Environment

Women fetching water in Barmer, Rajasthan

पानी केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, अब वह न्याय का प्रश्न बन चुका है! पी. साईनाथ का व्याख्यान

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गुरुत्‍वाकर्षण के हिसाब से पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है, लेकिन हजारों साल से जाति, वर्ग और लैंगिक भेदों के मारे भारतीय समाज में यह नियम उलट जाता है। यहां पानी नीचे से ऊपर प्रवाहित होता है। यानी, निचले तबके पानी के लिए श्रम करते हैं और ऊंचे तबके उनका पानी हड़प लेते हैं। यह उलटा प्रवाह जब पानी के निजीकरण के साथ मिलता है तो भयावह असमानता का बायस बन जाता है। फिर पानी महज कुदरती संसाधन नहीं, न्‍याय का सवाल बन जाता है। वरिष्‍ठ पत्रकार पी. साईनाथ का व्‍याख्‍यान ‘पानी का रंग: खत्‍म होता एक प्राकृतिक संसाधन और बढ़ती असमानता’

Green Capitalism, Painting by Kartik Tripathi

धरती को बचाने के नाम पर सियासत और पूंजी का हरा-भरा गठजोड़

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पूंजीवाद के इस दौर में सार्वजनिक समस्‍याओं के समाधानों की विडम्‍बना यह है कि जिसने बीमारी पैदा की है दवा भी वही दे रहा है। वह बीमारी से भी पैसा कमा रहा है और दवा से भी। पूंजीवाद के फैलाये प्रदूषण से नष्‍ट हो रही धरती के लिए पूंजीपतियों द्वारा पैदा किया गया हरित पूंजीवाद का नुस्‍खा ऐसा ही टोटका है, जो जलवायु परिवर्तन के अपराधबोध से नागरिकों को भर के उन्‍हीं की जेब लूटता है। सरल शब्‍दों में आलोक राजपूत का विश्‍लेषण

Pithampur Ramki Factory where Bhopal waste is scheduled to be burnt

पीथमपुर पहुंचे जहरीले कचरे के बीच एक सवाल- कहां है जस्टिस सिंह-कोचर कमेटी की जांच रिपोर्ट?

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मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने मंगलवार को यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले कचरे के निपटान के लिए राज्य सरकार को तीन ट्रायल रन संचालित करने की अनुमति दे दी है। यह ट्रायल रन धार जिले के पीथमपुर स्थित औद्योगिक कचरा प्रबंधन केंद्र में 27 फरवरी से शुरू हो रहा है, जहां स्‍थानीय लोग इसके खिलाफ महीनों से आंदोलन पर आमादा हैं। सवाल है कि भोपाल गैस कांड की जांच के लिए बैठाई गई जस्टिस एनके सिंह और शांतिलाल कोचर की कमेटी की रिपोर्ट को छुपाकर राज्‍य सरकार पीथमपुर में कचरा जलाने पर क्‍यों आमादा है?

COVID के भुला दिए गए सबक और नए साल में आसन्न खतरों की फेहरिस्त

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पांच साल पहले भी नया साल आया था, लेकिन एक वायरस के साये में और दो-तीन महीने के भीतर पूरी दुनिया सिर के बल खड़ी हो गई। अरबों लोग घरों में कैद हो गए। लाखों लोग घर पहुंचने के लिए सड़कें नापते-नापते हादसों की भेंट चढ़ गए। संस्‍थाएं पंगु हो गईं। व्‍यवस्‍थाएं चरमरा गईं। हमारी कोई तैयारी ही नहीं थी एक अदद वायरस से निपटने के लिए, जबकि आने वाला समय ऐसे ही तमाम और वायरसों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, भूराजनीतिक टकरावों और जलवायु परिवर्तन के सामने निहत्‍था खड़ा है।

Ken Saro-Viva

तानाशाही सत्ताओं से कैसे न पेश आएं? केन सारो-वीवा की शहादत के तीसवें साल में एक जिंदा सबक

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एक लेखक अपने लोगों और अपने जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए फांसी पर झूल गया था, यह बात आभासी दुनिया के बाशिंदों को शायद मिथकीय जान पड़े। महज तीन दशक पहले दस नवंबर, 1995 को केन सारो-वीवा एक तानाशाह के हाथों शहीद हुए थे। बिलकुल उसी दिन, जब दशकों बाद जेल से आजाद हुए नेल्‍सन मंडेला बतौर राष्‍ट्रपति अपने पहले अंतरराष्‍ट्रीय सम्‍मेलन में भाग ले रहे थे। मुक्तिकामी संघर्षों की धरती अफ्रीका के इतिहास का यह अहम प्रसंग हमारी आज की दुनिया के लिए क्‍यों प्रासंगिक है? केन सारो-वीवा की हत्‍या के एक दशक बाद उनके गांव-शहर होकर आए वरिष्‍ठ पत्रकार आनंद स्‍वरूप वर्मा ने इसे अपनी पुस्‍तक में दर्ज किया है। आज केन सारो-वीवा को याद करते हुए उन्‍हीं की कलम से यह कहानी

