Loksabha Elections 2024

Unnao Gangrape 2022 victim's house

उन्नाव गैंगरेप 2022 : चुनाव आ गया, इस दरवाजे अब तक कोई नहीं आया…

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उन्‍नाव में चुनाव है। हाथरस में हो चुका। बांदा में 20 मई को होना है। ऐसे तमाम शहरों को एक चीज जोड़ती है- बलात्‍कार। बीते बरसों में उत्‍तर प्रदेश में जितने जघन्‍य रेप कांड हुए हैं, और कहीं नहीं हुए। सबसे ज्‍यादा हल्‍ला भी यहीं मचा। ज्‍यादातर कांड दलित औरतों के साथ हुए हैं। विडम्‍बना है कि इस आम चुनाव में दलित वोटों के पीछे पड़े सत्‍ता और विपक्ष दोनों को वे दलित परिवार याद नहीं जो बरसों से अपने ही घर में कैद हैं, घुट रहे हैं, लगातार जुल्‍म झेल रहे हैं। ग्‍यारह साल की दलित बच्‍ची से 2022 में उन्‍नाव में हुए गैंगरेप पर नीतू सिंह की फॉलो-अप रिपोर्ट

Nitish and Modi together on a hoarding

बिहार : संघ-भाजपा की दाल यहां अकेले क्यों नहीं गल पाती है?

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पिछले आम चुनाव में बिहार में एक को छोड़कर सारी सीटें जीतने वाले एनडीए के पास इस बार बहुत कुछ पाने को नहीं है, लेकिन गिरने की गुंजाइश बरकरार है। नरेंद्र मोदी की 12 मई को पटना में होने वाली भव्‍य रैली संभव है इस गिरावट को थाम ले, लेकिन सवाल है कि मोदी लहर और हिंदुत्‍व के चरम उभार के दौर में भी बिहार में भाजपा को गठबंधन का सहारा क्‍यों लेना पड़ रहा है? क्‍या चीज भाजपा के लिए बिहार को हिंदी पट्टी में अपवाद बनाए हुए है? और क्‍या अगले साल अपने दम पर बिहार में भाजपा सरकार बना सकेगी? राहुल कुमार गौरव की पड़ताल

Vijayadashmi celebrations of RSS in Nagpur, 2023

निन्यानबे का फेर : फीकी रामनवमी, कम मतदान और भागवत बयान की चुनावी गुत्‍थी

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आरएसएस का शताब्‍दी वर्ष समारोह न मनाने का सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान पहले चरण के मतदान से ठीक पहले आया। तब से दो चरण हिंदी पट्टी में ठंडे गुजर चुके हैं। रामनवमी के जुलूसों से भी चुनाव में गर्मी नहीं आ सकी क्‍योंकि राम मंदिर अब लोगों के आत्‍मसम्‍मान का सवाल नहीं रहा। भगवान अब टेंट में नहीं हैं। तो क्‍या संघ इस लोकसभा चुनाव में बैठ गया है? और क्‍या भाजपा को राम मंदिर का बन जाना पच नहीं पा रहा कि मोदी लौट-लौट कर अयोध्‍या जा रहे हैं? अमन गुप्‍ता की रिपोर्ट

Fire at landfill site of Ghazipur on Delhi-UP border

पश्चिमी यूपी, दूसरा चरण: कचरे में आग लग चुकी है, फैलते धुएं में आठ क्षेत्रों का सीटवार आकलन

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पहले चरण के कम मतदान प्रतिशत ने अचानक सभी राजनीतिक दलों को सक्रिय कर दिया है। दोनों तरफ से पारा चढ़ाया जा रहा है। संघ प्रमुख से लेकर मुख्‍य न्‍यायाधीश तक को सौ परसेंट मतदान की अपील करनी पड़ रही है तो भाजपा का पुराना खमीर सतह पर आ चुका है। ऐसे में उत्‍तर प्रदेश की अगली आठ सीटों का मुकाबला दिलचस्‍प हो गया है। माजिद अली खान बता रहे हैं सीटवार हिसाब

Protest against Agnipath Scheme in Rajasthan

एक दर्जन ‘अग्निपथ’ : राजस्थान के पहले चरण में भाजपा के खिलाफ लड़ रहे हैं किसान और जवान

