गढ़वाल के जोशीमठ में इस साल की शुरुआत में जब जमीन धंसने और पहाड़ दरकने की खबर फैली, तो सारा मीडिया हिमालय को बचाने के लिए उत्तराखंड की ओर निकल पड़ा। स्थानीय लोगों ने आंदोलन किया और धरना दिया, तब राज्य सरकार ने कमेटी बैठाने, सर्वे करवाने और विस्थापितों के पुनर्वास का आश्वासन देकर धरना खत्म करवा दिया। फिर चारधाम यात्रा हुई। मॉनसून आया। दो महीने लंबा चला सावन भी अब बीतने को है, लेकिन महीने भर पुरानी हिमाचल की आपदा ही जब सुर्खियों से गायब हो चुकी तो जोशीमठ को कौन पूछे!
राज्य सरकार के तमाम आश्वासन ठंडे बस्ते में जा चुके हैं। बारिश ने जोशीमठ की शक्ल और बिगाड़ दी है। लोग बेचैन हो चुके हैं। आज आंदोलन का दूसरा चरण गढ़वाल के पहाड़ों में अंगड़ाई ले रहा है।
तबाही जारी है
भले चार महीने पहले जोशीमठ से खबरें आना बंद हो गई थीं, लेकिन तबाही वहां लगातार जारी रही। मॉनसून आने के बाद हुई जबरदस्त बारिश के बीचोबीच अगस्त के पहले सप्ताह में जोशीमठ के दौरे पर पता चला कि भारी बारिश से वहां भू-धंसाव के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जुलाई के आखिरी पखवाड़े में हुई बारिश के दौरान शहर के सिंहधार एवं मारवाड़ी क्षेत्र में भू-धंसाव के नए मामले सामने आए हैं। सिंहधार में जमीन खिसकने से कुछ घरों में नई दरारें आई हैं। जिन घरों में पहले से दरारें थीं, वहां दरारें और बढ़ गई हैं।
खेती की जमीन भी लगातार फटकर नीचे की ओर खिसक रही है। बरसात में सिंहधार वार्ड में स्थित श्री देशिक विहार त्रिदण्डी मठ पूरी तरह ढह गया है। मठ में रहने वाले बाबा संतोष मठ ढहने के बाद से टीनशेड बनाकर रह रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने मकान में भी दरार आ गई है।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने बताया कि सिंहधार के अलावा मनोहरबाग में भी नए क्षेत्र में धंसाव हुआ है। एक मकान की छत टूट गई है। गांधीनगर वार्ड के नए क्षेत्र में भी गंभीर भूस्खलन हुआ है। नरसिंह मंदिर के पीछे और महाविद्यालय के पास स्थिति नाजुक है। जोशीमठ की जड़ में बहने वाली अलखनंदा नदी से हो रहे कटाव की रफ्तार बढ़ गई है। इसके चलते भूस्खलन फिर सक्रिय हो गया है। यदि यह भूस्खलन जारी रहता है तो गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।
अतुल कहते हैं, ‘’सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये को देखते हुए हम समय-समय पर एकदिवसीय विरोध प्रदर्शन करते रहते हैं, लेकिन अब हमारे पास अपने धरने को दोबारा शुरू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि तीन महीने बीत जाने के बाद आज तक हमारी मांगों को लेकर कोई ठोस कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई गई है।‘’
जोशीमठ के लोग सरकार के झूठे वादों और हिमालयी तबाही के खिलाफ 15 अगस्त को तिरंगा यात्रा निकालने वाले हैं। यात्रा में वे फिर से अपनी मांगों को उठाएंगे और आंदोलन के एक नए चरण की शुरुआत होगी।
अतुल सती के मुताबिक, ‘’जब तक हमारी मांगों को लेकर सरकार ठोस कार्रवाई नहीं करती, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।‘’
