Judiciary

Rajasthan High Court

न्याय के रास्ते धर्मतंत्र की कवायद: जस्टिस श्रीशानंद, विहिप की बैठक और काशी-मथुरा की बारी

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कर्नाटक उच्‍च न्‍यायालय के एक जज की अनर्गल टिप्पणियों पर संज्ञान लेने के पांच दिन बाद उन्‍हें आखिरकार हलके में बरी कर के और साथ ही जजों के लिए किसी दिशानिर्देश का शिगूफा छोड़कर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से पानी में लाठी भांजने का काम किया है। देश की राजधानी में जब केंद्रीय कानून मंत्री और दो दर्जन से ज्‍यादा पूर्व जजों की मौजूदगी में खुलेआम काशी-मथुरा के मंदिरों की योजना बन रही हो, ऐसे में संवैधानिक नैतिकता के सवाल को कौन संबोधित करेगा? अदालती रास्‍ते से हिंदू राष्‍ट्र बनाने की कोशिशों पर सुभाष गाताडे

Behmai police check post that was established post massacre in 1981

बेहमई : इंसाफ या 43 साल के शोक का हास्‍यास्‍पद अंत?

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पचहत्‍तर साल के लोकतंत्र में तैंतालीस साल पुराने एक मुकदमे में एक फैसला आया है। मुकदमे में दोनों पक्ष के ज्‍यादातर लोग सिधार चुके हैं। कानपुर के पास बेहमई गांव में बीस लोगों की सामूहिक हत्‍या के आरोप में जिस इकलौते शख्‍स को सजा हुई, वह अस्‍सी साल का है। तीन पीढ़ियां जब अपने पितरों का शोक मनाते गुजर चुकी हैं, तो न्‍याय ऐसा मिला है जिसके जोर से एक पतंग भी न उड़ पाए। कोर्ट ऑर्डर की प्रति भी यहां पहुंचेगी कि नहीं, शक है क्‍योंकि इस गांव में एक अदद सड़क नहीं है। बेहमई से लौटकर नीतू सिंह की फॉलो-अप रिपोर्ट

गुजरात हाइकोर्ट के जज ने बलात्कार पीड़िता के वकील को मनुस्मृति पढ़ने का सुझाव क्यों दिया?

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गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री ने नई संसद में राजदंड को स्‍थापित किया और उसके दस दिन बाद ही गुजरात के उच्‍च न्‍यायालय में जज ने एक बलात्‍कार पीड़िता के वकील को मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दे डाली। एक साथ विधायिका और न्यायपालिका में संवैधानिक मूल्य के बजाय मनुस्मृति के मूल्य की स्थापना क्या महज संयोग है?