पंजाब: बदलती सरकारें, चढ़ता नशा, मरती जवानी

पांच साल पहले जब मुख्‍यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ड्रग तस्‍करों को मृत्‍युदंड की सिफारिश की थी, तब लगा था कि उड़ते पंजाब पर लगाम लग जाएगी। फिर सरकार बदली। दस दिन के अंदर नए मुख्‍यमंत्री भगवंत मान ने सूबे को नशामुक्‍त करने की शपथ खाई, तो दिल्‍ली में उन्‍हीं की पार्टी के बड़े नेता शराब घोटाले में अंदर चले गए। अब चुनाव फिर सिर पर हैं तो भाजपा नशामुक्‍त पंजाब का नारा देकर रैलियां निकालने जा रही है। उधर लगातार जारी मौतों के धुंधलके में ड्रग्‍स जब्‍ती के सरकारी आंकड़े श्‍मशान की राख से भी हलके नजर आते हैं। पंजाब से मनदीप पुनिया की ग्राउंड रिपोर्ट

तारीख 13 फरवरी 2022, पंजाब के फिरोजपुर जिले की गुरहरसहाय तहसील का छंगाराय उत्तर गांव। इस दिन यहां नशे के इंजेक्शन की ओवरडोज से लाभ सिंह (बदला हुआ नाम) की मौत हुई। गांव के लोग उसका शव लेकर गांव के ही कथित नशा तस्कर के घर के बाहर जमा हो गए और उसके विरोध में नारे लगाने लगे। घंटों प्रदर्शन करने के बाद पुलिस आई और तस्कर की गिरफ्तारी हुई।

उस दिन छंगाराय उत्‍तर में जिन लोगों ने प्रदर्शन किया था, उनमें एक व्‍यक्ति केवल सिंह थे। उन्‍होंने बताया कि मरने वाला लड़का उनके इलाके का नहीं था, बल्कि वहां अपनी एक रिश्तेदारी में रहता था और मेहनत मजदूरी करने आया था।

केवल सिंह कहते हैं, ‘’…लेकिन नशा तस्करों ने उसे भी मौत के मुंह में धकेल दिया। उस वक्‍त पंजाब में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे, लेकिन हमारे इलाके से चुनाव लड़ने वाला कोई भी नेता यहां नहीं आया। किसी ने नशे से हो रही मौत को मुद्दा नहीं बनाया।

दिलचस्‍प है कि 13 फरवरी को ही पटियाला में पूर्व मुख्‍यमंत्री अमरिंदर सिंह के समर्थन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली थी। उस रैली में उन्‍होंने वादा किया था कि अगर पंजाब की जनता भारतीय जनता पार्टी, अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींढसा की शिरोमणि अकाली दल (संयुक्‍त) के महागठबंधन को जिता कर सत्‍ता में ले आती है, तो वे राज्‍य से ड्रग का खात्‍मा कर देंगे और राज्‍य को नशामुक्‍त बना देंगे। न भाजपा गठबंधन सत्‍ता में आया, न पंजाब नशामुक्‍त बना।

महीने भर बाद 16 मार्च 2022 को शहीद भगत सिंह की जन्मस्थली खटकड़कलां में भगवंत मान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मान ने तब पद के साथ पंजाब को नशामुक्त करने की शपथ भी ली थी और सूबे से दस दिन के भीतर नशा खत्म करने की गारंटी दी थी। दो साल होने को आए, कभी ‘उड़ता पंजाब’ कहा गया यह राज्‍य तब से अपने पिंडों के मुंडों की अस्थियां ही गिन रहा है। नशे से मरने वाले ज्‍यादातर 18 से 35 साल के युवा हैं।   

अब चुनाव फिर से सिर पर हैं। जुमलेबाजी का मौसम फिर आया है। मिशन 2024 के लिए भाजपा सभी 117 विधानसभा हलकों में ‘नशामुक्त पंजाब’ रैलियां करने की तैयारी में है। शुरुआत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह करेंगे, जिन्‍होंने इन रैलियों की शुरुआत करने का ऐलान फरवरी 2023 में ही किया था, लेकिन उस वक्‍त यह कार्यक्रम किन्‍हीं कारणों से टल गया था।

