चुराचांदपुर से लौटने के बाद शिराज़ हरारत दूर करने को बैठा था। कहीं दूर बाहर से ‘पट-पट, ठक-ठक’ की आवाज मणिपुर हाउस के हमारे कमरे तक पहुंच रही थी। वह गोलियों की आवाज थी। बीच-बीच में कुत्ते भी भौंकते। इन आवाजों से गाफिल शिराज़ ने ओल्ड मोंक का पांचवां सिक्सटी एमएल लेते हुए मुझसे पूछा, “ये जो पटाखे बज रहे हैं, इनके पास आ कहां से रहे हैं? ये धाकड़ स्टोरी बनेगी।”
ऐसा नहीं था कि शिराज़ को कुछ ऐसा सवाल सूझा जो मेरी जिज्ञासा नहीं थी, पर अगर दिन भर रिपोर्टर का सारथी बने घूम रहे शख्स के दिमाग में भी यही सवाल कौंधा था, तो इसका मतलब साफ था कि ये सवाल औरों के मन में भी होगा- आखिर मणिपुर के जनजातीय समूहों के पास हथियार कहां से आ रहे हैं?
पिछले अंक
आग लगाने की तैयारी तो पहले से थी, 3 मई की रैली होती या नहीं…
पचहत्तर दिन बाद लीक हुआ वीडियो घटना के वक्त दबा कैसे रह गया?
इत्तेफाक से बीते बहत्तर घंटों में थौबल जिले के खंगाबोक इलाके से हमें सूचना मिली थी कि भीड़ ने इंडियन रिजर्व फोर्स (आइआरबी) की तीसरी कैंप पर हमला कर दिया है। उनकी नीयत कैंप से हथियार और गोला-बारूद लूटने की थी। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने हवाई फायरिंग की, हवाई फायरिंग में एक 27 वर्षीय लड़के रोनाल्डो की मौत हो गई। एक आइआरबी का जवान भी घायल हुआ।
आइआरबी के एक शीर्ष अधिकारी ने हमें बताया कि एक सशस्त्र भीड़ ने कैंप पर गोलियां चलाईं। सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई की। भीड़ हथियार लूटने में जरूर विफल हो गई लेकिन हमलावरों के पास आधुनिक हथियार थे।
“भीड़ के हमले से स्पष्ट है कि पहले लूटे गए हथियार कम पड़ चुके हैं। हिंसा जारी रखने के लिए और हथियार चाहिए,” उन्होंने बताया। “म्यांमार से भी हथियार संभवत: मणिपुर में आ रहे हैं।”
आइआरबी के जवानों के अनुसार, जिस भीड़ ने कैंप पर हमला किया था वह कथित तौर पर मैतेयी लोगों की भीड़ थी।
हथियारों की लूट और उसकी जनजातीय हिंसा में भूमिका को समझने के लिए हमें थोड़ा-सा पीछे चलना होगा- थौबल की घटना से तकरीबन एक महीना पीछे।
हथियारों की पहेली
सोशल मीडिया पर 8-9 जून के आसपास एक तस्वीर वायरल हुई- एक पोस्टर, जिसकी बाईं और दाईं तरफ एके-47 की तस्वीर बनी थी और बीच में बड़े अक्षरों में लिखा था- “प्लीज ड्रॉप योर स्नैच्ड वेपंस हियर। फील फ्री टु डू सो (कृपया लूटे गए हथियार यहां डाल दें। निश्चिंत होकर आप ऐसा करें)। यह पोस्टर अपने आप में हैरतअंगेज था। भारत में शायद ही ऐसे पोस्टर कभी लगे होंगे जहां लूटे गए हथियार जमा करने के लिए ‘ड्रॉप-बॉक्स’ लगे होंगे।
मालूम हुआ कि यह ‘ड्रॉप बॉक्स’ इंफाल ईस्ट के खुरई क्षेत्र से विधायक लीशांगथेम सुसिंद्रो मैतेयी ने लगवाया था। दरअसल, 3 मई की हिंसा के बाद मणिपुर के कई थानों से तकरीबन पांच हजार बंदूकें लूटी गई थीं। विधायक की अपील इसी संदर्भ में थी कि लूटे गए हथियार वापस कर दिए जाएं। विधायक की अपील का असर इतना ही हुआ कि उस ड्रॉप बॉक्स में एक एके-47, एक पिस्टल और एक राइफल जमा हुई, हालांकि पुलिस सूत्रों के मुताबिक गृहमंत्री अमित शाह की अपील के बाद पुलिस ने कई हथियार और गोले बारूद जब्त किए थे।
