ब्रिटेन : इतिहास की सबसे ज्यादा ‘सर्वहारा’ सरकार से क्या उम्मीद की जानी चाहिए?

Labour leader Keir Starmer’s vctory celebrations in London
Labour leader Keir Starmer’s vctory celebrations in London
लेबर पार्टी के नेता कीर स्‍टार्मर की आगामी कैबिनेट में जितने सदस्‍य मजदूर तबके की पैदाइश हैं, उतने ब्रिटेन के इतिहास में किसी सरकार में कभी नहीं रहे। इसका मतलब क्‍या है? क्‍या इसका नीति-निर्माण पर कोई खास असर पड़ेगा या ब्रिटेन के पैदाइशी अभिजात्‍यों के दबाव में अपने वर्ग के लिए कुछ करने की उनकी लालसा दबी ही रह जाएगी? प्रोजेक्‍ट सिंडिकेट के सौजन्‍य से समाजशास्‍त्री एरन रीव्‍स और सैम फ्रीडमैन का आकलन

ब्रिटेन में लेबर पार्टी की जो नई सरकार बनने जा रही है उसका वर्गीय चरित्र पहले की सरकारों से बुनियादी रूप से अलग होगा। लेबर पार्टी की नई संभावित कैबिनेट के हमारे विश्‍लेषण के अनुसार कीर  स्‍टार्मर की कैबिनेट के कोई 46 प्रतिशत सदस्‍यों के माता-पिता ‘मजदूर वर्ग’ (Working Class) से आते हैं। यह आंकड़ा व्‍यापक कामगार आबादी के मुकाबले औसतन कहीं ज्‍यादा है और निवर्तमान कंजर्वेटिव सरकार की कैबिनेट के मुकाबले ठीक उलटा है जिसके 7 प्रतिशत सदस्‍यों के मां-बाप मजदूर तबके से हैं।  

इसी तरह हम पाते हैं कि निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव सरकार के 69 प्रतिशत सदस्‍य किसी न किसी बिंदु पर निजी शिक्षा संस्‍थानों से निकले हुए रहे जबकि स्‍टार्मर की कैबिनेट के मामले में यह 17 प्रतिशत है। यह आंकड़ा लेबर पार्टी के पिछले मंत्रिमंडलों के मुकाबले काफी कम है। टोनी ब्‍लेयर की पहली कैबिनेट के 32 प्रतिशत सदस्‍य निजी शिक्षा पाए हुए थे जबकि हैरोल्‍ड विल्‍सन की सरकार में यह संख्‍या 35 प्रतिशत और क्‍लीमेंट एटली की सरकार में 25 प्रतिशत थी। पूरे देश में कोई 10 प्रतिशत आबादी किसी न किसी बिंदु पर निजी संस्‍थानों से शिक्षित रही है।  

खुद स्‍टार्मर इस बदलाव का उदाहरण हैं। वे एक मिस्‍त्री के बेटे हैं, अपने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार यह बात उन्‍होंने कही है और अपनी जड़ें मजदूर तबके में बताई हैं। सुनक के खिलाफ अपनी पहली बहस में उन्‍होंने कहा था, ‘’हम लोगों के सामने कभी-कभार ऐसी स्थिति आ जाती थी कि बिल देने के भी पैसे नहीं होते थे… इसलिए मैं जानता हूं कि कैसा महसूस होता है।‘’

नई सरकार के बदले हुए इस वर्गीय चरित्र के कई अहम राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं। अपनी नई किताब बॉर्न टु रूल: दि मेकिंग ऐंछ रीमेकिंग ऑफ दि ब्रिटिश इलीट में हमने ब्रिटेन के 3000 ज्‍यादा गणमान्‍य और प्रभावशाली लोगों का सर्वे कर के दिखाया है कि मजदूर वर्ग से आने वाले ब्रिटिश अभिजात्‍य आम तौर से वाम और समाजवादी रुझान वाले होते हैं। इसलिए वे शायद अमीरों पर कर बढ़ाने से लेकर गरीबी घटाने जैसे कदमों पर जोर देते हैं और ब्रिटेन को एक नस्‍ली देश समझते हैं।  


