बुधवार, 30 अगस्त को तड़के छह बजे बार-बार फोन की घंटी बजने के चलते मेरे भाई नदीम की नींद खुल गई। पता चला कि उत्तर पश्चिमी दिल्ली के सुल्तानपुरी से मेरे एक पड़ोसी का फोन आ रहा था। हफ्ते के बीच में इतनी सुबह अपने मोहल्ले से फोन आना कोई सामान्य बात नहीं थी। दूसरी तरफ से आती आवाज ने बताया कि हमारे तीनमंजिला घर की छत से उसने धुआं उठता देखा है।
पिछले करीब दो साल से मैं अपने पिता और भाई के साथ दिल्ली के एक उपनगर में रह रही हूं। इसके बावजूद जिस घर और पड़ोस में मेरा बचपन गुजरा, जहां से मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई, उससे मेरा रिश्ता अब तक मुसलसल कायम है।
भाई के साथ मैं जब तक सुल्तानपुरी में अपने घर पहुंची, आग से बहुत नुकसान हो चुका था। पूरा घर लपटों की गिरफ्त में आ चुका था और दूसरी मंजिल पूरी तरह जलकर खाक हो चुकी थी। गनीमत है कि पड़ोसियों ने दमकल को पहले ही सूचना दे दी थी। वे अपना काम कर के जा चुके थे। स्थानीय पुलिस को भी सूचना जा चुकी थी।
घर में घुसते ही जो नजारा मैंने देखा, कि दिल एकदम से टूट गया। संकरी-सी मंजिल अधजली चीजों और राख से पटी पड़ी थी। दोनो पलंग जल चुके थे। उनकी लकड़ी की राख अब भी गर्म थी। स्टील की दो आलमारियां खुली पड़ी थीं। उनके भीतर भरी किताबें फर्श पर बिखरी हुई थीं। आलमारियां और किताबें, सब जल कर खाक हो चुकी थीं।
बड़ी मुश्किल से पुलिसवाले मौके पर पहुंचे थे। कुरान पाक के जले हुए पन्नों को देखकर हो सकता है पुलिसवालों की प्रतिक्रिया कुछ और होती, पर इत्तेफाक से उन्हें रामायण के जले हुए पन्ने भी वहीं साथ में दिख गए। एक ही फ्रेम में देश की मिश्रित संस्कृति के साक्ष्य देख कर वे सकते में आ गए। मामले को किसी तरह ढंकने के लिए उन्होंने इसे हादसा साबित करने की दलीलें देनी शुरू कर दीं।
काफी बाद में हालांकि उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि घर में शॉर्ट सर्किट से यह हादसा होने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी क्योंकि हमने साल भर पहले ही घर की बिजली कटवा दी थी। इसके बाद रिपोर्ट लिखवाने के लिए पुलिस के साथ हुज्जत का जो सिलसिला चला, वह काफी लंबा था।
मेरे भाई और मैंने पूरा दिन थाने में ही बिताया। हमने स्थानीय एसएचओ से बात की, एसीपी और डीसीपी से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से वे अपने उस फोन नंबर पर मौजूद नहीं थे, जो दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर दर्ज है। परेशान होकर हमने मीडिया और सियासी दायरे के अपने दोस्तों को फोन लगाया और उन्हें घटना की जानकारी दी।
किसी का हौसला कैसे तोड़ा जाए, पुलिस यह बखूबी जानती है। उनके पास बस एक रटा-रटाया जवाब होता है- कार्यवाही चल रही है, इंतजार करिए! जाहिर है, यह इंतजार कई घंटों या कुछ दिनों का भी हो सकता है। मैंने और मेरे भाई ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि पुलिस हमारे घर पर हमले का गंभीरता से संज्ञान लेगी, खासकर इसलिए भी कि पेशेवर रूप से एक स्वतंत्र पत्रकार होने के नाते मैं अल्पसंख्यकों और वंचित तबकों के मुद्दे ही उठाती हूं।
हमने सोचा कि अब जो हो गया सो हो गया, यही सही। हताश होकर हम लौट ही रहे थे कि फोन बजा। वॉट्सएप पर नोटिफिकेशन आया था। सुल्तानपुरी थाने से जांच अधिकारी का संदेश था। उसने एफआइआर की प्रति भेजी थी।
जो धारा लगाई गई थी, उसके अंतर्गत आरोप था, “आग या विस्फोटक पदार्थ के प्रयोग से घर को नष्ट करने का कुकृत्य”।
अब तक हम लोग बेचैन होकर सोशल मीडिया पर जा चुके थे। शुक्र है, इन मंचों पर और बाहर भी हमें काफी समर्थन मिला था। मेरे खयाल से इसी दबाव में जांच अधिकारी ने मुकदमा दर्ज कर लिया था जबकि कुछ देर पहले ही उसने हमें बताया था कि इस काम में बहुत समय लगेगा।
SULTANPURI_OUTER-DISTRICT_0905-2023_FIR
दोषियों को पकड़ कर सजा देने की लंबी लड़ाई में यह महज शुरुआत है। कुछ मीडिया के लोगों ने जब घटना को लेकर स्थानीय पुलिस से सवाल पूछना शुरू किया, तब पुलिस अचानक हरकत में आई और उसने घर की जली हुई मंजिल को सील कर दिया। शुरुआती जांच में अब तक कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा है। या हो सकता है कि उसने हमारे साथ उसको साझा करना उचित न समझा हो।
पुलिस से अपनी शिकायत में मैंने यह जांचने की मांग की है कि मेरे घर में लगी आग कहीं मुझे निशाना बना कर लगाई तो नहीं गई थी! फिलहाल, उत्तेजना के इस माहौल में मैंने शांत और दृढ़ रहना चुना है।