इंफाल ईस्ट में राउंड कर रहे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, “अमूमन होता यह है कि हथियार लूटे जाने के बाद सरकार या पुलिस प्रशासन अपील नहीं करता बल्कि अभियान चलाकर जब्ती करता है। चूंकि यह एक अप्रत्याशित घटना थी, तो पुलिस ने लोगों से अपील की कि वे हथियार लौटा दें और यह भी प्रलोभन दिया कि स्वेच्छा से हथियार लौटा देने वालों पर पुलिस कार्रवाई नहीं करेगी।”
यह नैरेटिव इतना सरल नहीं है जितना मालूम पड़ता है।
कुकी समुदाय का आरोप है कि अभी तक जितने भी हथियारों की लूट हुई है, उन सारी वारदातों में मैतेयी समुदाय शामिल रहा है। चुराचांदपुर के लालब्रुस कहते हैं, “यही वजह है कि एक मैतेयी विधायक ने एक नरम अपील की कि लूटे हुए हथियार वापस कर दें। इसीलिए मैतेयी पुलिस (कुकी मणिपुर पुलिस को मैतेयी पुलिस कहकर संबोधित करने लगे हैं) भी कार्रवाई नहीं करती।” लालब्रुस आइटीएलएफ के सोशल मीडिया कार्यकर्ता हैं।
चुराचांदपुर में लालब्रुस की बात से सबकी सहमति जान पड़ती है, हालांकि जब मैंने उनसे पूछा कि कुकी समुदाय के पास हथियार कहां से आ रहे हैं, आखिर लड़ तो वे भी रहे ही हैं? इसके जवाब में कुकी कहते हैं कि वे अपने गांव को ‘डिफेंड’ कर रहे हैं। वे कहीं भी हिंसा की ‘शुरुआत’ नहीं कर रहे। मैं फिर उनसे जोर देकर पूछता– “डिफेंड करने की बात तो ठीक है लेकिन डिफेंड करने के लिए भी हथियार कहां से आ रहे हैं?” इसका जवाब यह मिलता कि वे हथियार खरीद रहे हैं।
अब यहां से कई और सवाल उपज पड़ते। मसलन, हथियार खरीद रहे हैं तो कहां से? कितनी कीमत पड़ रही है अलग-अलग तरह के हथियारों की? पैसे कहां से आ रहे हैं? इन सवालों के जवाब गोल-मोल से मिलते। वे एक ही बात दुहराते कि कुकी सिर्फ जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं, वे किसी मैतेयी गांव पर हमला नहीं कर रहे।
बहरहाल, लूटे गए हथियारों का सवाल अभी थमा नहीं था कि 5 अगस्त को, यानी मणिपुर हिंसा के तीन महीने दो दिन बाद, विष्णुपुर जिले के नारायणसेना 2-आइआरबी कैंप से 1 एके-47, 4 एके राइफल की मैगजीन, 3 घातक राइफल और 9 घातक राइफल मैगजीन, 25 5.56एमएम इनसास राइफल, 16 9एमएम पिस्टल, 195 7.62एमएम एसएलआर और 369 मैगजीन, 21 कार्बाइन और 68 मैगजीन, 124 हैंड ग्रेनेड, 124 डेटोनेटर, 25 बुलेट प्रूफ जैकेट, 100 बम और हजारों की संख्या में अन्य असलहा बारूद लूट लिए गए। यह अब तक की सबसे बड़ी लूट थी। पुलिस को दिए विवरण में आइआरबी ने बताया कि उपद्रवियों पर 327 राउंड फायरिंग की गई और 20 आंसू गैस के गोले छोड़े गए।