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वर्गीय पृष्‍ठभूमि केवल आंतरिक प्रवृत्तियों पर ही असर नहीं डालती। हमने यूके की सुप्रीम कोर्ट के आज तक दिए हर फैसले का विश्‍लेषण किया और पाया कि उच्‍चवर्ग से आने वाले जजों का रुझान दक्षिणपंथ को समर्थन देने वाला रहा है (जैसे राज्‍य की ताकत को सीमित करने या बड़े उद्योगों को सहयोग देने के माध्‍यम से)। मजदूर तबके से आने वाले लेबर पार्टी के सांसदों से हमारे किए इंटरव्‍यू बताते हैं कि उनकी राजनीतिक पहचान की जड़ें उनके आरंभिक अनुभवों, वाम झुकाव वाले माता-पिता, दादा-दादी  और स्‍थानीय समुदायों के प्रभावों में बसी हुई हैं।  

इस बात के आरंभिक संकेत भी मिल चुके हैं कि स्‍टार्मर की सरकार की वर्गीय बनावट नीतियों को बनाने पर असर डालेगी। मसलन, खुद स्‍टार्मर ने निजी स्‍कूलों पर कर बढ़ाने और नॉन-डोमिसाइल (वे लोग जो यूके में रहते हैं लेकिन अपना स्‍थायी पता किसी और देश का देते हैं) कर को खत्‍म करने के प्रति वचनबद्धता जताई है। इन दोनों मसलों को अतीत की लेबर सरकारें संबोधित नहीं कर पाई थीं।

इसका आशय यह नहीं है कि नई सरकार कोई वर्ग-युद्ध छेड़ने जा रही है। नेता वैसे तो बहुत तेजी से बदलते हैं, लेकिन ज्‍यादातर अभिजात्‍य काफी लंबे समय तक अपनी जगहों पर कायम रहते हैं। इसलिए कुछ भी लागू करने से पहले स्‍टार्मर और मजदूर वर्ग से आने वाले दूसरे लेबर सांसदों- जैसे उपनेता एंजेला रेनर और वेस स्‍ट्रीटिंग- को सिविल सेवा, उद्योग जगत और दूसरे वर्गों से आने वाले इलीट लोगों के साथ काम करना पड़ेगा।

हमारा शोध बताता है कि पिछली एक सदी के दौरान विशेषाधिकार प्राप्‍त तबकों से आने वाले लोगों की ब्रिटिश इलीट के बीच जरूरत से ज्‍यादा नुमाइंदगी रही है, जिसे गणमान्‍य और प्रतिष्ठित लोगों की सूची से जाना जा सकता है। मसलन, 1890 से देखें, तो अगर आप धन-संपदा के बंटवारे के हिसाब से शीर्ष 1 प्रतिशत अमीरों में से आते हैं तो ब्रिटिश इलीट के दरजे तक पहुंचने में दूसरों के मुकाबले आपकी संभावना 20 गुना ज्‍यादा है।

देश के नौ सर्वाधिक इलीट निजी स्‍कूलों- यानी ईटन, हैरो और विनचेस्‍टर जैसे स्‍कूलों के समूह- की ताकत अपेक्षाकृत कम होते जाने के बावजूद अब भी यहां से निकलने वाले छात्रों की ब्रिटिश इलीट बनने की संभावना किसी और स्‍कूल के पूर्व छात्र के मुकाबले 52 गुना ज्‍यादा है। ऐसा वर्गीय उत्‍पादन बहुत मायने रखता है क्‍योंकि विशेषाधिकार प्राप्‍त तबकों से आने वाले इलीट अपने साथ दक्षिणपंथी रुझान वाली राजनीति लेकर आते हैं, जो उनकी जिंदगी के अनुभवों का नतीजा होती है।

