युद्ध ही शांति है : पचहत्तर साल पहले छपे शब्दों के आईने में 2025 की निरंकुश सत्ताओं का अक्स
byसर्वसत्तावाद, अंधराष्ट्रवाद, स्वतंत्रता पर बंदिशों, निरंकुशता और एक पार्टी के एकाधिकारी राज का संदर्भ जब-जब आता है, 1949 में प्रकाशित जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 की सहज याद हो आती है। पचहत्तर वर्ष बाद यह उपन्यास अपने लेखनकाल के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो चुका है, इतना कि आए दिन कोई न कोई नेता, अदालत या असहमत इसको उद्धृत करता है। ऑरवेल ने 1984 में अपने काल्पनिक किरदार इमानुएल गोल्डस्टीन की एक काल्पनिक पुस्तक ‘द थ्योरी ऐंड प्रैक्टिस ऑफ ओलिगार्चल कलेक्टिविज्म’ के तीसरे अध्याय में युद्ध पर सर्वसत्तावादी पार्टी के नजरिये से विचार किया था। निरंकुश सत्ताओं को समझने के लिए प्रस्तुत युद्धविषयक तकरीर को वर्तमान संदर्भों में पढ़ा जाना चाहिए