्पी साधे हुए है।
किमोर की एस्बेस्टस फैक्ट्री भारत में पहली थी। इसे ब्रिटिश कंपनी टर्नर एंड नेवॉल ने बनाया था। अंग्रेजों ने बिहार के तत्कालीन शाहाबाद जिले में भी एक एस्बेस्टस आधारित संयंत्र खोला था। किमोर के अलावा, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने नासिक, कोयम्बटूर, कोलकाता और रुड़की में एवरेस्ट के कारखानों की उपस्थिति का उल्लेख किया है। इन क्षेत्रों में श्रमिकों और समुदायों की दुर्दशा ध्यान देने योग्य है। भारत में लंबे समय से चल रहे एस्बेस्टस के कारखानों और खनन क्षेत्र में इस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद सफेद क्राइसोटाइल एस्बेस्टस खनिज फाइबर के चल रहे आयात, निर्माण, खरीद और उपयोग के प्रभावों का संज्ञान लेने की सख्त जरूरत है, जिस पर सरकारों और अफसरों को ध्यान देना चाहिए।
एस्बेस्टस का आयात जारी है
स्विस एस्बेस्टस टाइकून स्तेफन श्मीथाइनी की सजा इटर्निट प्रबंधन द्वारा श्रमिकों की सुरक्षा या चेतावनी के प्रयासों में अभाव से सीधे तौर पर जुड़ती है। संयंत्र के आसपास के समुदायों के लोगों के साथ यह बेपरवाही 80 साल तक जारी रही, जब तक कि संयंत्र पर ताला नहीं लग गया और 1986 में उसे दिवालिया घोषित कर दिया गया। समुदाय पर थोपा गया यह आतंक, साल दर साल एस्बेस्टस से मर रहे लोगों की गवाहियों में झलकता है।
घातक मेसोथेलियोमा, जो कैंसर के सबसे घातक रूपों में से एक है, एस्बेस्टस के संपर्क में आने से होता है। इसके शिकार एक व्यक्ति की बेटी चांदनी शर्मा की गवाही इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने की तात्कालिक आवश्यकता को स्थापित करती है। वे बताती हैं:
मेरे पिता श्री दयाकृष्ण शर्मा ने भारतीय नौसेना में 41 साल सेवा की। मेरे पिताजी को कई दिनों के लिए भर्ती कराया गया था, पूरी रात मैं मेसोथेलियोमा के बारे में पढ़ती थी, मैंने अपने पिता से पूछा कि क्या वह कभी एस्बेस्टस के संपर्क में आए थे, जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि एस्बेस्टस का इस्तेमाल नेवल डॉकयार्ड में किया जाता था। मैंने उनसे पूछा कि क्या वह निश्चित हैं- उन्होंने कहा बेशक, यह अग्निरोधक के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री थी और जब प्रक्रिया चल रही थी तो वह कई बार वहां मौजूद थे। मैं चकित थी, मेरे पिता को काम पर, देश की रक्षा में – भारतीय नौसेना में एस्बेस्टस के संपर्क में आने के कारण कैंसर का यह सबसे घातक रूप उपहार में मिला!
यह ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय नौसेना के अधिकारियों ने विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकोव में एस्बेस्टस की उपस्थिति पर आपत्ति उठाई है, जिसे एस्बेस्टस परिशोधन के बाद ही आइएनएस विक्रमादित्य के रूप में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। इसका मतलब कि भारत में नागरिक और सैन्य दोनों तरह के जीवन के समक्ष कैंसर पैदा करने वाले एस्बेस्टस खनिज फाइबर का खतरा मौजूद है।
भारतीय रेलवे 7,000 से ज्यादा रेलवे प्लेटफॉर्मों को एस्बेस्टस-मुक्त बनाने में लगा हुआ है। भारत ने स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव के कारण एस्बेस्टस के खनन पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन यह विडंबना है कि केंद्र सरकार रूस, ब्राजील, जिम्बाब्वे, कजाकिस्तान और अन्य देशों से सफेद क्राइसोटाइल एस्बेस्टस के आयात की अब भी अनुमति देती है। स्वास्थ्य पर इसके “हानिकारक” प्रभाव के कारण सरकार को इस संबंध में रूस जैसे एस्बेस्टस उत्पादकों द्वारा खुद को गुमराह नहीं होने देना चाहिए।
यूरोप में उद्योगपति और नेताओं को आज इसलिए अपने आपराधिक कृत्यों के चलते कारावास का सामना झेलना पड़ रहा है क्योंकि उन्होंने अनजान लोगों को जानबूझ कर जानलेवा एस्बेस्टस फ़ाइबर के गर्त में धकेलने का काम किया। भारत के एस्बेस्टस अपराधियों का भविष्य भी इससे अलग नहीं है। यह तेजी से साफ हो रहा है कि देर-सवेर, भारत में एस्बेस्टस उद्योग भी दिवालिया हो ही जाएगा क्योंकि उसे मुआवजे के रूप में एक बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ेगा। कानून में हर चोट का इलाज मौजूद है। इसलिए आज नहीं तो कल, लोग यह सुनिश्चित करेंगे कि अपने साथ हुए गलत की भरपाई उन्हें की जाए।