विवरण के मद्देनजर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह हमला कितना बड़ा रहा होगा। इस घटना के बाद भी नैरेटिव यही चला कि जिस आइआरबी कैंप में लूट हुई उसकी जवाबदेही प्रेमानंदा सिंह (मैतेयी) पर थी और उन्होंने उपद्रवी भीड़ (मैतेयी) की लूट का मार्ग प्रशस्त किया। रोचक यह है कि कुकी के आरोपों को मैतेयी खारिज नहीं किया करते। वे कुकी पर लूट का आरोप भी नहीं लगाते। दूसरी तरफ, कुकी खुद यह नहीं बताते कि वे हथियार कहां से लाते हैं।
भीड़ द्वारा हथियारों की लूट का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि मणिपुर पुलिस ने केंद्रीय अर्धसैन्य बल असम राइफल्स के जवानों के खिलाफ फौगाकचाओ इखाई पुलिस थाने में एफआइआर दर्ज कर ली। असम राइफल्स पर आरोप है कि उन्होंने विष्णुपुर जिले में उपद्रवियों को गिरफ्तार करने में अवरोध पैदा किया। पुलिस ने असम राइफल्स के खिलाफ मुकदमा 5 अगस्त को दर्ज किया, लेकिन उन्हें इसकी सूचना 8 अगस्त को दी गई। दिलचस्प है कि असम राइफल्स एक केंद्रीय सैन्यबल है जिसकी जवाबदेही गृह मंत्रालय की है।
सुरक्षाबल बनाम स्थानीय पुलिस
पुलिस के अनुसार बिष्णुपुर के फोलजंग रोड के किनारे क्वाक्टा वार्ड 8 में स्थित कुतुब वाली मस्जिद पहुंचने पर असम राइफल्स ने मणिपुर पुलिस की टीम को रोक दिया। असम राइफल्स ने अपना कैस्पर वाहन क्वाक्टा फोलजांग रोड के बीच में खड़ा कर दिया जिससे कि पुलिस कथित उग्रवादियों तक न पहुंच सके।
पुलिस और राइफल्स के जवानों के बीच बहस का एक वीडियो वायरल हुआ था सोशल मीडिया पर। वीडियो में मणिपुर पुलिस के कमांडो असम राइफल्स के जवानों पर उनके ऑपरेशन में बाधा डालने का आरोप लगाते दिखते हैं।
यह पहला वीडियो नहीं था जिसमें सुरक्षाबल आपस में उलझते हुए दिख रहे थे। पहले भी कई ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर तैरते रहे थे जिसमें पुलिस और सेना के जवानों के बीच तनातनी देखी गई थी। कई वीडियो ऐसे भी रहे जिसमें मैतेयी और कुकी सुरक्षाबलों को कहीं रोक के मिन्नतें कर रहे हैं। जैसे, एक वीडियो है जहां मैतेयी महिलाएं माइरा पाइबिस भारतीय सेना के जवानों को रोक रही हैं।
मैतेयी और कुकी महिलाओं द्वारा सैन्यबलों के रोकने में फर्क है। मैतेयी उग्रवादियों को पकड़े जाने से बचाने के लिए मैतेयी औरतें सेना का रास्ता रोक रही हैं। वहीं कुकी औरतें असम राइफल्स को पहाड़ों पर रोकना चाहती हैं। मणिपुर पुलिस और राइफल्स के बीच विवाद बढ़ने के बाद कुछ कुकी क्षेत्रों से असम राइफल्स की टुकड़ियों को सरकार ने वापस बुला लिया है। कुकी महिलाएं नहीं चाहती हैं कि वे जाएं।
एक महिला वीडियो में सुरक्षाबलों को रोकने के उद्देश्य से अपने कपड़े उतारने तक का प्रयास करती दिख रही है। एक अन्य वीडियो है जहां कुकी महिलाएं असम राइफल्स के हटाये जाने पर उनके पैरों पर गिरी हुई हैं।
मणिपुर पुलिस के भीतर कुकी और मैतेयी का विभाजन बहुत स्पष्ट है। मैतेयी समुदाय से आने वाला पुलिसकर्मी मैतेयी है, कुकी समुदाय वाला कुकी है। उन दोनों की ही पहचान मणिपुर पुलिस की नहीं बची है।