घर टूटा, होटल भी छूटा
एक तरफ जोशीमठ में धंसाव लगातार बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ स्थायी समाधान के अभाव में लोग अपने क्षतिग्रस्त मकानों में दोबारा लौटने लगे हैं। चौबीस घंटे जान को जोखिम में डालकर रहना जोशीमठ के निवासियों के लिए आम हो गया है। इस साल की शुरुआत में प्रशासन ने प्रभावित लोगों के लिए राहत शिविरों की व्यवस्था की थी और उन्हें अस्थाई रूप से होटलों, सरकारी भवनों, धर्मशालाओं में रखा गया था, लेकिन चारधाम यात्रा से उपजने वाला कारोबार मानवीय त्रासदी पर भारी पड़ गया।
सिंहधार निवासी 85 वर्षीय जवाहर लाल बताते हैं, ‘’हमारे मकान का सर्वे हो चुका है, हमने मकान की क्षतिपूर्ति के लिए मुआवजा की मांग करते हुए आवेदन भी दे रखा है लेकिन हमें अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। बीच में प्रशासन द्वारा हमें होटल में शिफ्ट करा दिया गया था। हम सिर्फ एक महीने ही होटल में रह पाए। चारधाम यात्रा का सीजन शुरू हो गया और फिर होटल मालिकों ने हमसे होटल खाली करा लिया। मजबूरन हमें अपने दरारों वाले क्षतिग्रस्त घर में ही रहना पड़ रहा है।‘’
सिंहधार वार्ड में ही रहने वाली लक्ष्मी देवी का प्रधानमंत्री आवास योजना वाला घर धंसा पड़ा है। वे बताती हैं कि उनके बच्चों की पढ़ाई और मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा है, ‘’बच्चों का भविष्य अधर में अटका है। इसीलिए हम चाहते हैं कि एक ठोस एवं स्थायी पुनर्वास-विस्थापन नीति जल्द ही तैयार हो और हमें सुरक्षित स्थानों पर बसाया जाए। राहत शिविर में रखना और भोजन देना कोई स्थायी समाधान नहीं है।”
यहां मकान ही नहीं, जमीन भी धंस रही है। सिंहधार निवासी पशुपालक और खेतिहर मजदूर बुद्धिलाल की खेती की जमीन लगातार धंसने के बाद प्रशासन ने उनके परिवार को होटल में शिफ्ट कराया था। दो महीने पहले होटल ने उनके परिवार को खाना देना बंद कर दिया। उन्हें खाना खाने के लिए नगरपालिका भेजा जाने लगा।
वे बताते हैं, ‘’चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद होटल खाली करने का भी प्रेशर बनाया जाने लगा। हमें खाना खाने नगरपालिका जाना पड़ता था, पशुओं की देखभाल के लिए अपने घर आना पड़ता था और रात को सोने के लिए होटल जाना पड़ता था।‘’
बच्चों के स्कूल खुलने के बाद बुद्धिलाल की परेशानी और बढ़ गई। उन्हें मजबूरन अपने परिवार के साथ घर लौटना पड़ा। अब उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
प्रभावित लोगों से होटल खाली कराए जाने के मामले पर जोशीमठ की एसडीएम कुमकुम जोशी कहती हैं, “पहले इस तरह के मामले आए थे, इसके बाद मेरे द्वारा दो आदेश पास किए गए हैं- एक आदेश होटल एसोसिएशन के लिए है और दूसरा समस्त जनता के लिए है, कि यदि कोई भी होटल मालिक लोगों को होटल छोड़ने के लिए बाध्य करता है तो तुरंत हमें सूचित करें। हम उन्हें दूसरे होटल में या अन्य शिविर में शिफ्ट कराएंगे। होटल मालिक के खिलाफ ऐक्शन लिया जाएगा।‘’
