राखीगढ़ी का कंकाल और पौराणिक इतिहासकारों का डर

क्या कोई वैश्विक षडयंत्र हो रहा है इस बात को झुठलाने के लिए कि घोड़े और तीलीदार पहिए वाले रथ आज से 9000 साल पहले भारतीय सभ्यता का हिस्सा थे? पौराणिक इतिहासकार आखिर लगातार क्यों कहते हैं कि भारतीय लोग 200 साल से एक जटिल पश्चिमी षडयंत्र का शिकार हो रहे हैं जिसमें सैकड़ों वैज्ञानिक, इतिहासकार, भाषाविज्ञानी और पुरातत्ववेत्ता शामिल हैं?

एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हड़प्पा काल में स्तेपी के जीन का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। हरियाणा के राखीगढ़ी में पाए गए कंकाल के डीएनए के विश्लेषण ने यह नतीजा दिया है। इसी के आधार पर यह दावा किया जा रहा है कि हड़प्पाकालीन सभ्यता देसी थी, विशुद्ध सौ फीसद भारतीय थी और उसके विकास में किसी बाहरी प्रभाव का योगदान नहीं था।

चूंकि कई पौराणिक इतिहासकार इस तथ्य से आश्वस्त हैं कि राखीगढ़ी वैदिक कालीन है, तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि वेदों पर भी कोई बाहरी प्रभाव नहीं है। पौराणिक इतिहासकारों ने आंतरिक खगोलीय साक्ष्यों के आधार पर वेदों को 9000 वर्ष पुराना ईसा पूर्व 7000 का बताया है, रामायण की अवधि उनके मुताबिक 5000 ईसा पूर्व यानी 7000 साल पहले की है और कुरुक्षेत्र में हुआ महाभारत का युद्ध 3000 ईसा पूर्व में (5000 वर्ष पहले) हुआ था। वे इस बात से आश्वस्त हैं कि वेदों ने सिंधु-सरस्वती सभ्यता को गढ़ा, जो कि पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार ईसा पूर्व 2500 में उभरी (4500 वर्ष पहले) और 1900 ईसा पूर्व आते आते उसका अवसान हो गया (3900 वर्ष पहले)।

घोड़ा, रथ और एक सभ्यता

इस प्रस्तावना में हालांकि केवल एक दिक्कत है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार घोड़े को यूरेशिया में आज से केवल 5000 पहले ही पालतू बनाया गया था। इसी क्षेत्र में तीली वाले पहिए के रथ का आविष्कार आज से चार हज़ार साल पहले हुआ था जिसे घोड़े खींचते थे। हिक्सों ने मिस्र को जीतने के लिए 3600 वर्ष पहले रथ का प्रयोग किया था। यह घटना हड़प्पा सभ्यता के अवसान के बहुत बाद की है। युद्ध में रथ पर धनुर्धरों के शामिल होने के सबसे पुराने दृश्य साक्ष्य हित्तियों और मिस्रवासियों के यहां मिलते हैं जिन्होंने आज से 3300 साल पहले खादेश (आज का सीरिया) में जंग लड़ी थी। इसका आशय यह निकलता है कि घोड़े से खींचे जाने वाला तीलीदार पहियों का सबसे पुराने युद्धक रथ भी हड़प्पाकालीन सभ्यता से नया है।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वेद, रामायण और महाभारत – जो कि पौराणिक इतिहासकारों के मुताबिक हड़प्पा से पुराने हैं – उनके पास घोड़े से खींचे जाने वाले तीलीदार पहियों के युद्धक रथ का ज्ञान कहां से आया? वेदों में बाकायदे घोड़े का ज़िक्र है और इन्द्र को घोड़े के रथ पर बैठा वर्णित किया गया है। ऐसा ही एक रथ लेकर राम अयोध्या से निकले थे और कृष्ण ऐसे ही एक रथ के सारथी थे। आखिर यह कैसे संभव हो सकता है? क्या कोई वैश्विक षडयंत्र हो रहा है इस बात को झुठलाने के लिए कि घोड़े और तीलीदार पहिए वाले रथ आज से 9000 साल पहले भारतीय सभ्यता का हिस्सा थे? पौराणिक इतिहासकार इस बात को लगातार कहते रहे हैं कि भारतीय लोग 200 साल से एक जटिल पश्चिमी षडयंत्र का शिकार हो रहे हैं जिसमें सैकड़ों वैज्ञानिक, इतिहासकार, भाषाविज्ञानी और पुरातत्ववेत्ता शामिल हैं। इनकी राय से अलहदा दलील देने वाले किसी भी शख्स को देशद्रोही ठहरा दिया जाता है और उसके खिलाफ फतवा निकाल दिया जाता है।

पुराणों के हिसाब से राम के पहले कई राजा हुए हैं। उनके पूर्वज इक्ष्वाकु मनु के पुत्र थे जिन्होंने प्रलय के बाद सभ्यता का आरंभ किया था। यह प्रलय संभवतः 12000 साल पहले आए आखिरी हिम युग से आशय रखती है। मनुस्मृति में दर्ज जानकारी के साथ यह बिल्कुल सुसंगत जान पड़ता है जिसमें इंसानी सभ्यता के चार चरणों की अवधि 4800, 3600, 2400 और 1200 वर्ष बताई गई है जिसका कुल जोड़ 12000 वर्ष निकलता है।

