Project Syndicate

COVID के भुला दिए गए सबक और नए साल में आसन्न खतरों की फेहरिस्त

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पांच साल पहले भी नया साल आया था, लेकिन एक वायरस के साये में और दो-तीन महीने के भीतर पूरी दुनिया सिर के बल खड़ी हो गई। अरबों लोग घरों में कैद हो गए। लाखों लोग घर पहुंचने के लिए सड़कें नापते-नापते हादसों की भेंट चढ़ गए। संस्‍थाएं पंगु हो गईं। व्‍यवस्‍थाएं चरमरा गईं। हमारी कोई तैयारी ही नहीं थी एक अदद वायरस से निपटने के लिए, जबकि आने वाला समय ऐसे ही तमाम और वायरसों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, भूराजनीतिक टकरावों और जलवायु परिवर्तन के सामने निहत्‍था खड़ा है।

Plato and manuscript from the 3rd century AD, containing fragments of Plato's Republic.

US चुनाव: असमानता और लोकतंत्र के रिश्ते पर 2300 साल पुराने राजनीतिक दर्शन का एक सबक

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अमेरिका के राष्‍ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्‍याशी और पूर्व राष्‍ट्रपति‍ डोनाल्‍ड ट्रम्‍प की 5 नवंबर को हुई जीत से कुछ लोग अब तक चौंके हुए हैं। इस जीत के राजनीतिक कारणों से इतर, लोकतंत्र की राजनीति से जुड़ी कुछ पुरानी दार्शनिक स्‍थापनाएं भी हैं जो ट्रम्‍प की वापसी को स्‍वाभाविक रूप से देख-समझ रही हैं। येल युनिवर्सिटी में दर्शनशास्‍त्र के प्रोफेसर जेसन स्‍टैनली ने बहुत संक्षेप में समझाया है कि अमेरिका में चुनावों के रास्‍ते लोकतंत्र का पतन अवश्‍यम्‍भावी क्‍यों था।

Bulldozer Politics

बीता आम चुनाव क्या हिंदुत्‍व के बुलडोजर की राह में महज एक ठोकर था?

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आम चुनाव के नतीजों के बाद राजनीतिक पंडितों ने दावा किया था कि ‘कमजोर’ हो चुके मोदी को अब भाजपा की वर्चस्‍ववादी राजनीति में नरमी लाने को बाध्‍य होना पड़ेगा। तात्‍कालिक विश्‍लेषण की शक्‍ल में जाहिर यह सदिच्‍छापूर्ण सोच आज बुलडोजर के पैदा किए राष्‍ट्रीय मलबे में कहीं दबी पड़ी है। भारत में कुछ भी नहीं बदला है। हां, तीसरी बार सत्‍ता में आए मोदी को ऐसे विश्‍लेषणों ने एक प्रच्‍छन्‍न वैधता जरूर दे दी, कि यहां लोकतंत्र अभी बच रहा है। प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से देबासीश रॉय चौधरी का लेख

NATO and AI

NATO@75 : धारणा के प्रचार-युद्ध में सरकारों, कॉर्पोरेट और CSO का नया मोर्चा

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एक बार फिर पश्चिम में लोकतंत्र की दुहाई दी जाएगी और लोगों की आजादी को बचाने के नाम पर दुनिया भर में सैन्‍य गठजोड़ किए जाएंगे। फर्क बस इतना है कि अबकी मुद्दा ज्‍यादा महीन है- डिजिटल तकनीक और एआइ के रास्‍ते सूचना और ज्ञान के उत्‍पादन का। मंगलवार से शुरू हो रहा नाटो का शिखर सम्‍मेलन जनता की धारणा और भावना को नियंत्रित करने, उसकी निगरानी करने और उसे अनुकूलित करने के नए युद्ध का औपचारिक सूत्रपात कर सकता है। अमेरिका के राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के चीफ ऑफ स्‍टाफ रह चुके इली बैरक्‍तारी खुद पूरी योजना बता रहे हैं। प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से

Labour leader Keir Starmer’s vctory celebrations in London

ब्रिटेन : इतिहास की सबसे ज्यादा ‘सर्वहारा’ सरकार से क्या उम्मीद की जानी चाहिए?

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लेबर पार्टी के नेता कीर स्‍टार्मर की आगामी कैबिनेट में जितने सदस्‍य मजदूर तबके की पैदाइश हैं, उतने ब्रिटेन के इतिहास में किसी सरकार में कभी नहीं रहे। इसका मतलब क्‍या है? क्‍या इसका नीति-निर्माण पर कोई खास असर पड़ेगा या ब्रिटेन के पैदाइशी अभिजात्‍यों के दबाव में अपने वर्ग के लिए कुछ करने की उनकी लालसा दबी ही रह जाएगी? प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से समाजशास्‍त्री एरन रीव्‍स और सैम फ्रीडमैन का आकलन

Marine Le Pen

यूरोप चुनाव: बढ़ते मसखरों के बीच नए फासिस्‍टों का मंडराता साया

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इस महीने यूरोपीय संसद के लिए हुए चुनावों के बाद अब मुख्‍यधारा के राजनीतिक दल और नेता धुर दक्षिणपंथ के साथ एक नाव में सवार होने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। इस तरह, दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद यूरोप के लोकतांत्रिक देशों द्वारा ‘फासिस्‍टों से गठजोड़ न करने’ के अपनाए गए सिद्धांत को चुपके से तिलांजलि दे दी गई है। अब यूरोप को फासिस्‍ट कुबूल हैं। प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के साथ फॉलो-अप स्‍टोरीज की विशेष व्‍यवस्‍था के तहत प्रतिष्ठित चिंतक स्‍लावोइ ज़ीज़ेक का विश्‍लेषण

Symbol of BJP painted on childran's face

अमेरिका से लेकर भारत तक अपने नेता के साये में जॉम्बी बनते राजनीतिक दल

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अपनी राजनीतिक पार्टी की मशीनरी को पूरी तरह हाइजैक कर लेना तानाशाहों में तब्‍दील हो रहे तमाम लोकप्रिय नेताओं का शगल बन चुका है। डोनाल्‍ड ट्रम्‍प अकेले ऐसे दक्षिणपंथी नेता नहीं हैं जिन्‍होंने अपनी पार्टी को अपनी मनमर्जी के अधीन कर डाला है। हंगरी, नीदरलैंड्स, फ्रांस से लेकर भारत तक सूची लंबी है। इतिहास गवाह है कि देश में निरंकुश शासन लगाने की ओर पहला तार्किक कदम पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र खत्‍म कर के उसे तानाशाही में बदलना होता है। राजनीतिक दर्शन के विद्वान यान-वर्नर म्‍यूलर की टिप्‍पणी

Hitler fiddling with globe, a scene from The Great Dictator

क्या 2024 पूरी दुनिया में ‘कब्जे का वर्ष’ है? क्या 1933 खुद को दोहरा रहा है?

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1933 में अडॉल्‍फ हिटलर की सत्‍ता का उदय आज 2024 में कहीं ज्‍यादा प्रासंगिक हो चुका है। दुनिया का ज्‍यादातर हिस्‍सा इस साल निर्णायक चुनावों में जा रहा है। दुनिया की आधी आबादी अपनी किस्‍मत का फैसला अपने वोट से करने जा रही है। चेतावनी के संकेत यहां-वहां बिखरे पड़े हैं, लेकिन कुछ जानकार खुलकर अब कह रहे हैं कि लिबरल जनतंत्र चुनावी दांव पर लग चुका है। इतिहासकार मार्क जोन्‍स की महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणी