चांद के पार आठ अरब डॉलर का बाजार, एक मसौदा कानून और निजी कंपनियों का इंतजार

चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के पहले और बाद में दो घटनाएं हुईं। अमेरिका यात्रा पर पिछले महीने प्रधानमंत्री ने आर्टेमिस संधि पर दस्‍तखत किए और चंद्रयान छूटने के ठीक दो दिन बाद निजी प्रक्षेपण कंपनियों को अंतरिक्ष में अपने लॉन्‍च वाहन या रॉकेट से उपग्रह छोड़ने पर जीएसटी भुगतान से मुक्‍त कर दिया गया। चंद्रयान पर जश्‍न के पीछे क्‍या अंतरिक्ष में बाजार लगाने की योजना है? आखिर 150 स्‍पेस स्‍टार्ट-अप किस चीज की बाट जोह रहे हैं? छह साल से लटके भारत के पहले राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष कानून पर एक नजर

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के ताजा अभियान चंद्रयान-3 की सफलता के संदर्भ में यह याद दिलाए जाने की जरूरत है कि भारत की अंतरिक्षीय गतिविधि की प्रकृति घोषित रूप से सार्वजनिक उद्देश्य से जुड़ी हुई है। इसरो का ध्यान तीन मुख्य क्षेत्रों पर रहता है: टेलीशिक्षा, टेली-मेडिसिन और ग्राम संसाधन केंद्र कार्यक्रम। इसके पीछे यह तर्क रहा है कि बाहरी अंतरिक्ष के साथ भारत के जुड़ाव को उसकी विकास सम्बंधी जरूरतों से जोड़ा जाना चाहिए और इसे बेरोजगारी, भूख, कुपोषण और स्वच्छता की कमी जैसी सामाजिक समस्याओं के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

“देश की विकास सम्बंधी जरूरतों” के साथ इसरो के अभियानों का जुड़ा रहना कम से कम तभी तक मुमकिन है जब तक भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम सार्वजनिक हो और उसके ऊपर सरकार का नियंत्रण हो। कुछ देशों ने हाल ही में जैसी अंतरिक्ष नीतियों और कानूनों को अपनाया है और बाहरी अंतरिक्ष में प्राकृतिक संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग के संबंध में अपनी स्थिति तय कर ली है, वह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के घोषित उद्देश्‍यों के लिहाज से बहुत चिंताजनक है।

अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका के दबाव में भारत ने भी छह साल पहले एक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून बनाने की कोशिश शुरू की थी। ड्राफ्ट स्पेस एक्टिविटी बिल, 2017 के नाम से यह विधेयक आज तक संसद में पेश नहीं हो सका है, लेकिन सुरक्षा पर कैबिनेट की समिति ने बीते अप्रैल में भारतीय अंतरिक्ष नीति को मंजूरी दी थी। माना जा रहा है नीति को मंजूरी के बाद अब अगला नंबर कानून का है।

अंतरिक्ष में निजी कंपनियां

चंद्रयान पर सार्वजनिक विमर्श के संदर्भ में ड्राफ्ट स्पेस एक्टिविटी बिल का अब तक कहीं खास जिक्र नहीं आया है, लेकिन यह जानने की जरूरत है कि निजी क्षेत्र की कम से कम 150 स्‍पेस एजेंसियों ने सरकार के साथ पहले ही अंतरिक्ष अन्‍वेषण के लिए पंजीकरण करवा रखा है और निजी उद्योग इस दिशा में बहुत तेजी से पूंजी जुटा रहा है।

चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के ठीक दो दिन बाद ही जीएसटी काउंसिल ने एक आश्‍चर्यजनक घोषणा करते हुए निजी प्रक्षेपण सेवा कंपनियों को अंतरिक्ष में अपने लॉन्‍च वाहन या रॉकेट से उपग्रह प्रक्षेपित करने पर जीएसटी भुगतान से मुक्‍त कर दिया था। इस घोषणा पर देश भर में मौजूद 150 से ज्‍यादा स्‍पेस स्‍टार्ट-अप कंपनियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पहले, यह जीएसटी की रियायत केवल न्‍यू स्‍पेस इंडिया लिमिटेड को हासिल थी जो कि इसरो का वाणिज्यिक अंग है। इसे चंद्रयान के प्रक्षेपण के बाद निजी कंपनियों तक विस्‍तारित किया जाना भविष्‍य में अंतरिक्षीय अभियानों की एक झलक देता है। 

