पुस्तक समीक्षा : भारतीय समाज के ऐतिहासिक किरदार अपने घर की औरतों के लिए कैसे ‘मर्द’ थे?
byबहुत लंबे समय तक लैंगिकता के प्रश्न का अध्ययन औरतों को केंद्र में रखकर किया गया। आज भी भारतीय नारीवाद खुद को ज्यादातर औरतों के सवालों तक ही सीमित रखता है, हालांकि पुरुषों को समझने के लिए उनको केंद्र में लाने का चलन पश्चिम में काफी पहले शुरू हो चुका था। सबाल्टर्न इतिहासकार ज्ञानेंद्र पाण्डेय की इस साल आई नई किताब ‘मेन ऐट होम’ भारत की कुछ नायकीय विभूतियों के घरेलू व्यवहार की पड़ताल कर के घर और बाहर के बीच मर्दानगी की फांक को समझने की कोशिश करती है। इस किताब की समीक्षा अतुल उपाध्याय ने की है, जो लोकसंगीत में मर्दानगी के तत्वों पर खुद शोध कर रहे हैं