आजादी से पहले भी अदबी दुनिया इतनी ही हीन और चालाक थी! देवेंद्र सत्यार्थी के बहाने गुजरे जमाने…
byहिंदी, उर्दू और पंजाबी साहित्य के यायावर लेखक देवेंद्र सत्यार्थी 1908 में आज ही के दिन पैदा हुए थे। उस ज़माने में आज़ादी के आंदोलन की छांव में जब साहित्य की छायावादी और प्रगतिशील धाराएं एक साथ अंगड़ाई ले रही थीं, साहित्य-संस्कृति की दुनिया के बारे में उन्हीं के मुंह से सुनना अपने आप में बहुत दिलचस्प और आंखें खोलने वाला है। यह संस्मरण उर्दू के मानिंद लेखक बलराज मेनरा का लिखा हुआ है जिसमें कुछ लोगों ने उस दौर के लेखकों और प्रवृत्तियों के बारे में सत्यार्थी के साथ अनौपचारिक बातचीत की है। इस संस्मरण को 2004 में प्रकाशित बलराज मेनरा की संकलित कहानियों और संस्मरणों से साभार लिया गया है।