इसके साथ ही वे यह भी कहती हैं कि ‘’कई बार होटल मालिकों को होटल में रखरखाव कार्य के मद्देनजर रूम खाली कराने पड़ते हैं, तो ऐसे में हमें आपसी सहयोग का परिचय देना चाहिए।”
लोगों के घर लौटने वाली बात को वे सीधे नकारती हैं, “कोई भी घर वापस नहीं गया है, बीच में गांधीनगर के कुछ लोग घर लौटे थे जिनको यह भ्रम था कि राहत शिविर 1 अप्रैल से बंद हो रहे हैं। हमने उन्हें समझाया और बताया कि राहत शिविर लगभग एक साल तक चलेंगे।‘’
मुआवजे पर सवाल
एसडीएम जोशी की मानें तो अब तक 122 प्रभावित लोगों को मुआवजा दिया जा चुका है, उन्हें कुल 44 करोड़ की राशि का वितरण किया गया है। अतुल सती बताते हैं कि कुल 800 से अधिक प्रभावित परिवारों को नुकसान के आकलन हेतु चिह्नित किया गया था। यानी 122 परिवारों को मिला मुआवजा एक-चौथाई से भी कम है।
जिन्हें मुआवजा मिला है, उनकी कहानी अलग ही है। इस मुआवजे का वे क्या करेंगे, उन्हें कुछ नहीं पता। लक्ष्मी के परिवार में पांच सदस्य हैं। परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वे खेतिहर मजदूरी एवं लोगों के घरों में सफाई का काम करती हैं। लक्ष्मी कहती हैं, ‘’मुआवजा तो दिया गया है, लेकिन न तो सुरक्षित स्थान पर जमीन उपलब्ध कराई गई है और यहां आवास निर्माण पर भी रोक है, ऐसे में हम क्या करें? मकान के लिए मिला मुआवजा मेरे पति अन्य कामों में खर्च कर रहे हैं, अगर प्रशासन हमें निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध नहीं कराता है तो हम हमेशा के लिए बेघर हो जाएंगे। न तो मकान बनाने के लिए जमीन होगी और न ही पैसा।‘’
यही हाल सिंहधार निवासी ऋषिदेवी का है। उनकी दिक्कत इसलिए बड़ी है क्योंकि उनके परिवार में दो बेटे और उनकी बहुएं हैं। उनका मकान भी भू-धंसाव में पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। ऋषिदेवी का परिवार गौपालन कर दूध बेचने से होने वाली आय और खेती पर निर्भर था। मकान क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद से उन्हें गौ-पालन बंद करना पड़ा। खेती की जमीन संवेदनशील क्षेत्र में होने के कारण खेती भी छूट गई।
वे बताती हैं, ‘’मकान क्षतिग्रस्त होने के बाद प्रशासन द्वारा हमें प्राइमरी स्कूल में रखा गया। स्कूल खुलने के बाद स्कूल खाली करना पड़ा। इसके बाद से हम परिवार के साथ अपने परिचित के मकान में किराये पर रह रहे हैं।‘’
ऋषिदेवी के पूरे परिवार को क्षतिपूर्ति के रूप में सिर्फ 12 लाख रुपये मिले हैं। उनकी बहू शीतल इस मुआवजे पर सवाल उठाती हैं। वे कहती हैं, ‘’प्रशासन कहता है कि हमने आपको पैसा दे दिया है, अब आप जहां चाहें वहां मकान बना सकते हैं, लेकिन मुआवजे के रूप में जो पैसा मिला है उससे तो मकान बनाने के लिए जमीन भी नहीं खरीदी जा सकती है, मकान बनाना तो दूर की बात है।‘’
शीतल एक और बात बताती हैं कि जोशीमठ के सभी निवासियों को मुआवजा समान दर से नहीं दिया जा रहा है। उन्हें एक कमरे और रसोई के मकान के लिए साढ़े तीन लाख रुपये ही मिले हैं। इतनी रकम में जमीन खरीदकर मकान बनाना संभव नहीं है।
शीतल मांग करती हैं, ‘’हमें सुरक्षित स्थान पर मकान बनाने के लिए जमीन उपलब्ध कराई जाए। सरकार कम से कम ये तो बताए कि जोशीमठ में या आसपास कौन सी जगह मकान बनाने के लिए सुरक्षित है।‘’