तीन साल पहले भारत के स्‍पेस सेक्‍टर को निजी खिलाडि़यों के लिए औपचारिक रूप से खोला गया था। 2023 की वाली छमाही में यह सेक्‍टर 62 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटा चुका है जो कि पिछले साल की इसी अवधि में जुटाई फंडिंग से 60 प्रतिशत ज्‍यादा है। र्लोबल कंसल्‍टेंसी फर्म आर्थर डी. लिटिल के मुताबिक भारत में मौजूदा अंतरिक्ष बाजार 8 अरब डॉलर का है जो 2 प्रतिशत की वैश्विक वृद्धि दर के मुकाबले पिछले कुछ वर्षों में साल दर साल 4 प्रतिशत की दर से बढ़ा है।

आठ अरब डॉलर के इसी बाजार के साथ ड्राफ्ट स्पेस एक्टिविटी बिल, 2017 का सीधा संबंध है, जो निश्चित रूप से आने वाले दिनों में अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की बड़ी भूमिका की ओर इशारा करता है।  

भारत के मामले में हालांकि निजी क्षेत्र की भूमिका दो तथ्यों के कारण आम तौर पर न्यूनतम रही है। पहला, स्वतंत्रता के शुरुआती कुछ वर्षों में भारत के आर्थिक मॉडल ने यह सुनिश्चित किया कि निजी क्षेत्र राज्य के ‘विस्तार’ के रूप में कार्य करेगा और दूसरे, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का घोषित उद्देश्‍य विकास संबंधी जरूरतें हैं। ये दोनों ही कारण आने वाले दिनों में राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष कानून बन जाने के बाद शायद उतने कारगर नहीं रहेंगे।

अंतरिक्ष में मौजूदा नियमन

भारत की अंतरिक्ष नीति को मुख्य रूप से सैटेलाइट संचार नीति और रिमोट सेंसिंग डेटा नीति के साथ देखा जाता है। रिमोट सेंसिंग डेटा पॉलिसी (2011) भारत से रिमोट-सेंसिंग उपग्रह के संचालन या रिमोट-सेंसिंग डेटा प्राप्त करने या भारत के भीतर वितरित करने के लिए सरकार के लाइसेंस या अनुमति को आवश्यक बनाती है। दूसरी ओर, उपग्रह संचार नीति (1997 में अनुमोदित) का उद्देश्य एक संपन्न उपग्रह उद्योग का निर्माण करना है जिसका उद्देश्य निजी क्षेत्र और विदेशी निवेश को आकर्षित करना भी है।

इसके अलावा, कुछ नीतिगत उपायों और कानूनों का भारत के अंतरिक्ष अभियानों के विभिन्न पहलुओं पर प्रभाव (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) पड़ता है। उदाहरण के लिए, लगभग 74 कानून (राज्य कानूनों को छोड़कर) अंतरिक्षीय गतिविधियों, खासकर निजी संस्थानों की गतिविधियों पर प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से या सामान्य/विशिष्ट तौर पर प्रभाव डाल सकते हैं। यह साफ है कि कई कानूनों को सामयिक बनाने की भी जरूरत होगी ताकि बाहरी अंतरिक्ष से जुड़ी गतिविधियों के लिए इन कानूनों को प्रासंगिक बनाया जा सके।

इतने सारे कानूनों की मौजूदगी हालांकि एक व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की प्रभावशीलता को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती है क्‍योंकि संयुक्‍त राष्‍ट्र की आम सभा ने अपने एक प्रस्ताव में लॉन्चिंग स्टेट की अवधारणा के रिजॉल्यूशन एप्लिकेशन में यह सिफारिश की है कि अंतरिक्षीय गतिविधियों का संचालन करने वाले देशों को अपने अधिकार-क्षेत्र में आने वाले गैर-सरकारी संस्थानों को अधिकृत करने और निगरानी करने की गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय कानूनों को अमल में लाने पर ‘विचार’ करना चाहिए।

