मणिपुर: आदिवासी राज्यपाल के साथ जगह बदलता आदिवासी संकट

पत्र की ऐसी भाषा सीधे राजभवन से आए आदेश की नहीं रही होगी क्‍योंकि यह पत्र गृह विभाग द्वारा जारी किया गया है

बहुसंख्‍यक और सामाजिक-राजनीतिक रूप से वर्चस्‍वशाली मैती समुदाय को जनजाति का दरजा दिए जाने के खिलाफ कुकी और नगा आदिवासियों के शांतिपूर्ण मार्च के बाद भड़की हिंसा से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने मणिपुर में गुरुवार को अनुच्‍छेद 355 लागू कर दिया और राज्‍यपाल ने उन मामलों में देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए जहां बलप्रयोग, चेतावनी आदि काम नहीं आ रही।

मणिपुर सरकार के गृह विभाग सचिवालय से 4 मई को जारी राज्‍यपाल के निर्देश की प्रति सभी जिलाधिकारी, एसडीएम, जिलायुक्‍त, उपायुक्‍त, एसपी, आइजीपी, एडीजीपी, डीजीपी आदि को भेजी गई है। इस प्रति में जिस भाषा का प्रयोग किया गया है, वह चौंकाने वाली है। आम तौर से सरकारी आदेश, वह भी ‘शूट ऐट साइट’ जैसे आदेश, इस भाषा में नहीं दिए जाते।

आदेश संख्‍या H-3608/2/2023-HD-HD कहता है:

‘’…मणिपुर की राज्‍यपाल सभी जिला मजिस्‍ट्रेटों, सब-डिवीजनल मजिस्‍ट्रेटों और जिला मजिस्‍ट्रेटों के माध्‍यम से संबंधित कार्यकारी मजिस्‍ट्रेटों व विशेष कार्यकारी मजिस्‍ट्रेटों को ऐसे अतिरेकपूर्ण मामलों में देखते ही गोली मारने के आदेश जारी करने में में प्रसन्‍नता महसूस करती हैं जहां….।‘’  

सरकारी भाषा में विनम्रतापूर्वक अनुरोध या आदेश के लिए भले ही pleased का इस्‍तेमाल जायज हो, लेकिन यह इस पर भी निर्भर करता है कि आदेश किस काम के लिए दिया जा रहा है और अधिकृत किस काम के लिए किया जा रहा है। ‘शूट ऐट साइट’ के लिए अधिकृत करने में भला कैसी ‘खुशी’?  


राज्यपाल का आदेश

निश्चित रूप से माना जाना चाहिए कि पत्र की ऐसी भाषा सीधे राजभवन से आए आदेश की नहीं रही होगी क्‍योंकि यह पत्र गृह विभाग द्वारा जारी किया गया है। दूसरे, राज्‍यपाल अनुसुइया उइके ने खुद गुरुवार को बयान दिया है कि वे राज्‍य में हो रही हिंसा से बहुत निराश हैं और उन्‍होंने लोगों से अमन चैन बनाए रखने की अपील की है। फिर भी, इस मामले में सवाल तो राज्‍यपाल पर ही खड़ा होता है क्‍योंकि देखते ही गोली मारने के आदेश राज्‍यपाल के हवाले से दिए गए हैं। पत्र कहता है, ‘’…the Governor of Manipur is pleased to authorize…”.

मणिपुर में हो रही हिंसा के पीछे वहां के बहुसंख्‍यक समुदाय मैती को अनुसूचित जनजाति का दरजा दिए जाने का मामला है, जिस पर हाइ कोर्ट ने भी मुहर लगाई है। चूंकि 70 प्रतिशत आबादी मैतियों की ही है और राज्‍य के हर प्रशासनिक अमले पर उनका वर्चस्‍व है, तो कुकी और नगा सहित अन्‍य आदिवासियों को यह स्‍वीकार नहीं है। इसके अलावा, हिंदू होने के नाते मैतियों को ओबीसी और एससी का आरक्षण भी मिलता रहा है। अब अतिरिक्‍त एसटी दरजा मिल जाने से उनका क्‍या लाभ होगा, यह बात अन्‍य आदिवासी समूहों के गले नहीं उतर रही लेकिन उन्‍हें अपने को होने वाला नुकसान साफ दिख रहा है। मैतियों की दलील है कि वे अपनी संस्‍कृति को बचाने के लिए एसटी का दरजा चाह रहे हैं। 1949 के बाद मैती को एसटी की सूची से अलग कर दिया गया था। भाजपा और आरएसएस इन्‍हें हिंदू आदिवासी मानते हैं।

आदिवासियों के मसले पर मणिपुर की राज्‍यपाल अनुसुइया उइके पहले भी विवादों में घिर चुकी हैं। वे ढाई महीने पहले तक छत्‍तीसगढ़ की राज्‍यपाल थीं। वहां आदिवासियों के आरक्षण के मामले में वे विवाद में घिर गई थीं। उनका अचानक छत्‍तीसगढ़ से मणिपुर किया गया ट्रांसफर भी इसी के चलते विवादों में रहा था। उइके छत्‍तीसगढ़ की पहली आदिवासी राज्‍यपाल थीं। वे मध्‍यप्रदेश से आती हैं और भारतीय जनता पार्टी की नेता रही हैं, हालांकि राजनीति की शुरुआत उन्‍होंने अर्जुन सिंह के जमाने में कांग्रेस से की थी। छत्‍तीसगढ़ से उनके तबादले के पीछे भारतीय जनता पार्टी के भीतर उन्‍हें लेकर स्‍थानीय स्‍तर पर असंतोष की बातें खूब हुई थीं। उन्‍हें हटाए जाने से ठीक पहले भाजपा अध्‍यक्ष जेपी नड्डा की रायपुर यात्रा हुई थी, जब स्‍थानीय भाजपा के कई नेताओं ने उनकी शिकायत की थी।