दो साल पहले की घटना को याद करते हुए राजनीतिक दलों के वादों पर अफसोस जताने वाले केवल सिंह छंगाराय उत्तर के ही रहने वाले हैं और नौजवानों की उस कमेटी का हिस्सा हैं जो फिरोजपुर और फाजिल्का के बीच पड़ने वाले सीमावर्ती इलाके के गांवों में नशे के खिलाफ अभियान छेड़े हुए है। केवल सिंह ने हमें अपने गांव के एक व्‍यक्ति मनोहर सिंह से मिलवाया, जिनका 23 साल का बेटा नशे के कारण इस दुनिया में नहीं रहा।

मनोहर ने रूंधे गले से बताया, “नशे के कारण पिछले साल ही मेरे बेटे की मौत हो गई। सर, अभी तक कोई नहीं आया है, आप आए हो। कोई कार्रवाई करो सर इन तस्करों के खिलाफ।‘’ बात करते-करते मनोहर का गला बैठने लगा और आंखों में आंसू भर आए।

इस गांव के दस से ज्यादा नौजवान नशे की भेंट चढ़ चुके हैं। मनोहर कहते हैं, ‘’हमारा तो घर बरबाद हो गया है, पर किसी और का न उजड़े इसलिए इन पर कार्रवाई करो सर।

मनोहर के पास खड़े गांव के ही एक शख्स ने बताया, “यहां आसपास हर गांव में आपको चिट्टे और इंजेक्शन से नौजवानों की मौतें हुई मिलेंगी। 20-22 साल के लड़के खत्म हुए हैं।


अपने फोटोग्राफर भाई की तस्वीर दिखाते जसवंत सिंह
ग्राम छंगाराय उत्तर, फिरोजपुर, पंजाब

इसी गांव के जसवंत सिंह मुझे अपने घर ले गए। उन्होंने अपने मृत भाई की फोटो दिखाई, जो उस इलाके का एक काबिल फोटोग्राफर था। जसवंत ने बताया, “दो साल पहले मेरा भाई चिट्टे से मरा है। मेरा भाई बहुत अच्छा फोटोग्राफर था, पर नशे ने उसे खत्म कर दिया। हर महीने गांव में कोई न कोई नौजवान नशे के कारण मर रहा है जबकि इतना बड़ा गांव नहीं है हमारा। अभी चार दिन पहले ही मरा है एक लड़का।

जसवंत हमें उस घर ले गए जहां पांच दिन पहले एक नौजवान की मौत हुई थी। वह परिवार एकदम सन्न था। कोई भी बात करने की हालत में नहीं था। लड़के के चाचा ने हमें वहां से चले जाने को कहा।

फिरोजपुर से फाजिल्का के बीच पड़ने वाले गांवों में चिट्टे के नशे का ज्यादा प्रसार है। इस इलाके में एक नशा छुड़ाऊ केन्द्र में नशा पीड़ित लोगों की काउंसलिंग का काम करने वाले साजन कुमार ने मुझे बताया, “हमारे इलाके में ज्यादातर नशा करने वालों की उम्र 30 साल से कम है। इसमें बड़ी उम्र के लोग भी हैं, लेकिन कम। कई केसों में तो परिवार के दोनों सदस्य (बाप और बेटा) ही नशा करते मिलते हैं। आप यहां फल वगैरा लेने चले जाओ आपको फल नहीं मिलेंगे, उससे पहले चिट्टा मिल जाएगा।

साजन से हमने नशे को रोकने के लिए प्रशासन या सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के बारे में पूछा। उन्होंने बताया, “पहला कदम तो नशे के बिकने पर रोक लगाने का ही होता है, लेकिन पुलिस और प्रशासन की नशा तस्करों के साथ मिलीभगत है। नशा सरेआम बिकता है, इसलिए सारी सरकारें ही इस मामले में नाकारा साबित हुई हैं। दूसरा, नशा पीड़ितों से नशा छुड़वाने का होता है। हमारे इलाके में कई सरकारी और प्राइवेट ड्रग डिएडिक्शन सेंटर खुले हुए हैं। इन सभी सेंटरों में चिट्टा छुड़वाने के लिए बुप्रेनोरफिन गोली दी जाती है। उसमें भी वही चिट्टे वाला साल्ट ही होता है, जिससे एक एडिक्टेड आदमी को नशे की जरूरत महसूस नहीं होती।‘’

वे बताते हैं कि जब किसी मरीज को नशे की जरूरत महसूस होती है, तो वह नशा छुड़ाने वाली गोली को ही खा लेता लेता है। नियम के हिसाब से उस गोली की खुराक को कम करते जाना होता है और छह महीने के बाद छोड़ देना होता है, लेकिन लोग उस गोली के भी आदी बन जाते हैं और उसको नशा समझकर लेते रहते हैं।

साजन बताते हैं, ‘’अगर इस गोली को आप एक निश्चित अवधि के बाद नहीं छोड़ते हैं तो लीवर और मानसिक सेहत पर बहुत असर पड़ता है।

साजन के पास ही खड़े उनके एक सहयोगी एकदम से बोल पड़ते हैं, “यहां चिट्टे के बाद दूसरा सबसे बड़ा नशा उन दवाओं का है जो नशा छुड़वाने के लिए पीड़ित को दी जाती हैं।

इस इलाके में जब हम घूम रहे थे तो दीवारों और खंबों पर नशा छुड़वाने के भतेरे इश्तेहार दिखे थे। जिन्‍हें इन दवाओं के बारे में पता है, उनके लिए तो वे नशे की उपलब्‍धता के विज्ञापन ही थे।

छंगाराय उत्तर से करीब पांच किलोमीटर दूर बुल्ला राय गांव की निर्मल कौर पर 2018 में जो बीती, उसे याद कर के वह सिहर उठती हैं। बात करने से पहले ही उनकी आंखें गीली हो गईं। निर्मल घर के भीतर से दो तस्वीरें लेकर आईं और दालान में डली हुई एक चारपाईं पर रख दीं।


पति और देवर की तस्वीर दिखाती निर्मल कौर, ग्राम बुल्ला राय, फिरोजपुर, पंजाब

दोनों तस्‍वीरों में से एक उनके देवर की थी जिस पर अंग्रेजी में लिखा था, “स्वर्गीय प्रेम सिंह, मौत- 5 मई 2018” ; दूसरी पर लिखा था, “स्वर्गीय मोहन सिंह, मौत– 8 अगस्त 2018”- यह दूसरी तस्‍वीर उनके पति की थी जो अपने छोटे भाई की मौत के तीन महीने के बाद ही चल बसे थे। 

हम उन तस्वीरों को देख रहे थे, तब बड़े धीमे स्वर में नीलम ने कहा, “दोनों भाई थे जी। एक मेरा पति और एक मेरा देवर। दोनों चार साल पहले नशे के कारण मर गए जी।” तस्वीरों को हाथ में लेकर उन्होंने कहा, “बड़ी मुश्किल हो रही है घर चलाने में। ये नशा बंद करवा दो जी।

निर्मल के पड़ोसी मुख्तियार सिंह ने भी बिलकुल यही शब्‍द दुहराए, “ये नशा बंद करवा दो जी।

मुख्तियार हमें अपने घर ले गए। घर के अंदर से वे अपने बेटे की फोटो लेकर आए। उस पर पंजाबी में लिखा था, ‘’सरदार सुरिंदर सिंह, मौत– 25 अक्टूबर, 2019”, जिसे दिखाते हुए उन्होंने बताया, “यूपी गया था मशीन पर काम करने। पैसे कमाकर वापस आया तो छंगाराय गांव चला गया इंजेक्शन लगाने। वहां इंजेक्शन लगाया और वहीं गिर गया। उसको मरे को हम उठाकर लेकर आए। यह नशा हमारे गांव के पिछले दो-तीन सालों में ही दस से ज्यादा नौजवानों को लील गया। पुलिस से हमें कोई आस नहीं है। वह तो तस्करों से मिली हुई है।

उस समय गांव के कई नौजवान दालान में मौजूद थे। इन नौजवानों में से एक ने बताया, “हमारे गांव के तीस से ज्यादा लड़के नशा कर रहे हैं। महीने-दो महीने में किसी न किसी की मौत हो जाती है। परिवार वाले बदनामी के डर से मौत का कारण बीमारी बताते हैं।

इन नौजवानों से हमने जानना चाहा कि उनके इलाके में नशा राजनीतिक मुद्दा बनता है या नहीं। इसके जवाब में एक नौजवान बलविंदर का कहना था, “मुद्दा न बनने के दो कारण हैं। एक, चुनाव के दौरान खुद नेता ही इन तस्करों के घर में जाकर बैठते हैं क्योंकि इनके पास खूब पैसा है। पुलिस भी इन्हें कुछ नहीं कहती, उनको उनका हिस्सा मिलता रहता है। दूसरा, एक लंबे और निरंतर संघर्ष की कमी।‘’  

बलविंदर कहते हैं कि नशे के खिलाफ प्रदर्शन तो बहुत हुए हैं यहां, लेकिन किसी नौजवान की मौत के बाद पुलिस प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए किसी तस्कर को गिरफ्तार कर लेती है और लोग चुपचाप घर चले जाते हैं। फिर दो-तीन महीने जेल में लगाकर उस तस्कर को जमानत मिल जाती है और मामला फिर वैसे का वैसा हो जाता है।

वे कहते हैं, ‘’देखा जाए तो नशा हमारे इलाके का सबसे बड़ा मुद्दा है, लेकिन हमारे इलाके में कोई भी चुनावी दल फिलहाल इस पर कोई बात नहीं कर रहा।

फिरोजपुर जिले के किसान नेता बलदेव सिंह हमें जीरा शहर के समाधि मोहल्ले में ले गए। वहां पर हमें कई लड़के ऐसे मिले जिन्होंने हमें अजनबी जानकर पास आकर पूछा, “सामान चाहिए?” बलदेव ने बताया, “शहर के इस मोहल्ले में आपको जो नशा चाहिए होता है वह यहां मिल जाता है। कोई नहीं रोकता।

लोगों के दावे से इतर पंजाब पुलिस 2023 में नशे की सबसे बड़ी खेप बरामद करने का ऐलान कर के अपनी पीठ थपथपा रही है। अभी 25 दिसंबर को चंडीगढ़ में पुलिस महानिरीक्षक डॉ. सुखचैन सिंह गिल ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस आयोजित कर के दावा किया था कि राज्‍य से ड्रग्‍स के खात्‍मे के लिए उसने तीन सूत्रीय रणनीति बनाई है और इसी के तहत इस साल 1 जनवरी से लेकर अब तक उसने 14951 ड्रग तस्‍करों और 2424 बड़ी मछलियों को गिरफ्तार किया है तथा 10786 एफआइआर दर्ज की हैं।      

इस दावे के बरअक्‍स दो-तीन तरह के सरकारी आंकड़ों को भी देखा जाना चाहिए। हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में पंजाब के राज्य पुलिस विभाग के निदेशक (जांच ब्यूरो) एलके यादव ने सूबे में नशीली दवाओं से संबंधित मौतों के बारे में आंकड़े प्रस्तुत किए थे। उसके अनुसार पंजाब में 1 अप्रैल, 2020 से 31 मार्च, 2023 तक नशीली दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन करने के कारण 266 मौतें दर्ज की गईं। इस आंकड़े के अनुसार 2020-21 में 36 मौतें, 2021-22 में 71 और 2022-23 में 159 मौतें हुईं हैं।

दूसरे आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हैं और बिलकुल ताजा हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में ड्रग्स ओवरडोज की वजह से सबसे ज्यादा 144 मौतें पंजाब हुई हैं। दूसरे नंबर पर राजस्‍थान में 117 मौतें और उसके बाद मध्य प्रदेश में 74 मौतें दर्ज की गईं। ड्रग ओवरडोज में पंजाब के ठीक पीछे चल रहे राजस्‍थान का नागौर जिला सबसे बदनाम माना जाता है।  


बेटे सुरिंदर की फोटो के साथ मुख्तियार सिंह, ग्राम बुल्ला राय, फिरोजपुर, पंजाब

प्रतिष्ठित संस्‍थान पीजीआइ चंडीगढ़ के अध्ययन में पाया गया कि पंजाब में 14.7 फीसदी (31 लाख) आबादी किसी न किसी नशे की चपेट में है। पंजाब के 22 जिलों में किए गए एक सर्वे में पाया गया कि सबसे ज्यादा 39 फीसदी आबादी मानसा में नशे की गिरफ्त में है। पंजाब में 78 फीसदी लोग ड्रग्स डीलरों से नशा खरीदते हैं और 22 फीसदी दवा की दुकानों से।

माझा और दोआबा हलके के अमृतसर, तरनतारन, होशियारपुर, जालंधर, गुरदासपुर के अलावा मालवा के फिरोजपुर, बठिंडा, फरीदकोट और लुधियाना में नशे का शिकार हुए लोगों के पोस्टमॉर्टम में केमिकल्स की जांच की गई। अधिकतर मृतकों के सरकारी अस्पतालों में हुई पंचनामे की रिपोर्ट में पाया गया है कि नब्‍बे फीसदी मृतक 18 से 35 वर्ष आयु वर्ग के थे।

सवाल उठता है कि जब पंजाब पुलिस नशे के कारोबार के खिलाफ इतनी सक्रिय है तो मौतों के आंकड़ों में पंजाब सिरमौर कैसे बना हुआ है। दरअसल, परिवार की इज्जत, राज्य और पुलिस की बदनामी के चलते वे तमाम मौतें ढ़ंक दी जाती हैं जो नशे के ओवरडोज से हुई हैं वरना पुलिस द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़े तो फिरोजपुर से फाजिल्का के बीच पड़ने वाले गांवों और कस्बों में ही औंधे मुंह गिर जाएंगे।

बलदेव सिंह बताते हैं कि पुलिस न सिर्फ नशा बिकवा रही है बल्कि खुद पुलिस महकमे के मुलाजिम नशे की गिरफ्त में हैं। यही वजह है कि लोगों को पुलिस प्रशासन पर अब विश्‍वास नहीं रहा और उन्‍होंने खुद ही नशे की रोकथाम के लिए स्‍वतंत्र रूप से संगठित होकर काम करना शुरू कर दिया है।

इस साल अगस्त में पंजाब के कई गांवों में नशे की रोकथाम के लिए लोगों ने कमेटियां बनाई थीं। इन कमेटियों के माध्‍यम से नशे की खरीद-फरोख्‍त को रोकने की कोशिश हुई थी।

अपने गांव लहरा रोही में बनी एक ऐसी ही कमेटी में बलदेव सिंह भी शामिल हैं। वे बताते हैं, “कमेटी बनने के बाद गांव में नशा बेचने वालों पर नकेल तो कसी, लेकिन नौजवान पास के गांव या कस्बे से नशा खरीदकर लाने लगे हैं। ये कमेटियां बनने के बाद गांव में सरेआम नशा बिकना बंद तो हुआ है क्योंकि पता चलने पर गांव वाले पिटाई भी करते हैं और एफआइआर भी दर्ज करवाते हैं, लेकिन खुद पुलिस ही नशा बिकवा रही है और इतना ही नहीं, पुलिस मुलाजिम भी नशे की गिरफ्त में हैं।‘’

वे बताते हैं कि इसी साल जुलाई महीने में उनके जिले के मक्खु शहर के पुलिस थाने में एएसआइ सतपाल सिंह की चिट्टा पीते हुए एक वीडियो वायरल हो गई थी। उन्‍होंने बताया, ‘’बाद में उसे सस्पेंड कर दिया गया।”  

हम गांव-गांव घूमते हुए जब इलाके से विदा लेने लगे तो एक नौजवान ने कहा, “नशे के ऊपर हमारे इलाके में कोई खबर नहीं छापता। न ही हमारे उन छोटे-छोटे संघर्षों की, जो हम नशे के खिलाफ करते हैं। यह खबर जरूर छापना ताकि वोट मांगने आ रहे इन नेताओं पर भी दबाव पड़े और ये इस नशे के खिलाफ कोई ऐक्शन लेने के लिए मजबूर हों।

इस नौजवान की बात सही है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने नशे के खात्‍मे के नाम पर यहां सिर्फ विज्ञापनबाजी की है जिसके अपने दो बड़े नेता दिल्‍ली के शराब घोटाले के सिलसिले में जेल में बंद पड़े हैं।

इधर एक बार फिर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब को 15 अगस्त 2024 तक नशामुक्त राज्य बनाने की नई डेडलाइन तय कर दी है। मान ने 18 अक्टूबर को सचखंड श्री हरिमंदिर साहिब अमृतसर में अपने मंत्रियों के साथ सामूहिक अरदास में यह बात कही थी।

विडंबना है कि पिछले साल मान पर खुद नशे के गंभीर आरोप लगे थे जब यह बात सामने आई थी कि उन्‍हें फ्रांकफुर्त हवाई अड्डे पर लुफ्थांसा के विमान से इसलिए उतार दिया गया था क्‍योंकि वे नशे में धुत्‍ते थे। तब आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल खुद मान के बचाव में उतर आए थे।

सवाल केवल आम आदमी पार्टी पर ही नहीं है। भारतीय जनता पार्टी तीन दशक तक शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन में रही है। अब जाकर उसे पंजाब को नशामुक्त करने की याद आई है जब चुनाव सिर पर हैं। नशे को लेकर भाजपा में जो नेता बयानबाजी कर रहे हैं वे कभी कांग्रेस में थे और वहां रहते हुए वे इस मसले पर कुछ नहीं कर पाए। अप्रैल 2017 में तत्‍कालीन कांग्रेस शासन ने एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाई थी। तब से अब तक छह साल बीत गए, तीन सरकारें आईं लेकिन नशे पर नियंत्रण नहीं लग सका।



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