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मुआवजा नहीं चाहते, सीधे बना-बनाया मकान चाहते हैं। बुद्धिलाल कहते हैं, ‘’हमें क्षतिपूर्ति का मुआवजा नहीं चाहिए, मकान के साथ-साथ हमें अपनी जमीन भी तो छोड़नी पड़ रही है, उसका क्या? मुझे प्रशासन शहर में या शहर के आसपास ही सुरक्षित स्थान पर मकान बनाकर दे।”
स्थानीय निवासी मनिंदर सिंह पूछते हैं, ‘’जिन लोगों को मुआवजा मिला भी है, वे भी आखिर क्या कर रहे हैं? पैसा लेकर अपने टूटे-फूटे घरों में ही रह रहे हैं। मकान के लिए मिला मुआवजा फिजूलखर्ची में जा रहा है। शहर में आवासीय एवं भारी निर्माण कार्य पर रोक है। जब प्रशासन द्वारा लोगों को स्थायी आवास प्रदान करने के लिए सुरक्षित भूमि उपलब्ध ही नहीं कराई गई है ऐसे में मुआवजे का होगा क्या? इस तरह तो लोग वहीं के वहीं रह जाएंगे और पैसे भी खर्च हो जाएंगे।‘’
कुमकुम जोशी मुआवजे के बारे में पूछने पर बताती हैं, ‘’हम लोग मुआवजा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार दे रहे हैं जो पूरे देश में सर्वाधिक है। विभाग द्वारा निर्धारित मानक मूल्य इस समय 31000 रुपये प्रति वर्गमीटर है। प्रत्येक भवन की एक डेप्रसिएशन (मूल्यह्रास) वैल्यू होती है, मुआवजे का मूल्यांकन लोक निर्माण विभाग की तकनीकी टीम कर रही है, जिसके निर्धारित नियम हैं जिनमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। कुछ लोगों के मकान राजीव आवास योजना एवं प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत सरकारी खर्चे पर बने हैं। इन परिवारों को मुआवजा राशि दी जानी है या नहीं, इस पर शासन को पत्र लिखकर भेजा गया है।‘’
पुनर्वास के इंतजार में
जोशीमठ के प्रभावित लोग शहर के पास ही सुरक्षित स्थानों पर बसना चाहते हैं क्योंकि ये लोग आजीविका के लिए पर्यटन से होने वाली आय और खेती पर निर्भर हैं। वे चाहते हैं कि पुनर्वास की प्रक्रिया में उनकी जीवनयापन संबंधी जरूरतों का ध्यान रखा जाए और रोजगार व आजीविका के लिहाज से उपयुक्त स्थानों को ही पुनर्वास के लिए चुना जाए। लोगों की तरफ से फल संरक्षण केंद्र के पास वन विभाग की भूमि, गोटीफार्म और बड़ागांव नामक स्थानों के विकल्प दिए गए हैं।
विडम्बना यह है कि जोशीमठ में स्थायी समाधान (पुनर्वास एवं विस्थापन) को लेकर उपजिलाधिकारी को शासन द्वारा अभी तक कोई निर्देश प्राप्त ही नहीं हुआ है। बद्रीनाथ के विधायक राजेन्द्र भण्डारी बताते हैं, ‘’स्थायी पुनर्वास और विस्थापन को लेकर कोई भी मामला अभी सुलझ नहीं पाया है। सरकार ने इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की है। सरकार इस मामले में कोई दिलचस्पी भी नहीं ले रही है। क्या होना है, कैसे होना है अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं है।‘’