अंतरिक्ष कानून का मसौदा

फिलहाल, भारत में बाहरी अंतरिक्ष की खोज और उपयोग से संबंधित कोई विशिष्‍ट व समर्पित कानून नहीं है। इसके बजाय, पहले से मौजूद ढेर सारे कानून अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं। राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून को लागू करने की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में, ड्राफ्ट स्पेस एक्टिविटीज बिल, 2017 को सिविल सोसाइटी के प्रासंगिक तबकों की टिप्पणियां आमंत्रित करने के लिए प्रकाशित किया गया था। ड्राफ्ट बिल के अनुसार, अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों का नियमन केंद्र सरकार के अधिकार-क्षेत्र में आता है।

किसी भी अंतरिक्ष कानून की विषय-वस्तु में आम तौर पर लागू करने का दायरा, प्राधिकरण, पर्यवेक्षण, पंजीकरण, दायित्व, सुरक्षा और स्वामित्व का हस्तांतरण शामिल होता है। ड्राफ्ट बिल में शामिल महत्वपूर्ण क्षेत्रों में व्यावसायिक अंतरिक्ष गतिविधि के लिए अधिकार, व्यावसायिक अंतरिक्ष गतिविधि में संलग्न होने के लिए लाइसेंस के संबंध में नियम, अंतरिक्ष से सम्बंधित वस्तुओं का पंजीकरण, व्यावसायिक अंतरिक्ष गतिविधि से होने वाली क्षति के प्रति दायित्व, बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा और शक्तियों का कार्यभार सौंपना शामिल हैं।

ड्राफ्ट बिल अंतरिक्ष में अनधिकृत गतिविधि को रोकने का भी प्रयास करता है। इस कारण से, अध्याय III पैरा 6.1 स्पष्ट रूप से कहता है कि ‘कोई भी व्यक्ति धारा 7 की उप-धारा (1) में निर्दिष्ट लाइसेंस में आने वाली गतिविधि के अलावा कोई भी अन्य व्यावसायिक अंतरिक्षीय गतिविधि नहीं करेगा’। इसी प्रकार, बाहरी अंतरिक्ष में व्यावसायिक गतिविधि में शामिल होने का लाइसेंस केवल तभी दिया जा सकता है जब यह भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप हो (7.2.बी)। लाइसेंसधारी की अंतरिक्षीय गतिविधि के साथ-साथ ऐसी गतिविधि के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री के निरीक्षण करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है (8.2.ए)।

इसके अलावा, केंद्र सरकार के पास किसी भी ऐसी अंतरिक्षीय गतिविधि की देखरेख का अधिकार भी है जिसमें भारत एक लॉन्चिंग स्टेट है (3.के)। चूंकि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून क्षति के लिए, चाहे वह क्षति निजी संस्थानों की वजह से ही हुई हो, देशों को उत्तरदायी बनाता है इसलिए ड्राफ्ट बिल में प्रावधान है कि लाइसेंसधारी केंद्र सरकार को ‘किसी व्यावसायिक अंतरिक्षीय गतिविधि से होने वाली किसी भी क्षति या नुकसान के संबंध में या लाइसेंस के तहत शामिल अंतरिक्ष की वस्तु के संबंध में सरकार के खिलाफ लाए गए किसी भी दावे की क्षतिपूर्ति करेगा’ (12.1)।

स्‍पेस एक्टिविटीज बिल के ड्राफ्ट में इस बात को रेखांकित किया गया है कि वह बाहरी अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग से संबंधित महत्वपूर्ण क्षेत्रों को संबोधित करता है। उदाहरण के लिए, यह निजी खिलाडि़यों की गतिविधियों को नियंत्रित करता है, व्यावसायिक अंतरिक्षीय गतिविधि में संलग्न होने और अंतरिक्ष वस्तुओं के पुन: पंजीकरण के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए नियम प्रदान करता है, और केंद्र सरकार की क्षतिपूर्ति के माध्यम से क्षति के लिए दायित्व से संबंधित है।

इसके बावजूद, अंतरिक्ष में स्वामित्व अधिकारों की प्रकृति से संबंधित मुद्दों को ड्राफ्ट बिल में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

अंतरिक्ष में स्‍वामित्‍व?

