आंखोंदेखी : जंतर-मंतर पर क्या हुआ था प्रेस स्वतंत्रता दिवस की आधी रात?

पत्रकार आए तो थे तो रिपोर्टिंग करने पर यहां तो जान बचाना मुश्किल हो रहा था। एक महिला पत्रकार दिल्‍ली के सुनसान चौराहे पर आधी रात में अकेली खड़ी थी। मैं सोच रहा था कि इस दौरान अगर कोई घटना घटी तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

बुधवार देर रात जंतर-मंतर पर एकाएक पुलिस और पहलवानों के बीच झड़प हो गई। इस झड़प में दो पहलवान बुरी तरह चोटिल हुए हैं। उसके बाद इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो के वायरल होते ही मीडिया के लोगों का वहां जमावड़ा लगना शुरू हुआ। उसी दौरान मैं भी वहां अपने सहयोगी के साथ पहुंच चुका था। रात के बारह बज रहे थे।

जाकर देखा तो पुलिस ने पूरे जंतर-मंतर को चाक-चौबंद कर रखा था। किसी की भी एंट्री नहीं हो रही थी, चाहे वह मीडियापर्सन हो या राजनीतिक लोग। फिर भी कई नेताओं का वहां पहुंचना शुरू हो चुका था। सबसे पहले पहुंचने वालों में कांग्रेस के नेता दीपेंद्र हुड्डा थे। पुलिस ने जाते ही उन्हें उठा हलया। उन्‍हें पहले तो रोका, वहां प्रवेश नहीं करने दिया और फिर उन्हें लेकर थाने चली गई। इसके बाद वहां पत्रकारों का पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ।

पुलिस ने केवल तीन पत्रकारों को एंट्री दी, जिसमें मैं भी था। जब अंदर गया तो देखा कि एक पहलवान बुरी तरह चोटिल था। तत्काल पुलिस ने एक एंबुलेंस मंगाई और उसे अस्पताल ले जाया गया। इसी दौरान मैंने सुना कि जनपथ की ओर हुई बैरिकेडिंग की ओर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी। मैं जब वहां पहुंचा तो पत्रकार साक्षी जोशी और पुलिसकर्मियों के बीच झड़प हो रही थी। कुछ महिला पुलिसकर्मी साक्षी जोशी को अपने घेरे में लिए हुए थीं। साक्षी जोशी चिल्ला रही थीं, बार-बार कह रही थीं- ‘मैं एक पत्रकार हूं, मुझे अंदर जाने दीजिए’, लेकिन पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी उन्हें वहां से आगे नहीं जाने दे रहे थे। वे उनके साथ जबरदस्ती कर रहे थे। धक्का-मुक्की हो रही थी, कपड़े फाड़े जा रहे थे।

पुलिसवालों ने आगे ले जाकर उन्‍हें चौराहे पर अकेला छोड़ दिया। वहां कोई साधन नहीं था आने-जाने का। साक्षी बदहवास खड़ी देख रही थीं।

पत्रकार आए तो थे तो रिपोर्टिंग करने पर यहां तो जान बचाना मुश्किल हो रहा था। एक महिला पत्रकार दिल्‍ली के सुनसान चौराहे पर आधी रात में अकेली खड़ी थी। मैं सोच रहा था कि इस दौरान अगर कोई घटना घटी तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।

इसी बीच मैंने देखा कि पत्रकार अजीत अंजुम भी वहां पहुंच गए। उन्होंने अपनी फॉर्च्‍यूनर में बैठे-बैठे वहां का नजारा देखा और तुरंत नौ दो ग्यारह हो गए।

उसके बाद दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज पहुंचे। उन्‍होंने नारेबाजी की और बैरिकेड पर चढ़ गए। पुलिस ने जब उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास किया तो वे भागने लगे। जब भीड़ भाग रही थी तो कई लोगों के जूते वहीं छूट गए थे। इसमें कोंडली के विधायक कुलदीप कुमार भी थे।

तभी दूसरी और मैंने देखा दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को भी पुलिस गिरफ्तार करके ले जाने लगी। उनके साथ भी बदसलूकी की गई।

इस पूरे घटनाक्रम में कई पत्रकारों के साथ पुलिस का व्यवहार ठीक नहीं रहा। पहलवानों की लड़ाई में पत्रकार भी पुलिस से दो-दो हाथ करते दिखे। यह अखाड़ा पुलिस और पहलवानों का था लेकिन यहां नेता और पत्रकार भी अपना-अपना दांव लगा रहे थे। चाहे कितना भी बड़ा नेता हो, पहलवान हो, पत्रकार हो, सब पर पुलिस का दांव भारी पड़ गया था। स्‍वाभाविक रूप से सारा मामला थोड़ी देर बाद शांत हो गया। मैं सुबह चार बजे के आसपास वहां से वापस निकला।


लेखक स्पेशल कवरेज न्यूज के संपादक हैं


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