अतुल सती भी विधायक की बात की पुष्टि करते हैं। वे बताते हैं, ‘’हमने सरकार से मांग की थी कि जोशीमठ के स्थायीकरण, विस्थापन एवं पुनर्वास को लेकर सरकार एक नीति तैयार करे, जिसमें जोशीमठ की विशेष भौगोलिक स्थिति और यहां की व्यावसायिक स्थिति का भी ध्यान रखा जाए। नीति को तैयार करने के दौरान जोशीमठ के निवासियों के सुझाव भी लिए जाएं। अभी तक एक स्थायी पुनर्वास नीति को लेकर सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गई है।”
“सामाजिक प्रभाव सर्वेक्षण (सोशल इम्पैक्ट सर्वे) कराए जाने की कोई सूचना नहीं है। सर्वेक्षण के बिना एक न्यायोचित पुनर्वास नीति का निर्माण संभव ही नहीं है। शहर में एक विस्थापन-पुनर्वास कार्यालय खोला जाना था, जिसके लिए बमुश्किल एक कर्मचारी देहरादून से रवाना हुआ था, जो आज की तारीख तक जोशीमठ नहीं पहुंच सका है…‘’
अतुल सती
इस बारे में चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने फॉलो अप स्टोरीज से बातचीत में बताया, ‘’22 फरवरी 2023 को पुनर्वास एवं विस्थापन को लेकर एक शासनादेश जारी होने के साथ ही पुनर्वास नीति तैयार हो गई थी। प्रशासनिक अधिकारी इस मामले में जोशीमठ के निवासियों से लगातार वार्ता कर रहे हैं। लोगों से सुरक्षित स्थानों के विकल्प मांगे जा रहे हैं। प्रशासन की तरफ से भी कुछ स्थानों के विकल्प सुझाए गए हैं। पुनर्वास हेतु चिह्नित स्थानों का जियोलॉजिकल सर्वे कराया गया है। हम पुनर्वास की प्रक्रिया को जोशीमठ के लोगों की इच्छा के अनुसार ही आगे बढ़ाएंगे। प्रभावित लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए ही पुनर्वास प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी। जोशीमठ में विस्थापन-पुनर्वास कार्यालय खोले जाने की मांग हमने शासन को भेज दी है, लेकिन अभी तक अधिकारियों की नियुक्ति नहीं हो सकी है।‘’
एसडीएम कुमकुम जोशी ने इस बात की पुष्टि की कि स्थायी पुनर्वास को लेकर उन्हें कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है। सचिव, आपदा प्रबंधन, रंजीत सिन्हा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार शासन की तरफ़ से पुनर्वास हेतु गौचर, ढाक एवं पीपलकोटी के विकल्प सुझाए गए हैं।
शासनादेश और पुनर्वास अधिकारियों की नियुक्ति के इंतजार में अपने टूटे-फूटे घरों में बैठे लोगों की समस्या एक तरफ, जोशीमठ के साधु-संन्यासियों को तो कोई पूछने वाला ही नहीं है। श्री देशिक विहार त्रिदण्डी मठ के संतोष बाबा 20 साल से यहां आश्रम में रहकर आश्रम की देखभाल कर रहे थे। वे बताते हें कि प्रशासन ने क्षतिग्रस्त हो रहे आश्रम का सर्वे कराने में काफी देर कर दी, आश्रम को रेड क्रॉस नहीं किया गया। बीते दिनों हुई तेज बरसात में यह आश्रम ढह गया।
इसके बाद उन्हें वेद-वेदांग महाविद्यालय में रखा गया जहां उनके कमरे में बिजली नहीं थी। बाद में उन्हें कमरा खाली करने को कह दिया गया। बाबा बताते हैं, ‘’तब से मैं खुद के द्वारा बनाए गए टीनशेड में रह रहा हूं।’’
संतोष बाबा कहते हैं, ‘’मैं गाय का पालन करता था, खेती करता था, लेकिन धंसाव के बाद मुझे अपनी गाय को बाहर भेजना पड़ा है। खेती भी चौपट हो गई है। प्रशासन कह रहा है कि किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाइए। कहां चला जाऊं? किसी दूसरे मठ या घर में मैं कितने दिन रह सकता हूं?’’