दुनिया के अधिकांश मौजूदा अंतरिक्ष कानून उन स्थितियों के जवाब में तैयार किए गए थे, जो शीत युद्ध के दौर के दौरान मौजूद थीं। बदलती परिस्थितियों और नई वास्तविकताओं (जैसे बाहरी अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण और निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई भूमिका) बाहरी अंतरिक्ष कानून की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देते हैं। बाहरी अंतरिक्ष के व्यावसायिक इस्तेमाल होने की संभावना ने एक बहस को जन्म दिया है जिसका संबंध आउटर स्‍पेस ट्रीटी के साथ है।

इस संदर्भ में, बाहरी अंतरिक्ष में स्वामित्व अधिकारों से संबंधित नियम- खासकर खगोलीय पिंडों में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के मामले में- काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं। क्या राष्ट्रीय या निजी क्षेत्र को खगोलीय पिंडों में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के बिना अनुमति उपयोग का अधिकार है?  क्या पूर्ण स्वामित्व का दावा किए बिना ऐसे संसाधनों का व्यावसायिक लाभ के लिए इस्‍तेमाल किया जा सकता है? क्या प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नियामक व्यवस्था स्थापित करना जरूरी है? ये कुछ ऐसे ही जरूरी सवाल हैं।

जब खगोलीय पिंडों के लिए राष्ट्रीय और निजी मिशन संभव हो जाएंगे, तब इन सवालों का जवाब निकट भविष्य में देशों को देना होगा। इसीलिए, बाहरी अंतरिक्ष में स्वामित्व अधिकारों से जुड़े दुनिया में मौजूद कानूनों को मोटे तौर पर जानना बहुत जरूरी है।

आउटर स्‍पेस ट्रीटी

आउटर स्‍पेस ट्रीटी में बाहरी अंतरिक्ष (खगोलीय पिंडों सहित) को ‘सभी मानव जाति के प्रांत’ के रूप में देखा गया है। इसमें अलावा, संधि कहती है कि बाहरी अंतरिक्ष की खोज और उपयोग ‘सभी देशों के लाभ और हितों के लिए किया जाएगा, चाहे उनका आर्थिक या वैज्ञानिक विकास स्तर कुछ भी हो’। इसके अलावा, बाहरी अंतरिक्ष और उसमें मौजूद खगोलीय पिंड, उपयोग या व्यवसाय के माध्यम से संप्रभुता के दावों के अधीन नहीं हो सकते।

मून अग्रीमेंट और इसकी सीमाएं

खगोलीय पिंडों में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के संदर्भ में, चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर देशों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला समझौता मून एग्रीमेंट1984 में लागू हुआ था। जब तक चंद्रमा जैसे खगोलीय पिंडों के साथ ही सौरमंडल के अन्य खगोलीय पिंडों के लिए एक विशिष्ट नियमावली नहीं बन जाती, तब तक उनके उपयोग से संबंधित विस्तृत नियम मून एग्रीमेंट ही प्रदान करता है।

मून एग्रीमेंट घोषित करता है कि चंद्रमा और उसके संसाधन ‘मानव जाति की साझी विरासत’ (कॉमन हेरिटेज ऑफ मैनकाइंड या सीएचएम) हैं। जो क्षेत्र सीएचएम के रूप में घोषित है उसकी खास विशेषताएं होती हैं। इनमें शामिल हैं – अधिग्रहण पर प्रतिबंध या संप्रभुता का दावा, केवल शांतिपूर्ण उपयोग के लिए क्षेत्र को आरक्षित करना, पर्यावरण की रक्षा करना, संयुक्त प्रबंधन व्यवस्था के जरिये क्षेत्र का शासन और विकासशील देशों की विशेष जरूरतों पर जोर देने के साथ क्षेत्र के लाभों को समान रूप से साझा करना।

इस संदर्भ में मौजूदा चंद्रयान-3 के दौरान चला जुमला ‘’मून इज इंडियन’’ या ‘’चांद भारत का’’ समस्‍याग्रस्‍त जान पड़ता है।