मोइरांग में रांची से पोस्टेड बटालियन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे डिनर पर बताया कि सेना चाहे तो दो दिन में माहौल ठीक कर दे। “हम लोगों को फ्री हैंड दे दिया जाए तो दो दिन लगेगा शांत करने में। हमारे पास ऑर्डर ही नहीं है कुछ करने का,” कहते हुए उन्होंने अपने बटालियन के जवानों की ओर इशारा करते हुए कहा, “यहां हम लोग लाइट ऑफ करके बैठे हैं ताकि हमारा नुकसान न हो कहीं से भी फायरिंग होने पर। दोनों तरफ से फायरिंग होती है और बीच में हम खुद को बचा रहे होते हैं। इससे जवानों का मोराल गिरता है। अगर सरकार को हमारी जरूरत नहीं है तो वे हमें वापस ही भेज दे”, कहते हुए उनकी आवाज में एक खनक सी आ गई।
विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ संसद में लाए अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए राहुल गांधी ने भी यही बात कही थी, कि सेना दो दिन में माहौल नियंत्रित कर सकती है जबकि असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा का मत है कि सेना की जगह राजनीतिक सुलह की जरूरत है। सरमा की बात में दम है। लगभग यही तर्क मैंने डिनर के दौरान उस सैन्य अधिकारी को दिया था। उन्होंने कहा, “ये बिलकुल सच है कि मणिपुर में पॉलिटिकल सॉल्यूशन की जरूरत है, पर जो हालात बने हुए हैं अभी तक उसमें तो सरकार कुछ सॉल्यूशन निकालती दिखती नहीं। कम से कम सैन्य बलों के सहारे ही सॉल्यूशन निकाल ले।”
चिंतनीय है कि तीन महीने बीत जाने के बावजूद मणिपुर में शांति बहाल नहीं हो सकी है। राजनीतिक बतोलेबाजी के बीच एक अहम सवाल ये भी है कि क्या सरकार अपनी एजेंसियों या इंटरलॉक्युटर के जरिये भी किसी तरह का बैक-चैनल टॉक नहीं कर रही? या कर रही है तो उसका असर क्यों नहीं दिख रहा? फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं है, बल्कि कुछ एक मुलाकातें हैं जिन्हें डॉक्युमेंट करना जरूरी है ताकि भविष्य में उन मुलाकातों का आकलन किया जा सके।
मुलाकातें और बातें
कुकी संगठन इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आइटीएलएफ) का प्रतिनिधि मंडल 8-9 अगस्त को इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक एके मिश्रा और गृहमंत्री अमित शाह से मिला था। आइटीएलएफ के सेक्रेटरी मुआन तोम्बिंग ने मांग की थी कि कुकी क्षेत्रों का प्रशासन मणिपुर से पूरी तरह अलग कर दिया जाए। हिंसा में मारे गए कुकी-जो समुदाय के मृतकों, जिनके शव इंफाल में रखे गए हैं, उन सभी शवों को चुराचांदपुर लाया जाए।
कुकी-जो समुदाय के मृतकों को सामूहिक दफनाने की योजना थी चुराचांदपुर में जिसका मैतेयी समुदाय ने विरोध किया था। इसके बाद गृह मंत्रालय ने कुकी समुदाय से आग्रह किया था कि वे शवों को दफनाने का कार्यक्रम कुछ दिन आगे बढ़ा दें। तोम्बिंग ने मांग की कि कुकी-जो समुदाय के लोगों की सुरक्षा के लिहाज से मैतेयी कमांडो को पहाड़ी जिलों में तैनात नहीं करना चाहिए। आखिरी मांग के तौर पर उन्होंने कहा कि इंफाल जेल में बंद कुकी-जो समुदाय के कैदियों को अन्य राज्यों में भेजा जाए।