खुदाई जारी है, रिपोर्ट नदारद
शीतल हमसे बातचीत में एक अहम सवाल उठाती हैं, ‘’भू-धंसाव लगातार बढ़ रहा है, सरकार ने अभी तक आठ वैज्ञानिक संस्थानों की अंतिम रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की है। ऐसे में हम क्या करें और कहां चले जाएं?’’
इस बारे में अतुल सती विस्तार से बताते हैं, ‘’जोशीमठ के स्थायीकरण एवं नव-निर्माण कार्यों के लिए मॉनिटरिंग कमेटी के गठन की कोई सूचना नहीं है। जोशीमठ आपदा का अध्ययन करने वाली देश की शीर्ष आठ वैज्ञानिक संस्थाओं के सर्वे एवं अध्ययन की रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। आखिर ऐसा क्या है उस रिपोर्ट में, सरकार रिपोर्ट क्यों छुपा रही है? इस शहर की 22000 की आबादी को अंधेरे में क्यों रखा जा रहा है?’’
रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किए जाने के मामले में विधायक राजेन्द्र भण्डारी कहते हैं, ‘’सरकार द्वारा लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है। जोशीमठ के नीचे हेलंग बाईपास का निर्माण कार्य अब भी जारी है, जिस कारण जोशीमठ और भी संवेदनशील हो गया है। हमने मांग की थी कि इस बाईपास का निर्माण अभी न किया जाए लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं है।‘’
विधायक बताते हैं कि एनटीपीसी की जलविद्युत परियोजना का कार्य अब भी चल रहा है। याद रखने वाली बात है कि एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाढ़ जलविद्युत परियोजना के कारण होने वाले संभावित खतरों को ध्यान में रखते हुए 2004 में जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया गया था। इस परियोजना से शहर को होने वाले नुकसान के खिलाफ समिति ने 2003 से ही आवाज उठानी शुरू कर दी थी, जब इस परियोजना का सर्वे कराया जा रहा था।
अतुल बताते हैं, ‘’हमने विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना के कारण चाईं गांव को अपनी आंखों के सामने खत्म होते हुए देखा है। चाईं के अलावा हमने लामबगड़ एवं पाण्डुकेश्वर को भी देखा है। जब भी कोई बड़ी परियोजना आती है तब पहाड़ों के बीच सुरंग बनाई जाती है, विस्फोट किए जाते हैं, पानी को रोककर बांध बनाए जाते हैं, जिसका खमियाजा उन पहाड़ों और सुरंग के ऊपर रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ता है। हम जान रहे थे कि यदि तपोवन-विष्णुगाढ़ जल विद्युत परियोजना का कार्य शुरू होता है तब तपोवन से लेकर हेलंग तक सुरंग का निर्माण किया जाएगा जिसका खमियाजा जोशीमठ के निवासियों को भुगतना पड़ेगा। समय रहते हमारी एक नहीं सुनी गई।‘’
इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण से उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार 27 दिसंबर 2022 से 8 जनवरी 2023 के बीच जोशीमठ 5.4 सेंटीमीटर नीचे धंस गया था। देहरादून के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग ने जुलाई 2020 से मार्च 2022 के बीच एकत्रित उपग्रह चित्रों का प्रयोग कर के बताया है कि जोशीमठ और आसपास के क्षेत्र हर साल 2.5 इंच या 6.5 सेमी की गति से धंस रहे हैं।
तपोवन-विष्णुगाढ़ जलविद्युत परियोजना के अंतर्गत तपोवन से लेकर हेलंग तक 12 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। तपोवन की तरफ से टनल का निर्माण ड्रिल मशीन एवं विस्फोट के द्वारा किया जा रहा है तथा हेलंग की तरफ से सुरंग का निर्माण टनल बोरिंग मशीन से किया जा रहा है। 2009 में यह टनल बोरिंग मशीन फंस गई थी जिसको आगे बढ़ाने के लिए लगातार धमाके किए जाते रहे हैं। एनटीपीसी द्वारा सुरंग का निर्माण एवं धमाके किए जाना जोशीमठ में भू-धंसाव का एक बड़ा कारण बताया जा रहा है, हालांकि एनटीपीसी जोशीमठ के नीचे सुरंग होने एवं धमाके किए जाने की बात से इनकार कर रही है।