मून एग्रीमेंट में कहा गया है कि चंद्रमा पर मौजूद संसाधनों के दोहन से संबंधित गतिविधियां संधि में शामिल देशों द्वारा स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय नियामक संस्था की देखरेख में की जाएंगी। इसके अलावा, उक्त व्यवस्था को यह सुनिश्चित करना है कि संसाधनों के दोहन से प्राप्त लाभों को न्यायसंगत रूप से साझा किया जाता है और ऐसा करते वक्त विकासशील देशों के हितों एवं जरूरतों का (और साथ ही चंद्रमा की खोज में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान देने वाले देशों के प्रयासों का) ‘विशेष ध्यान’ रखा जाता है।

अभी तक केवल 18 देशों ने मून एग्रीमेंट की अभिपुष्टि की है। हालांकि समझौते में निहित सिद्धांतों को कुछ अकादमिक समर्थन हासिल है। इस सूची में अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्र शामिल नहीं हैं। फ्रांस जैसे अन्य अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले देशों के साथ, भारत ने मून एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर तो किए हैं, लेकिन अब तक इसकी अभिपुष्टि नहीं की है।

मून एग्रीमेंट की सीमित स्‍वीकार्यता का मतलब यह है कि बाहरी अंतरिक्ष में प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को आउटर स्‍पेस ट्रीटी द्वारा ही नियंत्रित किया जा रहा है। आउटर स्‍पेस ट्रीटी स्पष्ट रूप से किसी राष्ट्र द्वारा बिना अनुमति के उपयोग के दावे को गैरकानूनी घोषित करती है, लेकिन यह प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से संबंधित नियामक तंत्र पर विस्तार से चर्चा नहीं करती।

इस आधार पर देखें तो प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से संबंधित कई दृष्टिकोण संभव हैं। इस मुद्दे ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से ध्यान आकर्षित किया है क्योंकि बाहरी अंतरिक्ष का, विशेष रूप से निजी क्षेत्र के संस्थानों द्वारा, व्यावसायिक दोहन करना संभव हो चुका है। निकट भविष्य में उपग्रह निर्माण, प्रक्षेपण सुविधाएं प्रदान करना, अंतरिक्षीय मलबे को हटाना, कॉमर्शियल रिमोट सेंसिंग, संचार एवं प्रसारण और सौर ऊर्जा जैसे पहलू महत्वपूर्ण व्यावसायिक मूल्य के हो सकते हैं।

अमेरिकी अंतरिक्ष नीति

अमेरिकी अंतरिक्ष नीति बाहरी अंतरिक्ष से संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानून की व्याख्या सभी देशों के अधिकार के रूप में करती है, जिससे वे बिना किसी हस्तक्षेप के अंतरिक्ष में स्वतंत्र होकर घूम सकें और गतिविधियों का संचालन कर सकें। इसके अलावा, इसमें अमेरिका की अंतरिक्ष संपत्तियों की रक्षा के प्रावधान भी शामिल हैं।

अमेरिका ने यू.एस. कॉमर्शियल स्पेस लॉन्च कॉम्पि‍टीटिवनेस एक्ट भी पारित किया है। यह कानून  अमेरिकी नागरिकों को बाहरी अंतरिक्ष के व्यावसायिक दोहन की सुविधा प्रदान करता है और ऊपर बताए गए खगोलीय पिंडों और उनमें मौजूद संसाधनों के बीच के अंतर पर आधारित है। अमेरिका ने यूएस स्पेस फोर्स की भी स्थापना की है, जो बाहरी अंतरिक्ष में आक्रमण को रोकने और अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की रक्षा करने के लिए सशस्त्र बलों की नई शाखा के रूप में कार्य करेगा।

अन्य अंतरिक्ष कानून और नीतियां

लक्जमबर्ग और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की घरेलू नीतियां भी उल्लेखनीय हैं। लक्जमबर्ग ने हाल ही में कहा है कि वह क्षुद्रग्रहों के खनन (एस्टेरॉयड माइनिंग) सहित बाहरी अंतरिक्ष में अपने व्यावसायिक हितों की रक्षा करेगा। इसका कानून स्पष्ट कहता है कि अंतरिक्ष संसाधन स्वामित्व में लेने योग्य हैं। बाहरी अंतरिक्ष में मौजूद संसाधनों से संबंधित संपत्ति अधिकारों को सुरक्षित करने के मामले में लक्जमबर्ग पहला यूरोपीय देश (और अमेरिका के बाद दुनिया भर में दूसरा) होने का दावा करता है।