Chutka Nuclear Plant

इनकार और इज्जत की जिंदगी पर बाजार भारी, चुटका के लोगों को दोबारा उजाड़ने की मुकम्मल तैयारी

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परमाणु हथियारों के खिलाफ अभियान चलाने वालों को शांति का नोबेल देकर दुनिया के बड़े देश वापस परमाणु ऊर्जा की ओर लौट आए, तो भारत ने भी जन-प्रतिरोध के चलते बरसों से अटकी परियोजनाओं को निपटाने के लिए कमर कस ली। पहली बार किसी राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को न्‍यूक्लियर प्‍लांट लगाने के काम में तैनात किया गया, और नतीजा सामने है। अपने अधिकारों, अपनी जिंदगी और अपनी आजीविका के लिए बरसों चली आदिवासियों की लड़ाई अब खत्‍म होने को है। बस दो पैसा ज्‍यादा मुआवजे का सवाल है, वरना मध्‍य प्रदेश के मंडला जिले के गांव के गांव अपना सामान फिर से बांध चुके हैं। यहां परमाणु प्‍लांट लगना है, तो लौटकर आने का सवाल ही नहीं है। संवैधानिक अधिकारों पर ऊर्जा-बाजार की जीत का चुटका प्रसंग आदित्‍य सिंह की कलम से

Flood scene from Malana, Himachal Pradesh

हिमाचल: फिर से बाढ़, फिर वही तबाही! सरकारों ने हिमालय के संकट पर कोई सबक नहीं लिया?

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हिमाचल प्रदेश में पिछले साल आई तबाही के जख्‍म अभी सूखे नहीं थे कि जुलाई के अंत में एक बार फिर बारिश उन्‍हीं इलाकों में सब कुछ बहा ले गई जो आपदा के मारे थे। कुछ जगहें तो बीते वर्षों में लगातार तीसरी बार साफ हो गई। जलवायु परिवर्तन के गहराते असर और राज्‍य की विकास नीतियों के अंधेपन के कारण बार-बार हिमालय का जीवन संकट में पड़ रहा है। हिमालय नीति अभियान ने पिछले साल से लेकर अब तक लगातार सरकारों को विकास-संबंधी सिफारिशें की हैं लेकिन राज्‍य की नीति में कोई बदलाव नहीं आ रहा। अभियान की फैक्‍ट-फाइंडिंग की रोशनी में इस बार की तबाही का एक फॉलो-अप

छतरपुर के पलटा गांव में खनन के दौरान मारे गए टिंकू रेकवार का शोकाकुल परिवार

बुंदेलखंड: अवैध खनन, गुमनाम मौतें और एक अदद तहरीर का इंतजार

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पुलिस नहीं चाहती कि उसके पास मरे हुए लोगों की एफआइआर हो। ठेकेदार और खदान मालिकान भी नहीं चाहते कि कानूनी पचड़े में उनका व्‍यापार फंसे। इसलिए इनके बीच एक अघोषित समझौता है कि उनकी लापरवाही से कोई मजदूर मर जाए तो उसके परिवार का मुंह पैसे से बंद करा दो। कोई बोले तो उसे गायब करवा दो, मरवा दो। मध्‍य प्रदेश के बुंदेलखंड की खदानों में लगातार अनाम मौत मर रहे मजदूरों पर सतीश मालवीय की जमीनी पड़ताल

वेदांता के खिलाफ अब कालाहांडी में खुल रहा है मोर्चा, लेकिन अबकी सामने अदाणी भी है…

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नियमगिरि आंदोलन की कामयाबी के बाद माना गया था कि पूर्वी तट के आदिवासियों के पहाड़ खनन से बच जाएंगे। आज दस साल बाद ठीक उलटा हो रहा है। वेदांता को तो बॉक्‍साइट खदान मिली ही है, अदाणी भी दो खदानों के साथ मैदान में है। संघर्ष का नया मोर्चा खुल रहा है कालाहांडी जिले के सिजिमाली और खंडुआलमाली में, जो देश का सबसे गरीब इलाका है। पिछले हफ्ते हुई दो जनसुनवाइयों में आदिवासियों ने कंपनी का जैसा प्रतिरोध किया है वह प्रेरक है, लेकिन यह लड़ाई तिहरी है और चुनाव पास हैं। अभिषेक श्रीवास्‍तव की लंबी रिपोर्ट

मौसम की मार, बेपरवाह सरकार और महुए के फूलने का अंतहीन इंतजार…

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सूखे के मामले में बीते अगस्त ने पिछले सौ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। मानसून में बारिश कम होने से सात राज्य संकट में हैं, लेकिन झारखंड के आदिवासियों की तो कमर ही टूट गई है जिनकी जिंदगी जंगल और उसके फल-फूल के भरोसे चलती है। एक तो बिचौलियों के खेल, उस पर से जलवायु के बदलाव और सरकारी योजनाओं का जमीन पर टोटा, तीनों के जाल में वन आश्रित समुदाय पलायन को मजबूर हैं। पुलिट्ज़र सेंटर के सौजन्य से लातेहार और पलामू से लौटकर सुष्मिता की रिपोर्ट