जनवरी में अचानक भू-धंसाव के मामले बढ़ने के बाद जिला प्रशासन द्वारा तपोवन-विष्णुगाढ़ जलविद्युत परियोजना एवं हेलंग बाईपास निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई थी। दोनों निर्माण कार्य फिर से शुरू कर दिए गए हैं।
साठ साल की नींद
जोशीमठ के गांधीनगर वार्ड के 10-12 घरों में लोगों ने पहली बार नवंबर 2021 में दरारें एवं सड़कों में धंसाव को नोटिस किया था। घरों में दरारें पड़ने के बाद लोगों ने 17 नवंबर 2021 को पहला धरना प्रदर्शन किया। लोगों ने सरकार से सर्वेक्षण कराने की मांग की ताकि पता लगाया जा सके कि शहर का धंसाव क्यों हो रहा है। सरकार ने नहीं सुनी। अतुल सती बताते हैं कि इसके बाद ही संघर्ष समिति ने स्वतंत्र वैज्ञानिकों की टीम से जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव का पता लगाने के लिए सर्वे करने का अनुरोध किया।
जून 2022 में स्वतंत्र वैज्ञानिकों की एक सर्वे रिपोर्ट सामने आने के बाद इसे सार्वजनिक किया गया। यह रिपोर्ट भू-विज्ञानी एसपी सती, बीएचयू की प्रोफेसर शुभ्रा शर्मा और वैज्ञानिक नवीन जुयाल द्वारा तैयार की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ के धंसाव के प्राथमिक कारण निम्न हैं- मिश्रा कमेटी की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए किया गया अनियंत्रित एवं अनियोजित निर्माण कार्य, शहर की जल-निकासी व्यवस्था का बेहद खराब प्रबंधन, जोशीमठ के नीचे बह रही अलखनंदा द्वारा लगातार किया जा रहा कटाव एवं बड़े पैमानों पर बनाया गया सड़कों का जाल, आदि। इन सभी कारणों से पहाड़ी के ढलान काफी अस्थिर हो गए हैं जिस कारण जोशीमठ धंस रहा है।
जोशीमठ में 1960 के दशक में भी भूस्खलन की घटनाएं हुईं थीं। उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने जोशीमठ में भूस्खलन एवं धंसाव की वजह को जानने के लिए तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में 1964 में 18 सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी द्वारा 1976 में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट को मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट कहा जाता है। रिपोर्ट ने चेताया था कि क्षेत्र में प्रकृति एवं विकास के बीच गहरा असंतुलन है। रिपोर्ट में जोशीमठ को भूगर्भीय तौर पर अस्थिर बताया गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्र में निर्माण कार्यों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए, यदि निर्माण कार्य किए भी जाएं तो काफी अध्ययन के बाद किए जाएं, क्षेत्र में बड़े निर्माण कार्यों से पूरी तरह बचा जाना चाहिएं।
मिश्रा समिति ने भारी निर्माण कार्यों पर रोक लगाने, ढलानों पर कृषि कार्य को फौरन बंद करने, पेड़ न काटने, बारिश के पानी का रिसाव रोकने के लिए पक्की नालियां बनाने और नदी के तटों को छीजने से रोकने के लिए सीमेंट के ब्लॉक खड़े करने जैसे कई सुझाव दिए थे। क्षेत्र में वृक्षारोपण कराए जाने का सुझाव भी था। उस समय मिश्रा कमेटी के सुझावों पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया।