संयुक्त अरब अमीरात की इच्छा अंतरिक्ष अन्वेषण में एक महत्वपूर्ण देश बनने की है। इसके लिए, संयुक्त अरब अमीरात की अंतरिक्ष एजेंसी अन्य प्रासंगिक संस्थाओं के साथ ‘अंतरिक्ष में संसाधनों की अन्वेषण, खनन, निष्कर्षण और उपयोग’ की दिशा में भागीदारी करेगी।

आर्टेमिस की संधियां

शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए चंद्रमा, मंगल, धूमकेतु, और क्षुद्रग्रहों (के नागरिक अन्वेषण और उपयोग में सहयोग के सिद्धांत (आर्टेमिस संधि), अमेरिका की एक पहल है जो चंद्रमा, मंगल, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं (उनकी उप-सतहों और कक्षाओं सहित) जैसे खगोलीय पिंडों पर की जाने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करती है। समझौते पर राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियां अपने देशों की ओर से हस्ताक्षर करती हैं और अपने देशों की अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों को नियंत्रित करती हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, संयुक्त अरब अमीरात, लक्जमबर्ग, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और इटली इसके संस्थापक सदस्य हैं।

भारत ने आर्टेमिस संधि पर हाल ही में दस्‍तखत किए हैं। बाहरी अंतरिक्ष में स्वामित्व अधिकारों के प्रश्न के संबंध में आर्टेमिस की संधियों में एक निश्चित पक्ष अपनाया गया है। आर्टेमिस संधियों की धारा 10 के पैराग्राफ 2 में कहा गया है:

हस्ताक्षरकर्ता इस बात की पुष्टि करते हैं कि आउटर स्‍पेस ट्रीटी के अनुच्छेद II के तहत अंतरिक्ष संसाधनों का निष्कर्षण स्वाभाविक रूप से बिना अनुमति के राष्ट्रीय उपयोग के अधिकार के दायरे में नहीं आता है।

इस प्रकार आर्टेमिस की संधियां खगोलीय पिंडों और उन पर मौजूद संसाधनों के बीच फर्क करती हैं। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग, बिना अनुमति के उपयोग नहीं करने के सिद्धांत का उल्लंघन किए बिना, किया जा सकता है। आर्टेमिस संधियां पुष्टि करती हैं कि इसमें निहित सिद्धांत आउटर स्‍पेस ट्रीटी के अनुरूप हैं। इसलिए समझौते के ड्राफ्ट ने आउटर स्‍पेस ट्रीटी के अनुच्छेद I और II से संबंधित एक निश्चित व्याख्या को अपनाया है, जो बाहरी अंतरिक्ष में स्वामित्व अधिकारों के संदर्भ में प्रासंगिक है।

भारत का ड्राफ्ट अंतरिक्ष बिल

भारत में ड्राफ्ट अंतरिक्ष बिल 2017 के विभिन्न पहलुओं पर विविध मंचों पर चर्चा की गई है। बाहरी अंतरिक्ष में अधिकार के विशिष्ट मामले में, ‘ड्राफ्ट स्पेस एक्टिविटीज (रेग्युलेशन) बिल, 2020- अनुशंसित विधेयक’  का उल्लेख महत्वपूर्ण है जो तक्षशिला इंस्टिट्यूट ने प्रकाशित किया है।

अनुशंसित विधेयक का पूरा ध्यान बाहरी अंतरिक्ष के व्यावसायिक दोहन पर है। बाहरी अंतरिक्ष में स्वामित्व अधिकारों के संदर्भ में, अनुशंसित विधेयक स्पष्ट रूप से कहता है कि बाहरी अंतरिक्ष में यथावत प्राप्त प्राकृतिक संसाधनों का स्वामित्व होना चाहिए (2.13 अंतरिक्ष के मौजूद संसाधनों को परिभाषित करता है)। हालांकि, अनुशंसित विधेयक स्वामित्व हासिल करने की सटीक प्रक्रिया के बारे में विस्तार से नहीं बताता है। इसके बजाय, यह कहता है कि स्वामित्व ‘निर्धारित प्रक्रियाओं और शर्तों के अधीन होगा’ (धारा 46)।