सरकार को एस्बेस्टस उद्योग को दो चरणों में समाप्त करने के लिए राजी करना चाहिए। पहले चरण में लक्ष्य क्राइसोटाइल एस्बेस्टस के उपयोग और देश में उससे प्रभावित श्रमिकों और उपभोक्ताओं की संख्या को समाप्त करना है। दूसरे चरण में यह सुनिश्चित करना होगा कि एक सुरक्षित सामग्री के उपयोग के लिए प्रोत्साहन मिले, एस्बेस्टस से लदी इमारतों का परिशोधन हो और एस्बेस्टस से संबंधित बीमारियों के पीड़ितों की एक रजिस्ट्री बने और उन्हें मुआवजा मिले। देश में सरकारी अस्पतालों के रिकॉर्ड से एस्बेस्टस से संबंधित बीमारियों के पीड़ितों की वर्तमान स्थिति का ऑडिट करने और डॉक्टरों को अनिवार्य प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए मेडिकल कॉलेजों को सक्षम बनाने की तत्काल आवश्यकता है ताकि वे जानलेवा फाइबर और पदार्थों के व्यावसायिक, अव्यावसायिक कारणों और पर्यावरणीय जोखिम से होने वाली बीमारियों का निदान कर सकें।
उपभोक्ताओं, सार्वजनिक स्वास्थ्य, श्रमिकों, पर्यावरण और मानवाधिकारों की चिंताओं के प्रति अक्षम्य संवेदनहीनता प्रदर्शित करते हुए असत्य और अवैज्ञानिक रुख को अपनाना भारत के रसूख के अनुरूप नहीं है। भारत को उन देशों से सीखना चाहिए जिन्होंने सफेद क्रिसोटाइल एस्बेस्टस सहित सभी प्रकार के एस्बेस्टस पर प्रतिबंध लगा दिया है। ये देश हैं: 1) अल्जीरिया, 2) अर्जेंटीना, 3) ऑस्ट्रेलिया, 4) ऑस्ट्रिया, 5) बहरीन, 6) बेल्जियम, 7) ब्रुनेई, 8) बुल्गारिया, 9) चिली, 10) क्रोएशिया, 11) साइप्रस, 12) चेक गणराज्य, 13) डेनमार्क, 14) मिस्र, 15) एस्तोनिया, 16) फिनलैंड, 17) फ्रांस, 18) गैबॉन, 19) ग्रीस, 20) जर्मनी, 21) जिब्राल्टर, 22) हंगरी, 23) होंडुरास, 24) आइसलैंड , 25) इराक, 26) आयरलैंड, 27) इजराइल, 28) इटली, 29) जापान, 30) जॉर्डन, 31) कुवैत, 32) लातविया, 33) लक्जमबर्ग, 34) लिथुआनिया, 35) मॉरीशस, 36) मोजाम्बीक, 37 ) माल्टा, 38) नीदरलैंड, 39) न्यू कैलेडोनिया, 40) न्यूजीलैंड, 41) नॉर्वे, 42) ओमान, 43) पुर्तगाल, 44) पोलैंड, 45) कतर, 46) रोमानिया, 47) सऊदी अरब, 48) स्वीडन, 49) स्विट्जरलैंड, 50) सर्बिया, 51) सेशेल्स, 52) स्लोवाकिया, 53) स्लोवीनिया, 54) दक्षिण अफ्रीका, 55) दक्षिण कोरिया, 56) स्पेन, 57) तुर्की, 58) उरुग्वे, 59) युनाइटेड किंगडम और 60) यूक्रेन। इन देशों के अलावा 10 और देशों ने सभी प्रकार के एस्बेस्टस पर प्रतिबंध लगा दिया है।
CERC बनाम भारत सरकार का मुकदमा
हमारे देश में सरकार मेसोथेलियोमा के मामलों को दर्ज नहीं करती है। इसीलिए सरकार यह दावा करती है कि भारत में कोई भी इस रोग से ग्रस्त नहीं है। डेटा की कमी का मतलब बीमारी का न होना नहीं है। यह पता चला है कि भारत में बहुत सारे एस्बेस्टस सीमेंट के कारखानों के मालिकान हमारे सांसद हैं। इनमें एस्बेस्टस का प्रमुख उपयोग होता है।
इतालवी अदालत के फैसले की पृष्ठभूमि में, भारत सरकार और राज्य सरकारों को 27 जनवरी, 1995 को सीईआरसी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए छह विशिष्ट निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) एस्बेस्टस से संबंधित पीड़ितों के बारे में सभी अस्पतालों से रिपोर्ट मांगने के लिए कहा जाना चाहिए। सरकारों को एस्बेस्टस से संबंधित बीमारियों के पीड़ितों के डेटाबेस, एस्बेस्टस से लदी इमारतों, एस्बेस्टस आधारित उत्पादों की एक सूची, अस्पतालों का एक डेटाबेस जो बीमारी का निदान कर सकते हों और एजेंसियों का एक डेटाबेस जो मौजूदा इमारतों से एस्बेस्टस का परिशोधन करने में सक्षम हों- के लिए एक आदेश जारी करना चाहिए। यह भारतीयों और भारत में रहने वाले लोगों की वर्तमान और भावी पीढि़यों के लिए मददगार साबित होगा।
समय आ गया है कि भारत सरकार और राज्य सरकारों को एस्बेस्टस आधारित उत्पादों के निर्माताओं को भारतीयों की वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी को जान-बूझकर घातक रेशों के संपर्क में लाने के लिए उत्तरदायी बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। इन निर्माताओं पर हत्या के अपराध का आरोप लगाने के लिए यह एक अकाट्य तर्क प्रस्तुत करता है। इटली में अरबपति एस्बेस्टस कारोबारी की सजा भारत में एस्बेस्टस संबंधित रोग पैदा करने वाले कारखानों और उत्पादों को बंद करने के लिए सरकारों को उनकी जिम्मेदारी का अहसास कराने का एक वाजिब कारण है।
(यह कहानी BANI द्वारा 9 जून 2023 को जारी किए गए एक सार्वजनिक बयान पर आधारित है। अनुवाद अंकुर जायसवाल का है और सम्पादन डेस्क का है। लेखक BANI से ही सम्बद्ध हैं, जिनके नाम से वक्तव्य जारी हुआ है)