फतेहपुर : हिंदुत्व की पुरानी समझदारी से इबादतगाहों के नए विवादों को समझने की अड़चनें
byदेश की सेकुलर जमातों के ऊपर बाबरी विध्वंस का कर्ज इस कदर हावी है कि पिछले साल संभल हो, इस साल बहराइच या ताजा-ताजा फतेहपुर, हर जगह उन्हें नई अयोध्या ही बनती दिखाई देती है। इसके बरक्स, हर बार राज्य का धर्म में हस्तक्षेप और प्रत्यक्ष होता जाता है; हिंदुत्व की राजनीति और जटिल होती जाती है; जबकि हर बार जमीन पर बहुसंख्यकों की गोलबंदी कमतर। अयोध्या की घटना तो एक सुगठित आंदोलन की परिणति थी, लेकिन फतेहपुर के मकबरे पर इस माह दिखे बाबरी जैसे दृश्य? बाबरी के मुहावरे में आज के हिंदुत्व को समझना क्यों भ्रामक हो सकता है, संभल और फतेहपुर की जमीन से बता रहे हैं शरद और गौरव
 
                 
                 
                 
                 
                 
                 
                