2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बांधों एवं बाढ़ के बीच संबंध का पता लगाने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष आइआइटी बॉम्बे और स्टीवेन्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यू जर्सी से पढ़ाई कर चुके पर्यावरणविद डॉ. रवि चोपड़ा थे। अपने शोध के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट सौंपते हुए बांधों के कारण बढ़ रहे बाढ़ के खतरों एवं आपदाओं से आगाह किया था। रिपोर्ट में सुझाया गया था कि जिन घाटियों का तल 2000 मीटर से ज्यादा गहरा है वहां बांध नहीं बनने चाहिए। उन्होंने 23 जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द किए जाने की मांग की थी। उनमें तपोवन-विष्णुगाढ़ परियोजना भी शामिल थी। निर्माण कंपनियों और सरकार ने तब भी परियोजनाओं को रद्द करने से मना कर दिया था।
1960 और 2013 में आई रिपोर्टों की उपेक्षा करने के बाद अंतत: 2022 में स्वतंत्र वैज्ञानिकों की रिपोर्ट बाहर आने के बाद उत्तराखंड सरकार ने जुलाई 2022 में जोशीमठ का सर्वे कराने के लिए वैज्ञानिकों की एक समिति गठित की। अगस्त 2022 में इन वैज्ञानिकों ने जोशीमठ का सर्वे किया। उस समय तक शहर के 200-250 मकानों में दरार पड़ चुकी थी।
सितंबर 2022 में सरकार द्वारा कराए गए सर्वे की रिपोर्ट सामने आई। रिपोर्ट में जोशीमठ में जल-निकासी का उचित प्रबंध न होना, बेहद खराब सीवेज सिस्टम एवं मानकविहीन अनियोजित निजी निर्माण कार्य को धंसाव का मुख्य कारण बताया गया है। दोनों ही कमेटी की रिपोर्ट में क्षेत्र में भारी निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
दिसंबर 2022 तक शहर के 500 घरों में दरार आ चुकी थी। 2-3 जनवरी 2023 की रात को बड़े पैमाने पर पानी के रिसाव की घटना हुई। रिसाव की घटना के साथ जोशीमठ में बड़ा धंसाव हुआ। लोगों ने खिसकती जमीन को महसूस किया। जेपी कंपनी की आवासीय कॉलोनी के पास पानी फूटकर बहने लगा। उस रात जोशीमठ के सिंहधार क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जमीन नीचे खिसक गई। ठंड के समय में लोग अपने घरों को छोड़कर घरों के बाहर सोने को मजबूर हो गए।
अतुल सती बताते हैं, ‘’जब सरकार द्वारा जोशीमठ के निवासियों की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया गया तब नगरवासियों ने 5 जनवरी को 8 घंटे का चक्का जाम किया। तब कहीं जाकर प्रशासन हमारी बात सुनने को आया। प्रशासन ने हमारे साथ लिखित समझौता किया एवं हमारी मांगों को मांगने का आश्वासन दिया। 6 जनवरी से लोगों को अस्थाई रूप से सुरक्षित स्थानों, जैसे होटल एवं धर्मशालाओं में रखा जाने लगा।‘’
अपनी 11 सूत्रीय मांगों को लेकर जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने 6 जनवरी से अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया था। 8 अप्रैल को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समिति की मांगों पर सहमति व्यक्त करते हुए धरना वापस लेने की अपील की। 20 अप्रैल को मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने अपने धरने को स्थगित कर दिया था।
साठ साल की नींद के बाद सरकार आंदोलन की आवाज सुनकर जागी थी लेकिन धरना खत्म होने के बाद ऐसा लगता है फिर से सो गई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि धरना खत्म करने के लिए मुख्यमंत्री का आश्वासन सिर्फ चारधाम यात्रा शुरू करवाने के चक्कर में आया था, इसलिए सरकार के जगाने के लिए दोबारा धरना-आंदोलन शुरू करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है।
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