हमारी उद्देश्यपूर्ण सामाजिक कार्रवाइयों के परिणाम क्या हमारे नियंत्रण से बाहर निकल चुके हैं?
byप्रौद्योगिकी ने बीते दो दशकों में सामूहिक कार्रवाई, गोलबंदी, और आंदोलन का स्वरूप बुनियादी रूप से बदल डाला है। निश्चित रूप से सामाजिक कार्रवाइयां सोद्देश्य ही की जाती हैं, लेकिन उनके नतीजे करने वालों के हाथ से फिसल भी जाते हैं। आज की दुनिया इस मामले में कहीं ज्यादा अनिश्चित हो चली है। जैसे, नेपाल में युवाओं की ताजा बगावत जिसने दो दिन में सत्ता तो पलट दी, लेकिन उस क्रम में हुई भारी हिंसा से युवाओं ने खुद को अलग भी कर लिया। जो अंतिम परिणाम निकला, क्या बगावत उसी उद्देश्य से थी? हम नहीं जानते। अप्रत्याशित नतीजों के समाजविज्ञान पर एडवर्ड टेनर की यह टिप्पणी शायद रोशनी दे