यह मामला भी आदिवासियों के आरक्षण से जुड़ा था, जिसमें उइके के खिलाफ एक याचिका 30 जनवरी को छत्‍तीसगढ़ के उच्‍च न्‍यायालय में राज्‍य सरकार द्वारा लगाई गई थी। एडवोकेट हिमांक सलूजा द्वारा दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि विधानसभा के दोनों सदनों से कोटा बिल पास होने के बावजूद राज्‍यपाल का उस पर दस्‍तखत न करना संविधान का उल्‍लंघन है और राज्‍य में अस्थिरता को बढ़ावा दे रहा है।

छत्‍तीसगढ़ सरकार ने आरक्षण का कोटा बढ़ाकर 76 प्रतिशत कर दिया था। जब यह राज्‍यपाल उइके के पास दस्‍तखत के लिए भेजा गया तो उन्‍होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्‍होंने राज्‍य सरकार से असेंबली का एक विशेष सत्र बुलाने को कहा था ताकि आदिवासियों का कोटा बढ़ाया जा सके। इस संबंध में उइके ने राज्‍य सरकार को 11 सवाल लिख कर भेजे थे।

राज्‍य सरकार की याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्‍यपाल के सचिवालय में सचिव को 6 फरवरी को नोटिस जारी कर के इस रिट याचिका पर जवाब मांगा था कि राज्‍यपाल छत्‍तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्‍य पिछड़ा वर्ग आरक्षण) संशोधन बिल, 2022 क्‍यों रोके हुए हैं, जो सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्‍थानों में 76 प्रतिशत आरक्षण देता है। उक्‍त बिल पिछले साल 2 दिसंबर को पास हुआ था।

राज्‍य सरकार की याचिका के बाद खुद राज्‍यपाल उइके की ओर से एक याचिका डाली गई जिसमें अनुच्‍छेद 361 का हवाला देते हुए कोर्ट के निर्देशों के प्रति न सिर्फ राष्‍ट्रपति, राज्‍यपाल और राजप्रमुखों बल्कि राज्‍यपाल के सचिव की भी सुरक्षा की बात की गई। इसमें मांग की गई थी कि हाइकोर्ट 6 फरवरी के अपने आदेश को वापस ले। इस पर सुनवाई के बाद हाइकोर्ट की जज रजनी दुबे ने नोटिस पर स्‍टे लगा दिया।

इसके बाद राज्‍य में संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई थी। उधर भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार राज्‍यपाल अनुसुइया उइके और भाजपा को आरक्षण विरोधी करार देकर प्रचार कर रही थी। राज्‍य सरकार को 24 फरवरी को अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखना था, लेकिन उससे पहले ही उइके को मणिपुर भेज दिया गया। उइके ने 22 फरवरी को मणिपुर के राज्‍यपाल के पद पर शपथ ले ली।

उनके आने के बाद से मणिपुर दो बार आदिवासी दरजे के मसले पर भड़की हिंसा का गवाह बन चुका है, लेकिन ऐसा पहली बार है जब राज्‍यपाल ने अतिरेकपूर्ण मामलों में देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए हैं। उस पर से केंद्र सरकार द्वारा अनुच्‍छेद 355 के सहारे राज्‍य की कानून व्‍यवस्‍था अपने हाथ में लिया जाना स्थिति को और गंभीर बनाता है।

छत्‍तीसगढ़ में हाइकोर्ट ने अपने ही दिए नोटिस पर अनुसुइया उइके की यजचीक के बाद स्‍टे लगाकर उनके लिए सुरक्षित राह बना दी थी। इसके ठीक उलट, मणिपुर में कोर्ट के आदेश के माध्‍यम से अनुसूचित जातियों के बीच हिंसा की राह खोल दी गई है। दोनों के बीच समान चीज है एसटी आरक्षण और एक ही राज्यपाल का होना। फर्क बस इतना है कि मणिपुर में भाजपा मैती समुदाय के साथ है क्‍योंकि वह उन्‍हें हिंदू आदिवासी मानती है और कुकी को ईसाई। छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई विभाजन नहीं था। विडम्‍बना यह है कि न केवल राज्‍यपाल, बल्कि राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी आदिवासी समुदाय से ही आती हैं।    

फिलहाल हालात ये हैं कि पीटीआई के अनुसार अब तक कुल 54 लोगों को जान जा चुकी है। शुक्रवार तक दो दिनों में ही मरने वालों की तादाद 30 को पार कर गई थी। राज्य में इंटरनेट पर बंदिश है और कुछ जिलों में धारा 144 लगा दी गई है। सभी ट्रेन सेवाएं ठप हैं।


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