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कुछ महीने पहले राजस्‍थान में कांग्रेस को उखाड़ के बनी भाजपा की सरकार इस लोकसभा चुनाव में फंसी हुई दिखती है। खासकर पहले चरण की 12 सीटों पर किसान और जवान अपने-अपने मुद्दों को लेकर साथ आ गए हैं और शेखावटी की जमीन भाजपा के लिए तप रही है। चुनाव प्रचार के आखिरी पलों तक इस इलाके पर नजर रखने वाले मनदीप पुनिया की सीट दर सीट मुकम्‍मल रिपोर्ट

Loksabha Elections 2024 Phase 1 Western UP

पश्चिमी यूपी, पहला चरण : आठ सीटों पर मुस्लिम वोटों का बिखराव ही तय करेगा भाजपा की किस्मत

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पहले चरण के मतदान में अब केवल तीन दिन बचे हैं लेकिन पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में चुनाव खड़ा नहीं हो पाया है। हालात ये हैं कि यहां समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की पहली साझा प्रेस कॉन्‍फ्रेंस और प्रियंका गांधी की जनसभा प्रचार के आखिरी दिन प्रस्‍तावित है। यहां की आठ सीटों में अधिकतर पर किसी न किसी तीसरी ताकत ने विपक्षी गठबंधन और भाजपा दोनों को असमंजस में डाल रखा है। लिहाजा, वोटर बिलकुल खामोश है और प्रेक्षक भ्रमित। यूपी में पहले चरण का सीट दर सीट तथ्‍यात्‍मक आकलन वरिष्‍ठ पत्रकार माजिद अली खान की नजर से

लोकसभा चुनाव की निगरानी: परदा उठने से पहले एक अरब मतदाताओं के लिए बस एक सवाल

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आगामी लोकसभा चुनावों की निगरानी के लिए एक स्‍वतंत्र पैनल (आइपीएमआइई) बना है। इसकी परिकल्‍पना पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एमजी देवसहायम ने की है। इस पैनल में लोकतंत्र, राजनीति विज्ञान, चुनाव प्रबंधन और चुनावी निगरानी तक विभिन्‍न क्षेत्रों के अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति-प्राप्‍त शख्सियतें शामिल हैं। पैनल का उद्देश्‍य चुनावों पर निगाह रखना, रिपोर्ट प्रकाशित करना और चिंताएं जाहिर करना है ताकि आम चुनाव 2024 निष्‍पक्ष, स्‍वतंत्र, पारदर्शी तथा लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल रहे जिससे भारत के नागरिकों के मताधिकार की सुरक्षा की जा सके। स्‍वतंत्र पैनल की पृष्‍ठभूमि खुद एमजी देवसहायम की कलम से

बदलाव के सुराग : केवल एक दंगा कैसे दस साल के भीतर भाईचारे का पलड़ा पलट देता है

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मुजफ्फरनगर में दस साल पहले दंगा हुआ था। सितंबर 2013 का महीना था। तब यूपी में सरकार भाजपा की नहीं थी। कमीशन बना, रिपोर्ट आई, समाजवादी सरकार बरी हो गई। समाज ने धीरे-धीरे खुद को संभाला। फिर हाइवे बने, किसान आंदोलित हुए, यूट्यूब चैनल पनपने लगे। दस साल में दुनिया इतनी बदल गई कि एक मामूली स्‍कूल की छोटी सी घटना तक सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने लगी। मुजफ्फरनगर के गांव-कस्‍बों में लोग इस बदलाव को कैसे देख रहे हैं? क्‍या सोच रहे हैं? मुजफ्फरनगर से लौटकर अभिषेक श्रीवास्‍तव की मंजरकशी

बेनामी और बेहिसाब कॉरपोरेट चंदे के खिलाफ चार दशक पुराने संवैधानिक विवेक की साझा लड़ाई

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अगस्‍त 1997 में नीतीश कुमार ने लोकसभा में एक भाषण दिया था। फरवरी 2023 में राहुल गांधी ने एक भाषण दिया। ढाई दशक में संदर्भ बदल गए, लेकिन मुद्दा एक ही रहा- चुनावों की बेनामी कॉरपोरेट फंडिंग। नीतीश के सुझाव को भाजपा ने कभी नहीं माना। राहुल की जब बारी आई, तो सदन के माइक ही बंद कर दिए गए। पटना में हो रही विपक्षी एकता बैठक के बहाने चुनावों की राजकीय फंडिंग के हक में चार दशक के संसदीय विवेक पर बात कर रहे हैं डॉ. गोपाल कृष्‍ण