मणिपुर के 40 विधायकों (ज्यादातर मैतेयी) ने भी नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। उनकी छह मांगें हैं:
- पहला, उपद्रवियों से हथियार वापस लिए जाएं। उनका कहना है कि सुरक्षा बलों की साधारण तैनाती के बजाय हिंसा को रोकने के लिए उपद्रवियों से हथियार वापसी बेहद जरूरी है। कई बार ऐसा देखा गया है कि जब किसान खेतों में काम करने बाहर गए हैं तो पहाड़ों से उन पर गोलियां चला दी गई हैं। इन घटनाओं में अत्याधुनिक हथियार स्नाइपर राइफल और रॉकेट ग्रेनेड इस्तेमाल हुए हैं। उनका कहना है कि असम राइफल्स को पहाड़ों को हटाकर राज्य पुलिस को तैनात किया जाना चाहिए।
- दूसरा, सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन की वापसी हो। उनका मानना है कि राज्य में हथियारों और गोला-बारूद समेत बड़े पैमाने पर विदेशी घुसपैठ हुई है।
- तीसरा, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) को लागू किया जाए ताकि मणिपुर के मूल निवासियों का ठीक संख्या पता लग सके।
- चौथा, कुकी समुदाय द्वारा अलग प्रशासन की मांग न मानी जाए।
- पांचवां, ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल की शक्तियां बढ़ाई जाएं।
- छठवीं मांग यह है कि इन पांचों मांगों की पूर्ति के बाद शांति वार्ता की पहल की जाए।
मैतेयी विधायकों की ये मांगें कुकी समुदायों के ठीक विपरीत है।
चुनौती अब यह है कि सरकार अगर मैतेयी मांगों की पूर्ति करेगी तो कुकी सरकार से बिदक जाएंगे और अगर कुकी मांगों की पूर्ति की जाएगी तो मैतेयी बिदक जाएंगे। यह स्पष्ट है कि मणिपुर की राज्य सरकार अपने नागरिकों का भरोसा खो चुकी है। मैतेयी और कुकी दोनों ही समुदाय मुख्यमंत्री बिरेन सिंह से नाखुश हैं। दोनों मानते हैं कि बिरेन सिंह प्रशासन हिंसा को काबू कर पाने में नाकाम रहा है। कुकी तो यहां तक मानते हैं कि मणिपुर को सुलगाने में बिरेन सिंह की सक्रिय भूमिका रही है।
फिलहाल, मैतेयी सशस्त्र समूह कॉरकॉम ने स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले उसके बहिष्कार का आह्वान कर दिया है जो दिखाता है कि शांति वार्ताओं की दिखावटी पहलों के बीच हालात गंभीर होते चले जा रहे हैं। चर्चाओं में है कि शायद संगठित हिंसा आने वाले दिनों रुक जाए, लेकिन असल सवाल उस ज़ेहनी हिंसा और अलगाव पर है जिसे पाटने में कोई नहीं जानता कितना समय लगेगा।
मैतेयी नाखुश होते हुए भी चाहते हैं कि बिरेन सिंह मुख्यमंत्री बने रहें क्योंकि उन्हें भय है कि अगर केंद्र का सीधे तौर पर राज्य के प्रशासन में दखल होगा तो मैतेयी समुदाय को परेशानी होगी। यही कारण है कि जब बिरेन सिंह इस्तीफा देने पहुंचे तो मैतेयी भीड़ ने उनके इस्तीफे का विरोध किया था, हालांकि इस्तीफे के ड्रामे में कुछ पेंच थे जो हम आने वाली स्टोरी में बताएंगे।