लेबर पार्टी लंबे समय से इस तनाव से जूझती रही है। ब्‍लेयर ने इसीलिए रूपट मर्डोक से अपने लिए मान्‍यता चाही थी और स्‍टार्मर ने भी ब्रिटेन के कारोबारी नेतृत्‍व से समर्थन पाने के लिए मेहनत की है। स्‍टार्मर ने कारोबारी नेतृत्‍व से समर्थन और प्रायोजन के पत्र हासिल करने पर बहुत जोर दिया है। यहां तक कि एक अरबपति को भी उन्‍होंने साथ जोड़ लिया जो पहले कंजर्वेटिव पार्टी को चंदा देता था।   

हमारे डेटा में दर्ज जो कॉरपोरेट एग्जिक्‍यूटिव हैं, उनके आर्थिक और सांस्‍कृतिक रूप से रूढि़पंथी होने की ज्‍यादा संभावना है- जैसे, वे कम टैक्‍स और कम सार्वजनिक निवेश का समर्थन करते हैं तथा नस्‍ल और उपनिवेशवाद की विरासत पर कहीं ज्‍यादा प्रतिक्रियावादी खयाल रखते हैं। इसीलिए ऐसे कॉरपोरेट इलीट के ऊपर जीत हासिल करने की कीमत यह हो सकती है कि नई सरकार को कुछ मसलों पर अपनी दिशा बदल देनी पड़े।

वैसे, लेबर की जमातों में कुछ लोग ऐसे हैं भी जो पहले से ब्रिटेन के कॉरपोरेट इलीट के प्रति सहानुभूति रखते हैं, और ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कि वे खुद अमीर हैं। वर्गीय जड़ें राजनीतिक वचनबद्धताओं को बेशक गढ़ सकती हैं, लेकिन इसमें धन-दौलत की मौजूदा स्थिति भी काम करती है। हमारा डेटा कहता है कि मजदूर वर्ग से आने वाले नेता जो बाद में अमीर हो गए, उसी वर्ग से आने वाले उन नेताओं के मुकाबले ज्‍यादा रूढ़ हैं जिन्‍होंने कम पैसा बनाया।    

नए कैबिनेट सदस्‍यों के आर्थिक रसूख की परिस्थितियों पर हमारे पास विस्‍तृत डेटा नहीं है, लेकिन हम इतना जानते हैं कि राजनीति में आने से पहले कई का करियर बहुत कामयाब रहा। कुछ ही लोग ऐसे हैं जो ट्रेड यूनियन आंदोलन से राजनीति में आए या जिन्‍होंने लंबे समय तक मजदूरी की। ज्‍यादातर प्रोफेशनल रहे जिन्‍हें अपने करियर में अच्‍छा वेतन मिला। मजदूर वर्ग की पैदाइश ऐसे कामयाब प्रोफेशनल एक ऐसा अनिश्चित घालमेल बनाते हैं जो अजीबोगरीब ढंग से खुद को अभिव्‍यक्‍त कर सकता है।

हो सकता है कि अब भी कई लेबर नेताओं के मन में वर्गीय गैर-बराबरी से लड़ने की कोई आंतरिक चाहत हो, जैसा कि हमारा अध्‍ययन कहता है। ऐसे सांसद अपनी पारिवारिक जिंदगी से निकले अन्‍याय के दीर्घकालिक बोध, आज के हालात में वास्‍तविक आर्थिक लाभों के अवसर और व्‍यापक राजनीतिक परिप्रेक्ष्‍य के बीच खुद को फंसा हुआ पाएंगे। इसलिए लेबर पार्टी के बड़े नेता निजी रूप से चाहे जैसा भी महसूस करें, बहुत संभव है कि अंतत: उन्‍हें अपनी निम्‍नवर्गीय जड़ों से आती हुई आवाज को दबाना पड़े। करीब पंद्रह साल के वनवास के बाद सत्‍ता में लौट रही लेबर पार्टी के लिए वर्ग कुछ तो मायने रखेगा ही, भले ही कोई वर्ग युद्ध न चले।


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