जैसा कि पुराण बताते हैं, ऐसी कई अवधियां हुई हैं। यह कुल अवधि 27 नक्षत्रों का सूर्य द्वारा एक चक्कर लगाने की अवधि की आधी है। ज़ाहिर है इसका कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है लेकिन लोगों की सामूहिक स्मृति में एक लोकप्रिय सत्य के रूप में ये बातें पैबस्त हैं। राजनेता भी ये बातें मानते हैं। इसलिए इसके खिलाफ तर्क करने वाले पत्रकारों, इतिहासकारों और वैज्ञानिकों का वे करियर भी तबाह कर सकते हैं।

भारत में कृषि ईसा पूर्व 7000 जितना पुरानी है (पौराणिक इतिहासकारों के मुताबिक राम काल यही है) और गंगा के मैदानों में सबसे पुराने मृदभांड 1000 ईसा पूर्व के हैं। पौराणिक इतिहासकार हालांकि इसके कुछ और साक्ष्य मानते हैं – पुरातत्व के जानकारों को ये साक्ष्य नहीं मिले हैं या फिर हो सकता वे इन्हें खोजना ही न चाहते हों और इससे बुरी आशंका यह है कि वे इसे छुपा रहे हों। अमेरिका में श्वेत हिप्पी ब्राह्मणों ने यही विचार प्रवासी भारतीयों के बीच बेचने का काम किया है कि सारी सभ्यता की जड़ें दरअसल भारत में ही हैं। यह धारणा, कि पिछले हिम युग के बाद से उपजा समूचा सांस्कृतिक ज्ञान वेदों का दिया हुआ है।

पौराणिक और जैन इतिहास

पौराणिक इतिहास हो सकता सही हो लेकिन जैन इतिहास के साथ उसका टकराव है। जैनी मानते हैं कि नेमिनाथ, कृष्ण के समकालीन थे लेकिन उनका काल कम से कम 84000 वर्ष पुराना है। वे 22वें तीर्थंकर थे जबकि राम के समकालीन 20वें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ संभवतः 1184980 ईसा पूर्व हुए थे। पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ मोटे अनुमानों के मुताबिक 8400000 साल पहले हुए। ऋषभ और नेमि का ज़िक्र यजुर्वेद में है जो बताता है कि वेदों में प्राचीन स्मृतियां दर्ज हैं। ऋषभ का प्रतीक बैल था जो हड़प्पाकालीन मुहरों में पाया गया है (पुरातत्व विशेषज्ञों के मुताबिक 2500 ईसा पूर्व)। भरत उनके पुत्र हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष रखा गया। उनकी पुत्रियों ने ब्राह्मी लिपि को जन्म दिया (इतिहासकारों के मुतबिक  300 ईसा पूर्व) और दशमलव पद्धति की खोज की (इतिहासकारों के मुताबिक 200 ईसा पूर्व)। यह स्पष्ट नहीं है कि मनु, ऋषभ से पहले आए या बाद में। इस पर पौराणिक और जैन इतिहासकारों के बीच कोई सहमति नहीं है। कुछ कहते हैं कि ऋषभ ही शिव थे या शिव ही ऋषभ थे लेकिन हिन्दू पुराणों में शिव के विवाह और भौतिक जीवन का वर्णन है जबकि जैन पुराणों में ऋषभ द्वारा विवाह और भौतिक जीवन के परित्याग की बात है।

वेदों के बारे में प्रश्न

वर्तमान आनुवंशिक अध्ययनों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता निर्विवाद सत्य है लेकिन वेदों का क्या? क्या 1500 ईसा पूर्व के आसपास स्तेपी पशुपालकों के आगमन के बाद वेद रचे गए, जो कि वैश्विक ऐतिहासिक समयानुक्रम से सुसंगत दिखता है? पौराणिक इतिहासकार घोड़े से हांके जाने वाले तीलीदार पहियों के रथ की दलील को नकारते हैं। वे भाषाविज्ञानी शोधों, पुरातात्विक अध्ययनों और आनुवंशिक शोधों को भी खारिज करते हैं। उनका कहना है कि पश्चिमी विद्वान पहले से चली आ रही प्रस्थापना को सही ठहराने के लिए डेटा की गलत व्याख्या कर रहे हैं। वैसे भी ऋग्वेद में हिमालय के पार किसी गृहदेश की स्मृति दर्ज नहीं है।

वेदों में हालांकि दक्षिण भारतीय भौगोलिकता का भी कोई संकेत नहीं मिलता। तो क्या वेद केवल उत्तर भारतीय ग्रंथ हैं, अखिल भारतीय नहीं? प्राचीन धर्मसूत्रों में गंगा के मैदानों को ही आर्यावर्त बताया गया है। पौराणिक और तमिल कथाओं के अनुसार वैदिक ऋषि अगस्त्य दक्षिण पलायन कर गए थे। कावेरी का एक नाम दक्षिण गंगा भी है। क्या इसका मतलब यह निकलता है कि वेदों की धरती पूरा भारत नहीं, केवल उत्तर भारत है? आखिर यह तय कौन करेगा? इतिहासकार या पौराणिक इतिहासकार? नेता या वैज्ञानिक?


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