तक्षशिला इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित अंतरिक्ष नीति दस्तावेज, अंतरिक्ष संसाधनों के स्वामित्व से संबंधित हालिया विकास (जैसे अमेरिका द्वारा पारित कानून) का संदर्भ लेता है और कहता है कि भारत को इस तरह के विकास से अवगत होना चाहिए और उपयुक्त कानूनों से निजी संस्थानों का मार्गदर्शन करना चाहिए।

इसीलिए, भारत के थिंक टैंक और साथ ही अन्य प्रासंगिक संस्थाएं बाहरी अंतरिक्ष में स्वामित्व अधिकारों की प्रकृति को लेकर चिंतित हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बाहरी अंतरिक्ष की खोज से संबंधित हाल के कानून और नीतियों ने बाहरी अंतरिक्ष में संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग से संबंधित एक निश्चित स्थिति ले ली है, यह आश्चर्यजनक है कि ड्राफ्ट स्पेस एक्टिविटीज बिल इस मुद्दे पर मौन है।

अंतरिक्ष में संघर्ष?

बाहरी अंतरिक्ष में स्वामित्व अधिकारों के सवाल को हल करने में भारत की नाकामी के निहितार्थ घरेलू क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहेंगे। इसके बजाय, इस विफलता के व्यापक वैश्विक निहितार्थ होंगे, जिसमें बाहरी अंतरिक्ष के उपयोग से संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानून का विकास शामिल है जिसका असर उन विकासशील देशों पर पड़ सकता है, जिनके पास फिलहाल बाहरी अंतरिक्ष का व्यावसायिक इस्तेमाल करने के लिए अपेक्षित तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है।

सबसे पहला परिणाम तो यह निकल सकता है कि यदि अधिकांश विकसित राज्य आर्टेमिस संधियों के जरिये बाहरी अंतरिक्ष का व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू कर देते हैं, तो नतीजतन एक अंतरराष्ट्रीय कानून का निर्माण हो सकेगा जो बाहरी अंतरिक्ष के व्यावसायिक उपयोग की पहल करने वाले देशों के ही अनुकूल होगा।

दूसरे, अंतरराष्ट्रीय कानून में परंपरागत ढर्रा यह है कि संप्रभुता के दावे प्रभावी नियंत्रण से पैदा होते हैं, हालांकि तकनीक की मौजूदा सीमाएं ऐसे दावों को काफी हद तक असंभव बनाती हैं। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी विकसित होगी और निकट भविष्य में खगोलीय पिंडों पर मानव बस्तियों की स्थापना होगी, प्रभावी नियंत्रण की आवश्यकता आंशिक रूप से ही पूरी होगी।

तीसरे, बाहरी अंतरिक्ष से संसाधनों के दोहन में भारी मात्रा में मौद्रिक और प्रौद्योगिकीय संसाधन खर्च होते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि जो विकासशील देश भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा की क्षमता हासिल कर लेंगे, वे बाहरी अंतरिक्ष की खोज और उपयोग के लाभ से वंचित न रहें।

अंतरिक्षीय गतिविधियों को इस तरह से करना कि बाहरी अंतरिक्ष में जो प्राकृतिक संसाधन पहले से ही दुर्लभ हैं, अधिकांश विकासशील देशों को उनके हिस्से के प्राकृतिक संसाधनों से वंचित कर दिया जाए, आउटर स्‍पेस ट्रीटी का उल्लंघन होगा।

अंतत: जब अंतरिक्ष यात्रा से सम्बंधित प्रौद्योगिकी में सक्षम कई संस्थान एक साथ बाहरी अंतरिक्ष में दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का अभियान लॉन्च करेंगे, तो बाहरी अंतरिक्ष में संपत्ति अधिकारों की एक खंडित प्रणाली से जो हासिल होगा, वह एक समस्या बन जाएगा। साझा वैश्विक संसाधनों के प्रति एक ‘साझा कुएं’ वाला दृष्टिकोण तभी व्यावहारिक होता है जब इसमें शामिल संस्थानों की संख्या सीमित हो। एक बार जब संस्थानों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी, तो संसाधनों तक पहुंच के मामले में संघर्ष होना तय है। इसके अलावा, इसका अंतरिक्ष के पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।


स्रोत और संदर्भ

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